

ये एक लगभग छः से आठ इंच लम्बा लोहे का उपकरण है जिसे अब जंग लग चुका है. लेकिन ये बीती सदियों में उन लोगों के विरुद्ध बहुत प्रभावकारी सिद्ध होता था जो चर्च अथवा बाइबल अथवा पोप के विचारों से सहमत नहीं होते थे. इस के एक छोर पर लगा खांचा ठोढ़ी को अपने घेरे में लेता था और दूसरा उस हड्डी को जो गला समाप्त होते और छाती आरम्भ होने पर गले के नीचे एक खड्डा सा बनाती है. मध्य में जो छेद दिख रहे हैं, उनमें से चमड़े का एक पट्टा, जूते की डोरी की भांति निकलता था. इस पट्टे को नास्तिक की गर्दन के पीछे कस दिया जाता था. इसका एक लाभ तो ये था कि अब इस नास्तिक पर कैसी भी यातना कर ली जाए, ये चिल्ला नहीं सकता था. दूसरे, ये अपने आप में ही एक यातना थी. तीसरे यदि इसे लोगों के बीच लेजाकर जीवित जलाना हो तो वो किसी को बता नहीं पायेगा कि उसके साथ यातना कक्ष में क्या क्या बीता था.
मुकुट (Headgear)
यूं तो देख कर ही समझ में आ गया होगा कि ये किस काम आता होगा. आपको इस के निर्माता की संवेदनशीलता और इसे प्रयोग में लाने वाले इन्कुइसीटरों (चर्च के वो अधिकारी दो ये कार्य करते थे) और इन्कुइसिशन का आदेश देने वाले पोप के दया भाव के संबंध में अनुमान तो हो ही गया होगा. इस में एक ओर जो छल्ले हैं, उनमें से एक पेच निकलता है जिसे घुमा कर इस घेरे को इच्छानुसार कसा अथवा ढीला किया जा सकता है.
जब होली फादर बाइबल और यीशु का ज्ञान तुम्हें दे रहे थे, तब तुम्हें समझ में नहीं आया था. अब फादर जब इस पेच को कसना आरम्भ करेगा तो खोपड़ी में में या तो यीशु का ज्ञान जाएगा अथवा लोहे के कील.मुखौटा (Mask)
यहाँ जो विभिन्न प्रकार के मुखौटे आप देख रहे हैं, ये उन लोगों को पहनाये जाते थे जो चर्च के मत का विरोध करते थे.
ये सुन कर पहला विचार मन में आता है कि ये तो एक हल्का सा दंड है. मुझे भी ऐसा ही लगा था. तनिक ध्यान से पहले दो मुखौटों से निकल रहे लंबे कानों को देखिये. ऐसा लगता है मानों मुखौटे को हास्यास्पद बनाने के लिए ये कान लगा दिए गए हों. ये उस्तरे की धार जैसे धारदार हैं. अभी भी नहीं समझे. जब ये धातु का बना मुखौटा चर्च अथवा जीसस के प्रेम और करुणा को न स्वीकार करने वाले नास्तिक को पहनाया जाता था तो उस व्यक्ति के कान इस पिंजरे जैसे मुखौटे से बाहर निकल रहे होते थे. अब इन उस्तरे जैसे कृत्रिम कानों को नीचे को एक झटका दिया तो क्या होगा?
खच्च! कान कट कर गिर जाएगा. है न फादर की बात मानने योग्य?
अब इन सभी मुखौटों की एक समानता देखिये. ये सब के सब धातु के बने हुए हैं. इसका भी एक विशेष कारण है. इन्हें आग में तपाने के पश्चात ही नास्तिकों को पहनाया जाता था. कुछ विवरण ऐसे भी हैं जिनके अनुसार मुखौटा पहनाने के उपरान्त, पिघला हुआ सीसा मुंह में अथवा कानों में डाला जाता था.
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