सोमवार, 27 दिसंबर 2010

जीसस क्राइस्ट की सौगंध - ३

जब शपथ पत्र पर रक्त से नाम लिख दिया जाता है तब इस समारोह का अंतिम चरण आरम्भ होता है.
सुपीरिअर बोलता है:
अब तुम खड़े हो जाओ और मैं तुम्हें प्रश्न उत्तर के रूप में सम्प्रदाय के उन सिद्धांतों के विषय में निर्देश दूंगा जिन्हें ' सोसाइटी ऑफ जीसस' के हर उस सदस्य को जान लेना आवश्यक है जो कि इस स्तर पर पहुँचता है, जानने आवश्यक हैं. सर्वप्रथम, एक जेसुइट भाई की भांति एक और भाई के साथ परस्पर 'क्रॉस' का चिन्ह बनाओगे, जैसा कि कोई भी रोमन कैथोलिक बनाता है; फिर एक अपनी हथेलियों को खुला रख के अपनी कलाइयों को क्रॉस करेगा और उत्तर में दूसरा उसके पैरों को एक के ऊपर एक क्रॉस करेगा; पहला अपने दायें हाथ की पहली अंगुली से बाएं हाथ की हथेली के मध्य में इशारा करेगा; और दूसरा अपने बाएं हाथ की पहली अंगुली से अपने दायीं हथेली के मध्य की ओर इशारा करेगा; इसके बाद पहला अपने दायें हाथ से अपने सर को छूते हुए उसके चारों ओर एक चक्र बनाएगा; फिर दूसरा अपने बाएं हाथ की पहली अंगुली से उसके ह्रदय के नीचे छुएगा; पहला अपने दायें हाथ से दूसरे के गले पर ये बनाएगा, और दूसरा, कटार के साथ पहले के पेट और उदर पर इसे बनाएगा. फिर पहला बोलेगा इउस्टम; दूसरा उत्तर देगा नेकर; पहला बोले गा रेगेस; दूसरा उत्तर देगा इम्पाइयस. फिर पहला एक विशेष प्रकार से मोड़ा हुआ पत्र भेंट करेगा और दूसरा उसे चार बार लम्बाई में काटेगा और इसे खोलने पर उसमें एक क्रॉस के सर और भुजाओं पर तीन बार जेसू लिखा हुआ होगा. फिर तुम्हें आगे आने वाले प्रश्न और उत्तर प्राप्त होंगे:
इस प्रकार की प्रश्न - उत्तर की श्रृंखला जो इसाई सम्प्रदाय में प्रयोग की जाती है कोई सूचना देती है, अंग्रेजी में 'catechism' कहलाती है.

प्रश्न - तुम कहाँ से आये हो?
उत्तर - पवित्र सम्प्रदाय से.
प्रश्न - तुम किस के सेवक हो?
उत्तर - रोम के पवित्र सम्प्रदाय का, पोप का, विश्व भर में फैली रोमन कैथोलिक चर्च का.
प्रश्न - तुम्हें निर्देश कौन देता है?
उत्तर - सेंट इग्नाशिअस लोयोला, जिसने सोसाइटी ऑफ जीसस अथवा सोल्जर्स ऑफ जीसस क्राइस्ट की स्थापना की, का उत्तराधिकारी.
प्रश्न - तुम्हारा स्वागत किस ने किया?
उत्तर - एक सफ़ेद केशों वाले सम्माननीय पुरुष ने.
प्रश्न - किस प्रकार?
उत्तर - एक नंगी कटार से, जब मैं घुटनों के बल क्रॉस के समक्ष, पोप और हमारे मत के ध्वज के प्रति झुका हुआ था.
प्रश्न - क्या तुम ने कोई शपथ ली थी?
उत्तर - हाँ ली थी, कि मैं नास्तिकों, उनके शासन और शासकों का नाश करूंगा, किसी आयु, लिंग और स्थिति पर दया न करते हुए. मैं एक लाश की भांति न तो कोई अपना विचार रखूंगा और न इच्छा और सुपीरिअरों के निर्देशों का बिना झिझक के पालन करूंगा.
प्रश्न - क्या तुम ऐसा करोगा?
उत्तर - हाँ, करूंगा.
प्रश्न - तुम कैसे यात्रा करते हो?
उत्तर - पीटर मछुआरे की नाव में.
प्रश्न - तुम कहाँ यात्रा करोगे?
उत्तर - विश्व में चारों ओर.
प्रश्न - तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य?
उत्तर - अपने सुपीरिअरों और अधिकारियों के निर्देशों के पालन के लिए, पोप की इच्छा पूर्ती के लिए और अपनी शपथ को पूर्ण करने के लिए.
अब तुम जाओ और विश्व भर की समस्त भूमि पर पोप का नाम ले कर अधिकार कर लो. जो पोप को जीसस के पादरी और प्रतिनिधि के रूप में नहीं मानता, उसे शापित समझो और उस को नष्ट कर दो.
इस प्रकार समारोह का समापन होता है और उजले चोगे में और चेहरे पर मुस्कान लिए डकैत निकलते हैं विश्व विजय के अभियान पर. 
अब विचार कर के देखिये कि जब कोलंबस भारत की खोज के लिए निकला था तो किस उद्देश्य से निकला था?उसके पीछे पहुंचे इसाईओं ने वहाँ की मूल सभ्यताओं इनका और माया का नाश कर दिया. आज मूल निवासियों को पिछड़ा हुआ कहा जाता है और वहाँ पर पूर्ण रूप से इसाई राज्य है.
प्राचीन उनानी सभ्यता किस ने नष्ट कर दी?
जब पुर्तगाली वास्को डि गामा  वर्तमान कोज़ीखोड़ (उस समय का कालीकट) के बंदरगाह पर पहुंचा था तो उसने क्या किया था?
वो था सन १४९८, वास्को डि गामा २५ समुद्री पोत अपने बेड़े में ले कर कालीकट के बंदरगाह पर पहुंचा था. इन में से १० पोत केवल गोला बारूद से भरे हुए थे. इस समृद्ध नगर के किनारे जो २० पोत खड़े थे, उन्हें इन डकैतों ने लूट लिया था और इनके लगभग ८०० कर्मियों को बंधक बना कर उनके हाथ, कान और नाक काट दिए थे. इसका उद्देश्य था स्थानीय निवासियों में भय स्थापित करना और वहाँ पोप का साम्राज्य खड़ा करना.
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि वास्को डि गामा सोसायटी ऑफ जीसस की स्थापना से लगभग ५० वर्ष पूर्व आया था. उस समय इसाई मिशनरी डकैतों के रूप में आते थे लेकिन लोयोला ने रणनीति में परिवर्तन कर के उसे शिक्षा और चिकित्सा का उदार चेहरा पहना दिया. दोनों के उद्देश्य में यदि भेद है तो केवल इतना कि अब सभ्यताओं को नष्ट करने का कार्य व्यवस्थित ढंग से हो रहा है. 
लोयोला का सहायक फ्रांसिस ज़ेविअर जब भारत आया तो उसने देखा कि भारत में जिन्हें इसाई बनाया जाता था, वो शीघ्र ही फिर से हिन्दू बन जाते थे. उसने १५४५ में पोप जॉन त्रित्तिय को गोवा में इन्कुइसिशन (inquisition) स्थापित करने का आग्रह किया था.
आज गोवा में जो चर्च दिखाई देते हैं उन में से अधिकतर हिन्दू मंदिरों के खंडहरों के ऊपर बनाए गए हैं और गोवा इन्कुइसिशन के चलते हिन्दुओं पर बर्बरता पूर्वक अत्याचार किये गए थे.
आज जब कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ कर भारतीय बड़े होते हैं तो वो अपनी कहीं विकसित सभ्यता को ही घृणा की दृष्टि से देखने लग जाते हैं. धीरे धीरे डकैतों की विचारधारा प्राचीनतम सभ्यता को नष्ट करती जा रही है.

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