शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

आमिर खुसरो का उदारवाद

यदि किसी नीच व्यक्ति को एक सम्मानजनक मुखौटा प्रदान करना हो तो दो उपाय करने चाहियें. सर्वप्रथम, उस का नाम अच्छे और नेक व्यक्तियों के साथ उल्लेखित कर दीजिये. और यदि इसके लिए आप गुरु नानक और संत कबीर जैसे नेहरु रचित 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में आमिर खुसरो के संबंध में लिखा है:
वो एक महान संगीतकार था तथा उसने भारतीय संगीत में कई नई खोजें की. कहा जाता है कि सितार उसी की देन है. उस ने कई विषयों पर लिखा है विशेषतः भारत की प्रशंसा में, जिस में उस ने उन विषयों के संबंध में बताया है जिन में भारत अग्रणी है. इन में है धर्म, दर्शन, तर्क, भाषा, व्याकरण, संगीत, गणित, विज्ञान एवं आम!
नेहरु जिस समय लिखते थे, लोगों के मानस पटल पर उस की छवि एक नेक और देश भक्त नेता के रूप में थी. जो सूचना के साधन थे वो सीमित थे और उन पर सकारी तंत्र का अधिकार था. इस सब की आड़ में वो जो लिखता था, उसे पढ़ कर लोग स्वयं को बुद्धि जीवी समझ लेते थे. प्रत्येक प्रबुद्ध समाज को चाहिए कि समीक्षा के उपरान्त ही शब्दों को तथ्य के रूप में स्वीकार करे.
हर भारतीय को पता होना चाहिए कि जिस आमिर खुसरो के संबंध में नेहरु इतनी पुष्पित वाणी का प्रयोग कर रहा है, भारतीयता के इस प्रेमी ने हमारे संबंध में क्या लिखा है. आमिर खुसरो की दो कृतियाँ हैं - आशिका तथा 'तारीख - ऐ - अलाई '. ये दोनों फारसी में हैं.आशिका का देवनागरी अनुवाद इस प्रकार है:-
प्रसन्न हिंदुस्तान, जहां सम्प्रदाय की महानता और न्याय पूर्ण रूप से आदर प्राप्त करता है और सुरक्षित है. ज्ञान में अब दिल्ली बुखारा के समकक्ष है क्योंकि संप्रदाय के राजाओं ने इस्लाम को स्थापित कर दिया है. ये सम्पूर्ण राष्ट्र, हमारे मुजाहिदों की तलवारों से ऐसा हो गया है मानो कि आग की सहायता से वन के सभी कांटे जल गए हों. भूमि तलवार से निकले रक्त से परिपूर्ण हो गयी है, और काफिर भाप बन कर बिखर गए हैं. भारत के बलवान पुरुष पाँव तले रौंद दिए गए हैं, और सभी जज़िया देने को बाध्य हो गए हैं. यदि जज़िया दे कर अपना जीवन बचाने का प्रावधान न होता तो हिंद का नाम, मूल और टहनियों सहित, नष्ट हो चुका होता. घजनी से ले कर सागर के किनारों तक आप सब स्थानों पर सब कुछ इस्लाम के अधीन है. कांव कांव करने वाले कव्वे (हिंदुयों के लिए आमिर खुसरो का विशेषण) अपनी ओर तीरों की नोक नहीं देखते; न ही ऐसा कोई इसाई है जो दास को अल्लाह के समकक्ष कहने से भयभीत न होता हो; न कोई यहूदी है जो अपनी पुस्तक को कुरान के समान कहता हो; न कोई मगली है जो अग्नि की पूजा कर के प्रसन्न हो सके, जिसके लिए अग्नि अपने सैंकड़ों मुख खोलती हो. मुसलामानों के चारों पंथ मैत्री से रहते हैं और सुन्नी सर्वोपरि हैं.
भारत के मूल निवासियों के प्रति खुसरो के विचार कितने उदारता वादी थे, ये तो स्पष्ट हो जाता है. वो यहाँ के धर्म की प्रशंसा किस प्रकार करता था ये भी देख लीजिये.
इन (ब्राह्मणों) की चार पुस्तकें हैं, जिन्हें ये दोहराते रहते हैं. इन पुस्तकों को बेद (वेद) कहते हैं. इन्हें पढने से कोई लाभ नहीं होता.
खलीफा की तलवार की जिव्हा ने, जो कि इस्लाम की अग्नि है, हिंदुस्तान के अन्धकार को अपने मार्गदर्शन से प्रकाश में परिवर्तित कर दिया है. दूसरी ओर सोमनाथ के ध्वस्त मंदिर से इतनी धुल उठी कि सागर भी उसे समेत नहीं पाया. दायीं से बायीं ओर, सेना ने सागर से ले कर दुसरे सागर तक विजय प्राप्त कर ली है. हिंदुयों के भगवानों की कई राजधानियां, जिन में शैतानियत जिन्नों के समय से चली आ रहित थी, नष्ट कर दी गयी हैं. कुफ्र की ये घृणित अशुद्धि का विनाश सुल्तान द्वारा इन की मूर्तियाँ और मंदिर गिरा कर किया गया है, जिस का आरम्भ देवगिर के विरुद्ध जिहाद से हुआ है. न्याय का प्रकाश इन सभी नापाक (अपवित्र) राज्यों में होगा जब नमाज़ के लिए पुकार लगाई जायेगी और नमाज़ पढ़ी जाएगी. अल्लाह महान है.
जब चित्तोड़ में अल्लाउद्दीन खिलजी  ने ३०,००० हिंदुयों का नरसंहार करने का आदेश दिया था तो आमिर खुसरो इस का व्याख्यान अपने 'खजाना - उल - फ़तेह (1311) में लिखता है -
"सुल्तान ने, अपनी काफिरों को काटने वाली तलवार से,  इस्लाम की सीमा में से हिंदुस्तान के सभी मुखियायों का वध करने का आदेश दिया. यदि आज कोई काफिर अपने धर्म का अधिकार मांगे तो सुन्नी अपने अल्लाह के इस खलीफा की सौगंध खा कर कहेंगे कि ऐसे किसी विधर्म अथवा विधर्मी का कोई अधिकार नहीं है".
खुसरो की एक कृति है 'मिफ्तह उल फ़तेह'. इस में उस ने फ़िरोज़ शाह खिलजी द्वारा किये गए आक्रमणों की व्याख्या की है. इस में बखान है कि किस प्रकार युद्ध में हिंदुयों से व्यवहार किया जाता था.
"मुसलामानों ने अपनी तलवारों को हिंदुयों के रक्त से जंग लगा लिया था".
जितने भी जीवित हिन्दू  राजा के हाथ लगे, उन्हें हाथियों के पाँव तले रौंद कर टुकड़े टुकड़े कर दिया गया. जो मुसलमान हाथ लगे, उन्हें जीवन दान दे दिया गया.
दो सप्ताह तक पर्वतों में से चलते हुए शाह रणथम्बौर    की सीमा पर पहुंचा. तुरुष्कों (शाह की सेना के तुर्की मुसलमान) ने लूट पाट मचाना आरम्भ कर दिया.  शाह ने अपने घुड़सवारों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा. चार प्रसंग के घेरे में जितने हिन्दू थे, सब को मार दिया गया अथवा बंदी बना लिया गया.
यहाँ से कड़ी खान को कुछ धनुष धारियों के साथ पहाड़ों में जांच पड़ताल के लिए भेजा गया. वहाँ लगभग ५०० हिंदुयों ने अचानक आक्रमण कर दिया जो हिंदी में कह रहे थे 'मारो!मारो'. तुरुष्कों के विषयुक्त बानों से ७० मारे गए, ४० घायल हो गए और शेष भाग खड़े हुए. सैनिकों ने शिविर में लौट कर शाह को इस की सूचना दी. अगले दिन शाह ने १,००० सैनिकों को मलिक खुर्रम आरिज़, मलिक कर्फ्बक, मलिक कत्लागितिगिन, इतजाम मुबारक, अहमद सर्जंदर, महमूद सर्जंदर और अन्यों के साथ भेजा. वे पूरी रफ़्तार से झेन से दो प्रसंग की दूरी पर पहुँच गए. जब वे वहाँ एक संकरे राह से निकल रहे थे तो इस सूचना से झेन में खलबली मच गयी. राय घबरा गया और उस ने गुर्दान सैनी को बुला भेजा जो राय के ४०,००० रावतों में सब से अनुभवी योद्धा था और हिंदुयों के कई युद्ध देख चुका था. कई बार वो मालवा, और कई बार गुजरात में लूट चुका था. वो १०,००० रावतों के साथ झेन से तुरुष्कों पर आक्रमण करने निकला. भीषण युद्ध के उपरान्त वो वीर गति को प्राप्त हुआ. तत्पश्चात हिन्दू भाग खड़े हुए. तुरुष्कों ने पीछा कर के भारी मात्र में उन की हत्या कर दी और कुछ बंदी बना लिए.  शाह की सेना में केवल एक व्यक्ति घायल हुआ. झेन में आतंक फ़ैल गया और रात में राय और सभी हिन्दू  रणथम्बौर के पहाड़ों में भाग गए. विजयी शाही सेना लूट के सामान के साथ शाह के पास पहुंची. उन्होंने शाह को लूट का माल भेंट किया, जिस में काट कर लाये हुए सर थे, कवच, घोड़े, तलवारें और बंदी रावत थे. शाह ने उन्हें लूट का माल अपने पास रखने दिया और सोना तथा प्रशंसा के चोले बांटे. तीन दिन पश्चात शाह ने दोपहर को झेन में प्रवेश किया और राय के निजी कक्ष में अपना निवास बनाया, जहां उसने पत्थरों में कई भव्य रंगों से की गयी तराशी की प्रशंसा की जिन में आकृतियाँ  इस सुन्दरता से घड़ी गयी थी मानो मोम से बनायी गयी हों. उन पर इतना सुन्दर लेप किया गया था कि देखनइ वाले को अपना प्रतिबिम्ब दिखाई देता था. चन्दन को घोल कर गारा बनाया गया था. उत्कृष्ट काष्ठ (लकड़ी) का उपयोग किया गया था.
 इस के पश्चात् वो मंदिरों में गया जहां सोने और चांदी से विस्तृत अलंकारिक (सजावटी) कलाकारी की गयी थी. अगले दिन वो फिर मंदिर में गया और उसने मंदिरों और दुर्ग (किला) को नष्ट करने का आदेश दिया तथा राजमहल को जलाने का आदेश दिया, और इस प्रकार स्वर्ग (जन्नत) को नरक (जहन्नुम) में परिवर्तित कर दिया.
झेन की नींव नष्ट कर दी गयी. शाह के हाथियों पर इतना सोना लाड दिया गया था कि जिस का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता. सैनिकों ने इतना माल लूटा कि भिखारी भी समृद्ध हो गए थे, क्योंकि प्रत्येक ध्वस्त खंडहर में से धन के अम्बार मिल रहे थे. जब सैनिक धन और सोना लूट रहे थे तब शाह मंदिरों को जलाने और मूर्तियों को नष्ट करने में लगा था. वहाँ ब्रह्मा की दो मूर्तियाँ थी जिन में प्रत्येक का भार १००० मन से अधिक था. इन के टुकड़े कर के अधिकारिओं और सैनिकों में इस आदेश के साथ बाँट दिए गए कि इन्हें मस्जिद के द्वार पर फेंका जाए. (ज्ञात हो कि इस का उद्देश्य था कि मुसलमान इन के ऊपर से पाँव रख कर जाएँ जिस से कि हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाए और हिन्दू धर्म का अपमान हो).
इसके पश्चात् मलिक खुर्रम काफिरों के पीछे पहाड़ियों में लपका जहां उस ने अनगिनत बंधक बनाए. एक अन्य गिरोह को सर्जंदर की अध्यक्षता में चम्बल और कुवारी के पार मालवा को लूटने और काफिरों का रक्त बहाने के लिए भेजा गया. कुवारी के पार दो प्रसंग के अंतर पर उसे एक समूह मिल गया जो मलिक की तलवार से बच गया था. यहाँ उस ने इतनी लूटपाट की कि मैं वर्णन नहीं कर सकता. मुबारक बर्बक को एक अन्य दिशा में भेजा गया था, जहां उस ने भी परंपरा के अनुसार लूटपाट की. मलिक जन्दर्बख्त अहमद ने एक अन्य दिशा में लूटपाट और नरसंहार (लारा के पर्वत से ले कर मारा की सीमा तक) किया. 
अल्लाउद्दीन खिलजी के संबंध में खुसरो लिखता है:
जब उसके भाग्य ने हाथ उठाया तो वो हिंदुस्तान का शासक बन गया. जब वो कार की राजधानी से चला तो भयभीत हिन्दू चींटियों की भांति पृथ्वी में चले गए. वो बिहार के उद्यान की दिशा में बढ़ा और वहाँ की भूमि को रक्त से लाल कर दिया. उसने उज्जैन की सड़क से घिनौने और नीच लोगो से रहित कर दिया और भीलसेन में आतंक मचा दिया. जब उसने उस प्रदेश में विजय प्राप्त की तो उस ने नदी में छिपाई गयी मूर्तियों को भी निकाल लिया जो उस से छिपाई गयी थी. ये तो उसका एक छोटा सा अभियान था, वो तो देव्गीर को जीतने का निश्चय कर चुका था, जहां उस ने देव पर विजय प्राप्त की. "उस के दया देखिये कि राय को पकड़ने के पश्चात् भी उसने छोड़ दिया". उसने मूर्तिपूजकों के मंदिर नष्ट कर दिए और उन के स्थान पर मस्जिद की मीनारें बना दी.
 ये घृणा से भरपूर रचनाएं कबीर अथवा गुरु नानक के उदारवादी विचारों से कहीं भी मेल नहीं खाती, इसलिए खुसरो को इन नेक पुरुषों की श्रेणी में खड़ा करना इन दोनों सज्जनों का अपमान करने के समान है. लेकिन नेहरु ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए पूरे राष्ट्र को उल्लू बनाने का प्रयत्न किया है, जिसमें वो सफलता प्राप्त कर पाया है.




सोमनाथ के मंदिर के विनाश के संबंध में खुसरो द्वारा कहे गए शब्द नेहरु के इस उदारवादी सूफी संत की विचारधारा पर और प्रकाश डालते हैं. महमूद गज़नी ने जब सोमनाथ के मंदिर को लूटा और नष्ट किया था तो उसने वहां की सभी मूर्तियाँ तोड़ दी थीं और मुख्य मूर्ती को अपने साथ गज़नी ले गया था. यहाँ पर पहले तो उसने कुरान का बखान किया और फिर सोमनाथ मंदिर के नष्ट किये जाने पर कहता है:-
ऐसा लग रहा था मानो शाही तलवार कुरान का वर्णन कर रही हो: 'इस प्रकार उसने (अब्राहम ने) मूर्तियों के टुकड़े टुकड़े कर दिए हों, केवल मुख्य मूर्ती को छोड़ कर.; इस प्रकार एक बुत परस्त राष्ट्र, जो कि काफिरों का मक्का था, अब इस्लाम के मदीना में बदल गया. 
ये विशाल और भव्य मंदिर जो समुद्र किनारे बना हुआ था, इसके टुकड़े, मंदिर की स्थिति के पश्चिम की ओर सागर में गिरे थे. इस पर ये कबीर और नानक के समकक्ष संत प्रसन्नता से कविता में वर्णन करता है:-
सोमनाथ के मंदिर को पवित्र मक्का की ओर मोड़ दिया गया, मंदिर ने अपना सर झुकाया और फिर सागर में डुबकी लगा गया. ऐसा लग रहा था मानों मंदिर ने पहले नमाज़ अदा की और फिर स्नान के लिए पानी में उतर गया.
चिदंबरम में शिव मंदिर और शिव लिंग के तोड़े जाने पर भी इस संत ने अपनी रचनाओं में कलात्मक ढंग से वर्णन किया है:
पत्थर की मूर्ती जिसे लिंग महादेव कहते हैं, लंबे अरसे से स्थापित थी जिस पर काफिरों की महिलाएं अपने अंग रगड़ कर अपनी वासना को शांत करती थीं, इस पर अब तक इस्लाम के घोड़े की लात से तोड़ने के लिए प्रहार नहीं हुआ था. मुसलामानों ने सारे लिंग तोड़ दिए और देव नारायण नीचे आ गिरा. अन्य सभी भगवान्, जो वहाँ थे, उन्होंने अपने पाँव उठाए और इतना ऊंचा कूड़े कि एक ही छलांग में लंका पहुँच गए. दर के मारे, लिंग भी अपने आप को बचाने के लिए भागते अगर उनके खड़े होने के लिए पाँव लगे होते.
 चिदंबरम में ये अकेला मंदिर नहीं था जिसे विनष्ट किया गया था. वहाँ के कई मंदिरों को मलिक काफूर की नेक इस्लामी तलवार का स्वाद चखना पड़ा था. उस समय नेहरु का ये संत आनंद से भर कर दृश्यों के बखान में बताता है कि 
ब्राह्मणों के सर उनकी गर्दनों से नाच नाच कर उनके पांवों में गिर रहे थे.

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