इस्लाम की मान्यता के अनुसार नबी मोहम्मद एक सम्पूर्ण पुरुष था और अल्लाह ने उसे सभी मुसलामानों के लिए एक आदर्श के रूप में भेजा है. इसका वर्णन कुरान में इस प्रकार है:-
لَّقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّـهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّـهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّـهَ كَثِيرًا
निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है अर्थात उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे
Indeed in the Messenger of Allah (Muhammad SAW) you have a good example to follow for him who hopes in (the Meeting with) Allah and the Last Day and remembers Allah much.
इसलिए जिन्होंने पढ़ा हो कि मोहम्मद बालों में मेहंदी लगाता था, तो वो भी मेहँदी लगाते हैं. जिसे पता लगता है कि मोहम्मद मूंछ कटवाता था और दाढ़ी रखता था, वो भी वैसा ही करता है. इसका अर्थ है कि यदि मोहम्मद ने अपने जीवन काल में कोई भी कार्य किया हो तो प्रत्येक मुसलमान उसे अक्षरशः पालन करने का प्रयत्न करता है क्योंकि ये उस के सम्प्रदाय की मांग है.
मोहम्मद ने अपने जीवन काल में जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये थे, उनका संकलन मुसलामानों ने किया है. मोहम्मद के जीवन की इन घटनाओं के विवरण को हदीस कहा जाता है जिसका बहुवचन है अहादीस. इन संकलनों को कई पुस्तकों में संकलित किया गया है किन्तु इन में से छः ऐसी हैं जिन्हें सर्वमान्य कहा जाता है. इन में से भी दो: सही बुखारी और सही मुस्लिम, सर्वोच्च मानी जाती हैं. इन में वर्णित है कि मोहम्मद ने अपने जीवन काल में काफिरों का नरसंहार किया था, मूर्तियों को तोड़ा था, काफिरों को मारने के पश्चात उन की विधवाओं से निकाह किया था (जुवैरिय्या, सफिय्या), उन्हें अपनी उपस्री अर्थात रखैल (रेहाना) बनाया था और उन्हें गुलामी के लिए बेच कर धन कमाया था.
इसलिए जब मुसलामानों ने भारत में शासन स्थापित किया तो मोहम्मद और कुरान के अनुसार हिन्दुओं की महिलाओं से ऐसा ही व्यवहार किया.
इसलिए जब मुसलामानों ने भारत में शासन स्थापित किया तो मोहम्मद और कुरान के अनुसार हिन्दुओं की महिलाओं से ऐसा ही व्यवहार किया.
भारतवर्ष में जो धर्म और संस्कृति चली आ रही है, उसके अनुसार अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री से संबंध बनाना एक निंदनीय कार्य माना जाता था, किन्तु मुसलामानों को काफिरों की महिलाओं से दुष्कर्म करना कुरान में मान्य किया गया है. सूरा ४ की आयत २४ इसे दर्शाती है:-
وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۖ كِتَابَ اللَّـهِ عَلَيْكُمْ ۚ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَاءَ ذَٰلِكُمْ أَن تَبْتَغُوا بِأَمْوَالِكُم مُّحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ ۚ فَمَا اسْتَمْتَعْتُم بِهِ مِنْهُنَّ فَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَاضَيْتُم بِهِ مِن بَعْدِ الْفَرِيضَةِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا
इस का अनुवाद इस प्रकार है:
और शौहरदार औरतें मगर वह औरतें जो (जिहाद में कुफ्फ़ार से) तुम्हारे कब्ज़े में आ जाएं हराम नहीं (ये) ख़ुदा का तहरीरी हुक्म (है जो) तुमपर (फ़र्ज़ किया गया) है और उन औरतों के सिवा (और औरतें) तुम्हारे लिए जायज़ हैं बशर्ते कि बदकारी व ज़िना नहीं बल्कि तुम इफ्फ़त या पाकदामिनी की ग़रज़ से अपने माल (व मेहर) के बदले (निकाह करना) चाहो हॉ जिन औरतों से तुमने मुताअ किया हो तो उन्हें जो मेहर मुअय्यन किया है दे दो और मेहर के मुक़र्रर होने के बाद अगर आपस में (कम व बेश पर) राज़ी हो जाओ तो उसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और मसलेहतों का पहचानने वाला है
And all married women (are forbidden unto you) save those (captives) whom your right hands possess. It is a decree of Allah for you. Lawful unto you are all beyond those mentioned, so that ye seek them with your wealth in honest wedlock, not debauchery. And those of whom ye seek content (by marrying them), give unto them their portions as a duty. And there is no sin for you in what ye do by mutual agreement after the duty (hath been done). Lo! Allah is ever Knower, Wise.
परिणाम स्वरुप, जब इस्लामी आक्रमणकारियों ने भारत में हमले किये और यहाँ शासन स्थापित किया तो हिन्दू महिलाओं के साथ भी हर प्रकार के घृणित व्यवहार किये गए. मोहम्मद की मृत्यु के पश्चात, ६३२ से लेकर ७१२ तक जितने भी हमले भारतवर्ष पर किये गए, इस्लामिक आक्रमणकारी हिन्दू राजाओं के हाथों या तो परास्त हो गए अथवा मारे गए. इन वर्षों में महिलयों की इस्लामी आक्रान्ताओं द्वारा की जाने वाली दुर्दशा की सूचना हिन्दुओं तक पहुँच चुकी थी.
मुसलामानों के विपरीत, यहाँ के क्षत्रिय युद्ध भी नियमों की मर्यादा में करते थे और महिलाओं में उच्च कोटि के संस्कार थे. परिणामतः आरम्भ हुई एक ऐसी परंपरा जो आज सती के नाम से जानी जाती है.
इस का जो अधिक उपयुक्त शब्द है, वह है जौहर जो जीव हर की संधि से बना है और इस का अर्थ है जीवन को देना. जब ७१२ में सिंध में मोहम्मद बिन क़ासिम ने वहाँ के शासक दाहिर का रणभूमि में वध कर दिया था तो ये सूचना पा कर उसकी बहन बाई ने रावर दुर्ग में उपस्थित सभी महिलायों को संबोधित कर के कहा था:-
अब ये तय है कि हम इन चांडालों और गोमांस भक्षकों के चंगुल से नहीं बच सकतीं. हमारी सुरक्षा और स्वतंत्रता की कोई आशा नहीं है इसलिए हम लकड़ी, कपास और तेल एकत्रित कर के आत्मदाह कर लें ताकि हम अपने पतियों से (स्वर्ग में) शीघ्र ही मिल जाएँ. इस के लिए कोई बाध्य नहीं है. जो शत्रु से याचना करना चाहें वो इस के लिए स्वतंत्र हैं.
वो सब एक मत थीं और उन्होंने एक घर को आग लगा कर उसमे अपने आप को भस्म कर लिया. जो महिलाएं दुर्ग से बाहर थीं, वो इतनी भाग्यशाली नहीं रहीं. मोहम्मद क़ासिम अपने मुसलमान सैनिकों के साथ तीन दिन तक वहाँ रुका था, जिन में उसने ६,००० योद्धाओं का वध किया था और लगभग ६०,००० बंधक बनाए थे. इन सब महिलाओं और बच्चों को मुसलमान बना दिया गया था. इन में ३० युवतियां राजघराने की थीं. इन्हें इराक के शासक हज्जाज के पास भेज दिया गया. जब हज्जाज को ये बंधक मिले तो उन के साथ मोहम्मद बिन क़ासिम ने राजा दाहिर का कटा हुआ सर भी भेजा था. इस कटे सर को देख कर हज्जाज ने अल्लाह का शुक्रिया अदा किया और नमाज़ अदा की. इन बंधकों में से २०% को उस समय के खलीफा वालिद को भेज दिया गया. खलीफा ने इन में से कुछ को बंदियों के रूप में बेच दिया और कुछ को भेंट स्वरुप मित्रों में बाँट दिया.
प्रत्येक लूट के माल (जिसे ग़नीमत भी कहते हैं) में से २०%, वो धन हो अथवा महिलाएं, अल्लाह और मोहम्मद के लिए होती थीं. ये परंपरा भी इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद ने आरम्भ की थी. मोहम्मद की मृत्यु (६३२) के पश्चात, जो भी खलीफा होता था, उसे अल्लाह का प्रतिनिधि मान कर २०% ग़नीमत उसे दी जाती थी. इस से सम्बंधित आयत है सुरा ८ की आयत ४१:-وَاعْلَمُوا أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَيْءٍ فَأَنَّ لِلَّـهِ خُمُسَهُ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ إِن كُنتُمْ آمَنتُم بِاللَّـهِ وَمَا أَنزَلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا يَوْمَ الْفُرْقَانِ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ ۗ وَاللَّـهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाह का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त हैएक अन्य अनुवाद इस प्रकार है:-
और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पॉचवॉ हिस्सा मख़सूस ख़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाज़िल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है
जब ये पांचवां भाग, खलीफा के पास पहुंचा तो इन बंधकों में राजा दाहिर की बहन की बेटी भी थी. जब खलीफा ने उसे देखा तो उस की सुन्दरता को देखता ही रह गया और विस्मय से अपनी अंगुलियाँ चबाने लगा. अब्दुल्लाह बिन अब्बास भी उसे देख कर ललचा रहा था. खलीफा ने कहा,
मेरे भतीजे, मुझे ये लड़की अत्यंत लुभावनी लग रही है और मैं इसे अपने लिए रखना चाहता हूँ. लेकिन यदि तुम चाहते हो तो तुम इसे ले जाओ और इस से अपने बच्चे पैदा करो. इस प्रकार खलीफा की आज्ञा से अब्दुल्लाह उसे ले गया और कई वर्षों तक उसे अपने पास रखा.
चाचनामा - (Elliot and Dowson - pp - 173)
इसके उपरान्त जहां भी हिन्दुओं को ये निश्चित हो जाता कि पराजय हो जायेगी, महिलाएं म्लेच्छों की बांदियाँ बनाने से मर जाना उपयुक्त समझती थीं. इस लेख में कुछ गिनी चुनी घटनाएं सम्मिलित की गयी हैं. इतिहास ऐसी, हिन्दू महिलाओं के रक्त से सनी घटनाओं से भरा पड़ा है, जिन्हें एक राष्ट्रीय षड़यंत्र के अंतर्गत या तो उजागर नहीं होने दिया जाता अथवा उन्हें तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है.
जब अकबर (जिस के हरम में ५,००० महिलाएं थीं) ने चित्तौढ़ पर आक्रमण किया था तो वहाँ भी लगभग ३०० महिलाओं ने जौहर किया था.
अकबरनामा, खंड २, पृष्ठ ४४२
आज भारत और नेपाल तेराई क्षेत्र में जो थारु कबीले के नाम से जाने जाते हैं, उस के पीछे भी परोक्ष रूप से जौहर का हाथ है. जब एक वृद्ध सिसोदिया राजपूत राजा को लगा कि मुसलामानों से युद्ध में पराजय लगभग निश्चित है तो उस ने वीरगति को प्राप्त होने का निर्णय कर लिया और युद्ध क्षेत्र न छोड़ने का निर्णय किया. किन्तु अपनी सुन्दर पुत्रियों को वो मुसलमानों के हाथों से बचाना चाहता था. उसने अपने कुछ विश्वसनीय क्षत्रियों और भील सैनिकों के साथ अपनी पुत्रियों को हिमालय में बसे अपने प्रियजनों के पास जाने के लिए रवाना कर दिया. दुर्भाग्य वश बीहड़ जंगलों में मलेरिया तथा अन्य व्याधियों से अधिकतर योद्धयों की मृत्यु हो गयी. जब अंतिम राजपूत मर गया तो इन राजकुमारियों ने अपने भील रक्षकों से कहा कि वे इन्हीं तेरे के वनों में भीलों से विवाह कर के बस जायेंगी. उन्होंने शर्त रखी कि उनके वंश में सदा महिलाएं ही प्रधान होंगी. वे भोजन तो पकाएँगी किन्तु परोसेंगी नहीं. आज भी परंपरा है कि महिलाएं भोजन थाल में रख कर पुरुषों की ओर पाँव से सरका देती हैं.
कभी कभी इन वीरांगनाओं का भाग्य इन का साथ नहीं देता था. सन १६३४ में जब शाहजहाँ की सेना बुंदेला विद्रोह को कुचल रही थी, तब जुझार सिंह बुंदेला के ओरछा क्षेत्र से मुसलामानों द्वारा कई महिलाओं को बंदी बना कर उनसे बड़ी बर्बरता से व्यवहार किया गया था. जुझार सिंह अपने चौरागढ़ के दुर्ग से बहुत सी महिलायों के साथ दक्षिण की ओर भाग निकला. जब उनके घोड़े बिदक गए तो जुझार सिंह ने उन महिलाओं को मार दिया और बची हुई महिलाओं को लेकर गोलकुंडा पहुंचा. अभी वहाँ महिलाएं जौहर पूरा नहीं कर पाई थीं जब मुसलमान पहुँच गए. कुछ ने अपने को तलवार और खंजर से घायल कर लिया था. मुग़ल इन घायल महिलाओं को भी उठा कर ले गए.
Cambridge history of India, Vol. 4, page 195
अमीर खुसरो, जिसे नेहरु से ले कर आज तक के सब बुद्धिजीवी, एक षड़यंत्र के अंतर्गत इस्लाम के उदार मुखौटे के रूप में प्रस्तुत करते हैं, हमें सन १३०१ में मुसलामानों द्वारा रणथम्बौर पर आक्रमण के संबंध में बताता है कि मुसलमान काफिरों के दुर्ग पर बड़े बड़े पत्थर फेंक रहे थे, जिस से कि हिन्दू भयभीत होने लगे थे. एक माह तक दुर्ग को मुसलामानों ने घेरे रखा. हिन्दुओं को भोजन की इतनी कमी हो गई कि अन्न का एक दाना, सोने के दो टुकड़ों के एवेज में मिलता था.
एक रात, राय (राजा) ने पर्वत के शिखर पर अग्नि जलाई और अपनी स्त्रियों तथा अपने प्रियजनों को उस में झोंक दिया और अपने कुछ स्वामिभक्त सेवकों के साथ मुसलामानों पर हमला कर दिया और मारा गया. इस खुशकिस्मती के दिन रणथम्बौर का सशक्त दुर्ग घृणित राय के संहार से जीत लिया गया.
Elliot and Dowson, Volume - 3, pp 72 - तारीख ऐ अल्लाई
सुल्तान अबुल मुजाहिद मोहम्मद शाह के सैनिकों ने जब सुल्तान के भतीजे बहाउद्दीन को पकड़ने के लिए काम्पिल्य को घेर लिया (जो वहाँ के राजा की शरण में था) तोअफ्रीका से आया हुआ इब्न बतूता लिखता है:
जब उस काफिर (हिन्दू राजा) ने अपने ऊपर आये संकट को भांप लिया. उसका अनाज का भण्डार लगभग रिक्त था और उसे भय था कि मुसलमान उसे बंधक बना लेंगे. उस ने बहाउद्दीन से कहा, "तुम स्थिति को देख ही रहे हो. मैंने अपने कुल के साथ मरने का निर्णय कर लिया है. तुम उस (हिन्दू राजा का नाम लेते हुए) राजा की शरण में चले जाओ, वो तुम्हारी सुरक्षा करेगा". उस ने किसी को उसे राह दिखाने के लिए भेज दिया. फिर उस ने अग्नि जलाई और अपनी पत्नी और पुत्रिओं से कहा,"मैं मरने जा रहा हूँ. तुम में से जो चाहें वो भी ऐसा कर सकते हैं". इसके पश्चात्, सभी महिलाओं ने स्नान किया, अपने शरीर पर चन्दन का लेप लगाया, भूमि को चूमा और अग्नि में कूद गयीं. वे सब मर गयीं. राजा के मंत्रिओं और मुखियाओं की महिलाओं ने भी यही किया. इस के उपरान्त राजा ने स्नान किया, चन्दन कअ लेप लगाया, अपने अस्त्र शस्त्र उठाए और कवच के बिना युद्ध के लिए चल पड़ा. उस के सभी सेवकों ने भी उस का अनुसरण किया. वे तब तक लड़ते रहे जब तक कि मर नहीं गए. नगर के निवासियों को बंधक बना लिया गया. राजा के ११ बेटे भी बंधक बना लिए गए. सुल्तान ने उन्हें मुसलमान बना दिया.
The travels of Ibn Batuta
इन मुसलमान शासकों का घिनौना रूप छिपाने के लिए एक कुतर्क दिया जाता है कि राजपूत अपने झूठे अहंकार के चलते सती अथवा जौहर जैसे कृत्य करते थे. इस का खंडन तारीख ऐ फ़िरोज़ शाही में मिल जाता है. इस का लेखक अब्बास खान लिखता है कि जब काफिर पूरण मल को पता लगा कि उस के पड़ाव को सुल्तान ने घेर लिया है तो वो अपनी प्रिय पत्नी रत्नावली के पास गया और उस का गला काट दिया. इसके पश्चात उसने अपने साथियों से भी ऐसा ही करने को कहा. उन्होंने अपनी महिलाओं का वध कर दिया. इतने में अफगानों ने हिन्दुओं को घेर लिया और चारों ओर से उन्हें मारना आरम्भ कर दिया. काफिरों ने खाड़ी के सूयरों की भांति वीरता दिखाई पर शीघ्र ही मार दिए गए. उनकी जो महिलाएं और प्रियजन बच गए थे, उन्हें बंदी बना लिया गया. इन में से पूरण मल की एक पुत्री और उस के भाई के तीन पुत्रों के अतिरिक्त सभी को मार दिया गया. बाद में पूरण मल की बेटी एक बाज़ीगर को दे दी गयी ताकि उसे बाजारों में नचाया जा सके. तीनों लड़कों को हिजड़ा बना दिया गया ताकि उस का कुल नष्ट हो जाए.
एक और कुतर्क जिस से इस्लामी शासकों की बर्बरता को कम कर के दर्शाने का प्रयत्न होता है वो है कि शत्रु को मारना तो युद्ध नीति के अंतर्गत है, इस में सम्प्रदाय को नहीं लाना चाहिए. यदि इन शासकों ने ये दुर्व्यवहार सम्प्रदाय को ध्यान में न रखते हुए किया हो तो इसे उचित माना जा सकता है. किन्तु वास्तविकता ये है कि ये शासक यहाँ शासन नहीं जिहाद करने आये थे और इसे पूरे गर्व से अपनी ही लेखनी से स्वीकार भी करते थे. इस कुतर्क का उत्तर भी मुसलमान इतिहासकारों की लेखनी से ही मिल जाता है.
प्रस्तुत घटना शाह जहां के शासन काल की है जब औरंगजेब ने कल्याणी पर आक्रमण किया था. मुग़ल सेना ने एक दुर्ग को घेर लिया था. उल्लेख इस प्रकार है:
कुछ ऐसा ही तैमुर लंग ने किया था. उसकी आत्मकथा मल्फुज़ती तैमूरी में लोनी नामक दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त वो उल्लेख करता है:घिरे हुए सैनिकों ने कड़ा संघर्ष किया और बानों और रॉकेटों की वर्षा कि. हथगोले, मिटटी तेल के गोले और जलती हुई वस्तुएं शाही सेना पर गिराई, लेकिन आक्रमणकारी वीरता से आगे बढ़ते रहे क्योंकि जीत निश्चित थी. इस अवसर पर, दिलावर हब्शी, जो इस दुर्ग की सुरक्षा आदिल खान की ओर से अपने २,५०० सैनिकों के साथ कर रहा था अपनी स्थिति को भांप गया. उसने क्षमा याचना के लिए एक पत्र भेज कर आत्म समर्पण का प्रस्ताव दिया. क्योंकि सभी सैनिक मुसलमान थे, सभी को अपनी संपत्ति, पत्निओं और प्रियजनों सहित जाने की अनुमति मिल गयी. राजकुमार औरंगज़ेब ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया.
बहुत से राजपूतों ने अपनी पत्नियों और बच्चों को अपने घरों में ले जाकर उन्हें जला दिया और इसके उपरान्त वो युद्ध क्षेत्र में डट गए और मारे गए. दुर्ग के अन्य सैनिकों ने भी युद्ध किया, जिन में से कई मारे गए और कई बंधक बना लिए गए. अगली प्रातः मैंने आदेश दिया कि मुसलमान सैनिकों को क्षमा कर दिया जाए और काफिरों को तलवार से नरक में भेज दिया जाए. मैंने ये आदेश भी दिया कि आस पास के घरों में से सय्यिदों, शेखों और मुसलामानों के घरों को सुरक्षित रख के अन्य सभी घरों को लूट लिया जाए और दुर्ग को नष्ट कर दिया जाए. ऐसा ही किया गया और हमें बड़ी मात्र में लूट का माल मिला.
यहाँ दिए गए सभी उल्लेख मुसलमान इतिहासकारों के लिखे हुए हैं. ये आठवीं शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक की घटनाओं को दर्शाते हैं कि किस प्रकार हिन्दुओं को इस्लामी जिहाद का सामना करना पड़ा और आज भी करना पड़ रहा है. जिस जौहर और सती प्रथा को हिन्दू धर्म की रूढ़िवादिता कह कर हिन्दू धर्म को त्रुटिपूर्ण ढंग से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया जा रहा है, वो वास्तव में इस्लाम की देन है. आज परिस्थितियां भिन्न हैं इसलिए हमारा सौभाग्य है कि हमारी बहनों और बेटियों को ऐसे नकारात्मक उपाय करने की आवश्यकता नहीं है.
ये उल्लेख राजवंशों और सैनिकों से सम्बद्ध थे. एक साधारण हिन्दू महिला को विशेषतः यदि वो विधवा हो गयी हो तो किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा, इसकी तो हम कदाचित कल्पना भी नहीं कर सकते. अगले लेख में सती प्रथा को बढ़ने में अंग्रेज़ों की नीतियों ने क्या योगदान किया था, इसकी चर्चा करने की चेष्टा करूंगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें