मंगलवार, 30 नवंबर 2010

नेहरु एक अन्तर्यामी

आधुनिक मनोविज्ञान ने शोध के आधार पर ये प्रमाणित किया है कि जब कभी कोई व्यक्ति, समुदाय अथवा राष्ट्र परतंत्र हो जाता है तो अधीनस्थ जनता में कुछ लोग विद्रोही हो जाते हैं, कुछ पूर्ववत जीवन जीते रहते हैं, और कुछ हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं. ये तीसरी श्रेणी के व्यक्ति अपने आक्रान्ताओं को हर प्रकार से श्रेष्ठ और अपने से जुड़ी हर वस्तु अथवा परंपरा को निकृष्ट समझने लगते हैं. धीरे धीरे वे अपने आप को आक्रान्ताओं जैसा ही समझने लग जाते हैं. मनोविज्ञान ने इस विकार का नाम रखा है 'हेलसिंकी सिंड्रोम'.
अब आप एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना कीजिये जो परतंत्र भारतवर्ष में जन्मा और पला बढ़ा हो. यदि वो ये जानता हो कि जिस राष्ट्र में उस ने जन्म लिया है वो पहले इस्लामी आक्रान्ताओं से लड़ता रहा और अब अंग्रेजों के अधीनस्थ है तो वो उपरलिखित तीनों श्रेणियों में से किसी एक प्रकार का ही होगा. तथाकथित हिन्दू परिवार में जन्मा ये व्यक्ति यदि कहे,
"मैं विचारों एवं मानसिकता से अँगरेज़ हूँ, सभ्यता से मुसलमान हूँ और केवल एक दुर्घटना है कि मैं एक हिन्दू हूँ", 
तो ये कोई विलक्षणता नहीं है. ऐसी मानसिकता के व्यक्ति सुलभता से हर झुण्ड में मिल जाते हैं. किन्तु यदि वो सत्ता में आ जाये तो इस मानसिकता को सभी पर थोपने का प्रयत्न करता रहेगा. परिणामतः वो राष्ट्र और राष्ट्रवाद का हनन कर सकता है.
अब हम नियमों से व्यवहारिकता पर आते हैं.
नेहरु ने दो पुस्तकें लिखी हैं 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' तथा 'ग्लिम्प्सिस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्टरी'. इन में जो झूठ लिखे हैं, उन पर सहज विश्वास नहीं होता कि कोई इतनी बेबाकी से झूठ कैसे लिख सकता है.

 तैमुर लंग - नेहरु के अनुसार

खंडित भारत के प्रथम प्रधान मंत्री 'ग्लिम्प्सिस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्टरी' में तैमुर लंग नामक इस्लामी दरिन्दे के सम्बबंध में जो लिखता है वो इस प्रकार है:-
इस दरिन्दे को भारत के वैभव ने आकर्षित किया था. उसे अपने सेनापतियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए समझाने में कठिनाई हो रही थी. इसलिए उस ने समरकंद में एक बैठक बुलाई जिस में अन्य राजनायिकों ने भारत की उष्ण जलवायु को एक असुविधा बताते हुए आक्रमण से मना किया. अंत में  तैमुर ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वो भारत में रहेगा नहीं बल्कि लूट पाट कर के और वहाँ का विनाश कर के लौट आये गा. उस ने अपना वचन निभाया.
इसलिए जब तैमुर मंगोल सेना ले कर भारत आया तो उसे किसी विशेष प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा.और वो अपनी इच्छा अनुसार नरसंहार करता रहा और मानव सरों (नर मुंडों) के विशाल ढेर लगाता रहा. उसने बिना भेदभाव के हिंदुयों और मुसलामानों को मारा. जब युद्ध बंदी अधिक हो गए तो उस के आदेश पर एक लाख लोगों को मार दिया गया.
तैमुर लंग की आत्म कथा 


अब देखें कि तैमुर स्वयं अपने विषय में क्या कहता है. तैमुर जानता था कि भारत आक्रमण कर के वो इतिहास रचने वाला है, इस लिए उस ने इन आक्रमणों का अपनी पुस्तक 'मल्फुज़त - इ - तैमूरी' में लिखा है:-
सन १३९८ में मेरे मन में काफिरों के विरुद्ध आक्रमण कर के इस्लाम का सच्चा प्रतीक बनाने की इच्छा जागृत हुई.  मैंने सुनअ था कि यदि काफिरों की हत्या करो तो गाजी की उपाधि मिलती है और यदि मारे जाओ तो शहीद की उपाधि मिलती है. यही कारण था कि मैंने ये निर्णय किया, किन्तु मैं दुविधा में था कि मैं आक्रमण चीन के काफिरों पर करूँ अथवा भारत के काफिरों और मुशरिकों  पर. इस संबंध में मैंने शकुन जानने के लिए कुरान खोली. जो आयत खुली वो थी; ऐ नबी, काफिरों से युद्ध करो ताकि वो तुम में कठोरता पाएं. तत्पश्चात, उस ने अपने अधिकारियों से कहा,"हिंदुस्तान पर मेरे आक्रमण का उद्देश्य मोहम्मद के नियमों के अनुसार युद्ध करना है. हम उस राष्ट्र के वासियों को सच्चे संप्रदाय में परिवर्तित कर देंगे और उस भूमि को कुफ्र और अनेक देवी-देवतायों की पूजा से बचा लेंगे. तथा उनके मंदिरों और मूर्तियों को उखाड़ फेंकेगे और अल्लाह की दृष्टि में मुजाहिद बन जायेंगे.
आगे ये दरिंदा लिखता है,"इस समय इस्लाम के विद्वान् मेरे पास आये और उनसे काफिरों और मूर्तिपूजकों पर युद्ध करने के औचित्य पर उन्होंने कहा कि ये इस्लाम के प्रत्येक सुल्तान का और हर उस व्यक्ति का दायित्व है जो मानता है कि,'अल्लाह के अतिरिक्त कोई और इश्वर नहीं है और मोहम्मद उस का रुसूल है' वो अपने संप्रदाय को सुदृढ़ बनाने के लिए जिहाद करे और अपने संप्रदाय के शत्रुयों से युद्ध करे." और उन्होंने कहा कि हर सच्चे मुसलमान का कर्त्तव्य है कि वो ऐसा करे. जब ये शब्द अधिकारियों के कानों में पड़े तो उन का मन हिंदुस्तान पर जिहाद करने के लिए प्रसन्न हो गए. वो अपने घुटनों के बल बैठ गए और कुरान का फ़तेह वाला अध्याय दोहराने लगे.
 क्या इन्हें पढने के पश्चात कहीं लगता है कि तैमुर भारत का धन लूटने आया था. उस का एक ही उद्देश्य था. भारत की पवित्र भूमि को अपवित्र करना, जैसा कि ७१२ से लेकर अंग्रेजों के आने तक सभी इस्लामी डकैतों ने किया था. इस तैमुर लंग ने १६ दिसंबर, १३९९ को दिल्ली में १,००,००० हिंदुयों के सर काट दिए थे और दिल्ली को तहस नहस कर दिया था.
यदि आप गाँधी परिवार के तलुवे चाटने वालों के सामने ये तथ्य रखते हैं तो वे तथ्यों को तो झुठला नहीं पाते इसलिए दूसरा पैंतरा अपनाते हैं. वो कहते हैं कि यदि ये सत्य वे छुपा रहे हैं तो भारत की एकता और अखंड़ता की रक्षा के लिए ऐसा किया होगा. जहां तक अखंड़ता का प्रश्न है तो भारत माता के तीन खंड वर्तमान भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश बनाने में इसी नेहरु ने अहम् भूमिका निभायी थी. ऐसे कुतर्क दे कर इतिहास से खिलवाड़ एक अक्षम्य अपराध होना चाहिए. विश्व भर के इतिहासकारों का और सभ्रांत व्यक्तियों का एकमत है कि इतिहास जैसा हो उसे वैसा ही बताया जाना चाहिए ताकि उस से शिक्षा ले कर हम भूतकाल में हो चुकी त्रुटियों को दोहराने से बच जाएँ.

महमूद गज़नवी - नेहरु के अनुसार

नेहरु ने केवल तैमुर की दरिंदगी और सांप्रदायिक उन्माद को ही छुपाने की चेष्टा की हो ऐसा भी नहीं है. उन की कृपा दृष्टि सभी इस्लामी आक्रान्ताओं पर थी. ऐसा ही एक दरिंदा था महमूद गज़नवी. इस का विवरण हमारा ये प्रथम प्रधान मंत्री कैसे देता है, उसे भी देखिये.
वो एक योधा अधिक था और कट्टरपंथी कम था. उस ने संप्रदाय का उपयोग अपनी विजय के लिए किया था. उस के लिए भारत केवल एक ऐसा स्थान था जहां से उस ने धन तथा अन्य वस्तुएं लूट कर अपने साथ लेकर जानी थी. वो अपने नगर गज़नी को एशिया के अन्य भव्य नगरों जैसा भव्य बनाना चाहता था, इसलिए वो भारत से कलाकारों और भवन निर्मातायोन को लेकर गया था.
महमूद गजनवी - इस्लामी समकालीन इतिहासकारों के अनुसार

इसी महमूद के सन्दर्भ में समकालीन ऐतिहासिक संकलन क्या बताते है उसे भी देखें. निम्नलिखित वर्णन तारीख - इ - यामिनी, 'रुसत उस सफा' तथा तारीख - इ - फ़रिश्ता से लिया गया है.
सुल्तान महमूद कुरान का एक महान ज्ञाता और व्याख्याकार था. वो जहां भी जाता, लोगों को मुसलमान बनाने लग जाता. कई छोटे राज्यों के राजकुमार उस से युद्ध किये बिना ही इस डर से भाग खड़े होते थे कि यदि वे महमूद के वश में हो गए तो या तो उन्हें मौत के घात उतार दिया जाएगा अथवा मुसलमान बना दिया जाएगा. इस सन्दर्भ में एक विवरण उल्लेखनीय है. भीमपाल नामक एक राजा ने चाँद राय को भाग जाने की मंत्रणा दी थी ताकि जिस प्रकार भीमपाल के प्रियजनों को महमूद ने मुसलमान बना दिया था, वो चाँद राय को भी मुसलमान बना देगा.
वो जहां भी गया, वहाँ पर उस ने मस्जिदों और मदरसों की स्थापना की और मौलवियों की नियुक्ति कर दी.
अलबेरुनी जो महमूद के साथ आया था, इस सन्दर्भ में लिखता है:
इस राजकुमार ने जिहाद के लिए भारत पर आक्रमण किया और तीस से अधिक वर्षों तक ये क्रम जारी रहा. अल्लाह उस पर और उस के पिता पर दया करे! महमूद ने इस राष्ट्र के वैभव को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया है और कई महान अभियान किये हैं जिन से हिन्दू रेत के कणों की भांति सभी दिशायों में बिखर गए हैं. उन के बिखरे हुए टुकड़े देख कर हर मुसलमान की कट्टर घृणा को आनंद अनुभव होता है. यही कारण है कि हिन्दू ज्ञान विज्ञानं हमारे द्वारा विजय किये गए क्षेत्रों से पलायन कर गया है और वहाँ चला गया है जहां अभी हमारे हाथ नहीं पहुंचे हैं.
महमूद गज़नी का कला प्रेम

इन तथ्यों से स्पष्ट है कि वो यहाँ पर धन लूटने नहीं आया था अपितु कुरान और हज़रत मोहम्मद के नियमों के अनुसार जिहाद करने के लिए आया था. उस का उद्देश्य था हिन्दू धर्म की समाप्ति और इस्लाम का पूर्ण स्थापन. कहीं ऐसा तो नहीं कि नेहरु एक देव पुरुष थे जो अपने जन्म से सैंकड़ों वर्ष पूर्व जन्मे व्यक्तियों की मानसिकता भी समझ लेते थे, वो भी जब वो व्यक्ति अपने संबंध में कुछ और ही कहता हो? यदि ऐसा है तो वास्तव में वो एक महान व्यक्ति थे न कि एक मिथ्याभाषी सत्ता लोलुप नेता.
चलिए देखें झूठ का पुलिंदा महमूद गज़नवी के लिए और क्या कहता है. नेहरु के अनुसार:-
वो भवनों में अधिक रूचि लेता था और मथुरा नगरी से अत्यंत प्रभावित था. उसने लिखा है,"यहाँ सहस्रों भवन है जो कि एक मुसलमान की दृढ़ता जितने दृढ हैं. यदि गज़नी को ऐसा नगर बनाने में करोड़ों दीनार का व्यय होगा और कम से कम २०० वर्ष लगेंगे, वो भी तब संभव होगा यदि कुशलतम निर्मातायों की सहायता ली जाएगी.
 नेहरु के इस वर्णनसे ऐसा प्रतीत होता है कि वो एक संवेदनशील व्यक्ति था जो भारत के निर्माण कौशल से प्रभावित था. यहाँ युधिष्ठिर के अर्ध सत्य की धूर्तता का परिचय मिलता है क्योंकि इसके पश्चात् उस ने क्या किया था ये चतुराई से छुपा दिया गया है. इस का वर्णन हमें मिलता है तारीख - इ - यामिनी में.
नगर के मध्य में एक विशाल मंदिर है जो अन्य सभी मंदिरों से भी दृढ है. इसका न तो व्याख्यान किया जा सकता है और न ही चित्र में दर्शाया जा सकता है. यदि ऐसा भव्य भवन कोई निर्मित करना चाहे तो उसे न्यूनतम २,००,००० दिनार का व्यय करना पड़ेगा, और यदि कुशलतम निर्मातायों को लगाया जाये तो इसमें २०० वर्ष का समय लगेगा. यहाँ कि मूर्तियों में पांच ऐसी हैं जो कि प्रत्येक पांच गज ऊँची है और लाल स्वर्ण से निर्मित है. इन में से एक की आँखों में दो माणिक जड़े हैं जो इतने मूल्यवान हैं कि यदि इन्हें बेचा जाए तो ५०,००० दिनार का मूल्य मिल सकता है.  एक अन्य प्रतिमा में एक विशाल नीलमणि है जो कि जल की भांति पारदर्शी है और स्फटिक जैसी चमक लिए हुए है. सभी मूर्तियों में से निकाले गए स्वर्ण का भार ९८,३०० मिस्कल है. चांदी की बनी हुई लगभग २०० मूर्तियाँ हैं किन्तु उन का भार उन के टुकड़े किये बिना नहीं जाना जा सकता. सुल्तान ने आदेश दिया कि सभी मंदिरों को मिटटी का तेल डाल कर भस्म करके धूल में मिला दिया जाए.
यहाँ उल्लेखनीय है कि ये वृतांत उसी पुस्तक (इलिअत एंड डाउसन कृत 'हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया एस टोल्ड बाई इट्स हिस्तौरीयंस) में दिया है जिस में से नेहरु ने सामग्री ली है.
ऊपर दिए दोनों वर्णनों में असमानता देखने के पश्चात् इसमें आश्चर्य नहीं होता कि आज तक भी हिंदुयों पर किये गए जघन्य अपराधों और अत्याचारों को मुस्लिम तुष्टिकरण नीति के अंतर्गत छिपा दिया जाता है.
नेहरु और उस के वंशज जो कि सबसे घोर पृथकतावादी हैं अपनी धूर्तता से अन्य राष्ट्रवादी संगठनों पर आरोप लगाते आये हैं. कहते हैं कि पाप का घड़ा जब भर जाता है तो फूटता है. आशा है कि वो समय आ गया है.
नेहरु की नीति धर्म निरपेक्षता की है, इस में तो वे शत प्रतिशत सत्यवादी हैं. धर्म निरपेक्षता का अर्थ है धर्म का पक्ष न लेना और यही नेहरु ने लेखक के रूप में किया भी है. लेखक का, विशेषकर इतिहास के लेखक का, ये धर्म है कि वो सत्य लिखे और सत्य का भाषण करे. नेहरु ने लेखक के इस धर्म का पालन न करके अपनी धर्म निरपेक्षता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वो पूर्णतया सटीक है. फलस्वरूप इस लेखक जैसे साधारण नागरिकों का ये कर्त्तव्य है कि वो धर्म का पालन करें और सत्य लोगों तक पहुंचाएं.

बाबर - नेहरु  के अनुसार

नेहरु की इस धर्म निरपेक्षता की झलक बाबर के विषय में भी मिलती है. नेहरु के अनुसार:-
बाबर एक सभ्रांत व्यक्ति था जिस से मिल कर किसी को भी प्रसन्नता का अनुभव हो. उस में कोई साम्प्रदायिकता नहीं थी तथा उस ने कोई विनाश नहीं किया, जैसा कि उस के पूर्वजों ने किया था. वो एक आकर्षक व्यक्ति था जो कला और साहित्य में रूचि रखता था.
यहाँ एक बार नेहरु की अन्तर्यामी प्रवृति अपने चरम पर प्रतीत होती है क्योंकि  ये जानकारी तो बाबर को भी अपने संबंध में नहीं थी. इस व्यख्यान से तो ऐसा प्रतीत होता है कि बाबर एक सर्वकला सम्पूर्ण व्यक्ति था,  जिस में केवल गुण ही गुण थे और वो मानवता के लिए एक अनूठी देन था.

बाबर - अपने बाबर नामे के अनुसार

बाबर अपने द्वारा लिखे हुए बाबरनामा में अपने कला प्रेम के संबंध में लिखता है:
चंदेरी का राज्य कुछ समय से दारुल हर्ब बन गया था और उस पर सांघा के सर्वोच्च अधिकारी मादिनी राव का शासन था, जिसके चार अथवा पांच हज़ार काफिर वहाँ पर नियुक्त थे. अल्लाह की रहमत से, १५२७-२८ में मैंने आक्रमण कर के एक दो घड़ी में ही काफिरों का संहार कर दिया और चंदेरी को इस्लाम के अधीन कर दिया.
नेहरु के अनुसार इसे  साम्प्रदायिकता नहीं कहते. संभवतः कला प्रेम कहते होंगे
 बाबर ने अपने निर्णय के सन्दर्भ में एक कविता लिखी है, जिस के अनुसार:-
इस्लाम की खातिर मैं बना एक  आवारा 
मैंने हिन्दुओं और काफिरों से जंग की .
मैंने सोचा मैं बनूँगा शहीद . 
अल्लाह का शुक्रिया मैं बन गया मुजाहिद 

इस के पश्चात इस राजकुमार उदार विचारों को समझने में अधिक कठिनाई नहीं होती.


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