बुधवार, 8 दिसंबर 2010

सफिय्या बिन्त हुवाय

आक्रमण  
सन ६२८ में जब मोहम्मद की आयु लगभग ६० वर्ष थी, उसने नौंवां निकाह सफिय्या नामक १७ वर्षीया युवती से किया था.  अगस्त ६२८ में, मोहम्मद ने अपने १६०० मुसलामानों के साथ खैबर पर आक्रमण किया. इन में १००  घुड़सवार भी थे. मदीना से खैबर की दूरी, जो लगभग १०० मील है, इतनी शीघ्रता से पूरी कर ली कि खैबर के किसान प्रातः काल जब अपने खेतों को जाने लगे तो उन्होंने इस विशाल सेना को देखा और घबरा कर उलटे पाँव अपने नगर में घुस गए. इस अचानक आक्रमण ने खैबर के मित्र कबीले बनी घताफान से सहायता का मार्ग बंद कर दिया. मोहम्मद ने ऐसे स्थान पर मोर्चा संभाला कि घताफान सहायता न कर पायें. 

खैबर 

खैबर की उपजायु घाटी खजूर के वृक्षों और मक्की के खेतों से भारी थी और उस में कई छोटे गाँव और दुर्ग थे. इस से पहले कि निवासी अपनी रक्षा कर पाते, एक एक कर के इन पर आक्रमण कर के अधिकार कर लिया गया. मोहम्मद प्रसन्नता से चिल्लाते हुए,
खैबर का नाश हो गया, अल्लाहु अकबर. जब मैं कहीं जाता हूँ तो उन लोगों के लिए अशुभ होता है
इन छोटे गाँवों पर अधिकार करने के पश्चात मुसलमान कैमस्स दुर्ग पहुंचे. 

संघर्ष और समर्पण  

अब तक कुछ यहूदी अपने मुखिया किनाना के साथ संगठित हो चुके थे. ये किनाना उसी अबुल हक्कीक का पोता था जिसे एक वर्ष पूर्व कुछ मुसलामानों ने मोहम्मद के आदेश पर, उस के घर में घुस कर मार दिया था. यहूदियों ने भीषण संघर्ष किया किन्तु पराजित हो गए. ९३ यहूदी और १९ मुसलमान मारे गए. यहूदियों ने आत्म समर्पण कर दिया. 

किनाना का वध 

समर्पण के नियम अनुसार यहूदियों को अपनी सारी संपत्ति छोड़ कर देश से पलायन करना था. सब के साथ साथ, किनाना अपने एक चचेरे भाई के साथ बाहर आया. मोहम्मद ने उस पर नियमों के विरुद्ध कोष का एक अंश छिपाने का आरोप लगाया, जिस में वो धन भी था जो किनाना को अपनी दुल्हन सफिय्या से मिला था, जिस का पिता कुरैज़ा के नरसंहार में मुसलामानों द्वारा मार दिया गया था.  उसने किनाना से पूछा,
सोने के वो बर्तन कहाँ हैं जो तुम मक्का के लोगों को उधार दिया करते थे? 
उस ने कहा कि वो अब उस के पास नहीं हैं. मोहम्मद ने कहा,
यदि मुझे पता लग गया कि तुम ने मुझ से कुछ छिपाया है तो तेरे प्रियजन मेरे रहमो करम पर होंगे. 
किनाना ने सहमती जाता दी. 
एक कायर यहूदी ने मोहम्मद को उस स्थान की सूचना दी जहां कुछ मूल्यवान वस्तुएं छिपा कर रखी हुई थीं. मोहम्मद ने अपने आदमियों से वो वस्तुएं लाने को कहा. वस्तुएं मिलने पर किनाना को भयंकर यातना दी गयी. और मूल्यवान वस्तुयों की जानकारी लेने के लिए, उस के वक्ष स्थल पर आग लगा दी गयी जिस से कि वो मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया. इसके पश्चात मोहम्मद ने आदेश दिया और किनाना तथा उसके चचेरे भाई का सर काट कर अलग कर दिया गया. 

सफिय्या 

तत्पश्चात मोहम्मद ने अपने हब्शी सेवक बिलाल को किनाना की दुल्हन सफिय्या को पकड़ कर लाने को कहा, जो एक १७ वर्षीया आकर्षक युवती थी. उसकी सुन्दरता सारे मदीना में चर्चित थी. बिलाल शीघ्र ही सफिय्या और उस कि एक मौसेरी बहन को पकड़ कर उनके प्रियजनों के शवों के मध्य से किनाना और उसके भाई के शव के पास ले आया.
वहाँ  का वीभत्स दृश्य देख कर सफिय्या की साथी रोते हुए अपने चेहरे को पीटने लगी और अपने सर में धुल मलने लग गयी. इस पर मोहम्मद ने क्रोधित स्वर में कहा,
इस डायन को यहाँ से ले जाओ.  
एक ओर जा कर मोहम्मद ने बिलाल को उन्हें उनके प्रियजनों के शवों में से लाने पर डांटा. इस पर बिलाल ने कहा,"मैं उनका भय और क्रोध देखने के लिए ही उन्हें वहाँ से लाया था". मोहम्मद सफिय्या की और घूमा और अपना  चोगा उस पर डाल दिया और उसे बिलाल के सरंक्षण में छोड़ दिया. ये संकेत था कि उस ने सफिय्या को अपने लिए चुन लिया है. मोहम्मद का एक साथी भी इस यहूदी सुंदरी के लिए लालायित था किन्तु मोहम्मद ने उसे सफिय्या की मौसेरी बहन दे दी. 

बीवी अथवा रखैल 

मोहम्मद ने अपनी एक सेविका को सफिय्या को मोहम्मद के लिए सजा कर प्रस्तुत करने को कहा. जब भोज (दावत) समाप्त हुआ तो मुसलमान आपस में कहने लगे कि देखते हैं कि मोहम्मद सफिय्या को अपनी उपस्री (रखैल) बनाता है अथवा बीवी. इस उत्तेजना का कारण ये था कि गत वर्ष मोहम्मद ने दो आक्रमणों में ऐसे ही दो युवतियों को अपने लिए चुना था. 'बनी क़ुरैज़ा' नामक बस्ती के ८०० - ९०० पुरुषों के गले काटने के उपरान्त, मोहम्मद ने रिहाना नामक युवती को चुना था जिसे उस ने अपनी उपस्री बनाया थी और उस से पूर्व 'बनी मुस्तालिक' नामक अरबी कबीले की सुंदरी सय्यिदा जुवैरिय्या को अपनी आठवीं बीवी बनाया था. जब मोहम्मद ने सफिय्या के लिए पर्दा लाने को कहा तो वे समझ गए कि इस से निकाह करेगा. मोहम्मद उसे अपने तम्बू में ले गया.

अबू अयूब का भय

 अगले दिन प्रातः मोहम्मद को कुछ हलचल प्रतीत हुई. उसने बाहर आ कर देखा कि अबू अयूब नंगी तलवार लिए सारी रात वहाँ रक्षा करता रहा था. मोहम्मद के पूछने पर उस ने कहा,"ऐ नबी, मुझे लगा कि लड़की युवा है और कल तक जिस किनाना की पत्नी थी, उसे आप ने काट दिया है. मुझे उस पर भरोसा नहीं था, इसलिए मैंने निर्णय किया कि मैं निकट हे रहूँगा, कहीं वो आप के विरुद्ध कुछ न कर सके. मोहम्मद उस से प्रसन्न हुआ और उसे निश्चिन्त हो कर जाने को कहा.

अन्य स्त्रोतों से पुष्टि 

ये कथानक ऐसा है कि सहजता से इस पर विश्वास नहीं होता. कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने अपने मन से एक कहानी घढ़ ली हो कि किसी सम्प्रदाय विशेष को मलीन कर दे.
इस कि सच्चाई स्थापित करने के लिए हमें इस्लाम के एक सर्वमान्य स्त्रोत इमाम बुखारी कृत हदीस का हवाला देना पड़ेगा.:
बुखारी खंड १, पुस्तक संख्या ८, क्रमांक 367: अब्दुल अज़ीज़ के अनुसार:
अनास ने कहा, 'जब अल्लाह के पैगम्बर ने खैबर पर आक्रमण किया, हम सब ने प्रातःकाल अंधकार में ही फज्र प्रार्थना की.  पैगम्बर और अबू ताल्हा सवारी कर रहे थे और मैं भी अबू ताल्हा के पीछे सवार था. जिस समय रसूल ने खैबर की एक गली को शीघ्रता पार की तब मेरा घुटना उन कि जांघ को छुआ.  जब वह बस्ती में पहुंचे तो बोले, " अल्लाहु अकबर! खैबर का नाश हो गया. जिन्हें चेतावनी दी जा चुकी हो, जब हम ऐसे आक्रामक राष्ट्रों के निकट पहुँचते हैं तो उन की प्रभात बुरी होती है". उसने इस वाक्य को तीन बार दोहराया. लोग अपने कार्य छोड़ कर बाहर आ गए और कहने लगा, ' मोहम्मद आया है'. हमारे कुछ साथियों ने जोड़ा, ' अपनी सेना के साथ'. हमने खैबर को विजय किया, बंदी बनाये और लूट का सामान एकत्रित कर लिया. दिह्या आया और बोला,' ऐ अल्लाह के पैगम्बर! मुझे इन बंदियों में से एक लड़की गुलाम बनाने के लिए दीजिये. पैगम्बर ने कहा, ' जाओ और एक लड़की चुन लो'. इस पर उस ने साफिया बिन्त हुयाये को चुन लिया. इतने में एक आदमी पैगम्बर के पास आया और बोला,' ऐ अल्लाह के पैगम्बर! आप ने सफिय्या बिन्त हुयाये दिह्या को सौंप दी है. वो इस कबीले के मुखिया की बेटी है औत वह आप के अतिरिक्त किसी के योग्य नहीं है.’ इस पर पैगम्बर ने कहा, उसे उस लड़की के साथ यहाँ लाओ. तत्पश्चात दिह्या सफिय्या के साथ वहां पहुंचा. जब पैगम्बर ने सफिय्या को देखा तो उस ने दिह्या से कहा,' इसे छोड़ कर कोई अन्य लड़की गुलामी के लिए चुन लो. इस के बाद, अनास के अनुसार, पैगम्बर ने सफिय्या को रिहा कर उस से विवाह कर लिया.
थाबित ने अनास से पूछा, ' ओ अबू हम्ज़ा! पैगम्बर ने उसे मैहर में क्या दिया?' अनास ने उत्तर दिया,' उस लड़की का गुलामी से मुक्त होना ही उस का मैहर था. अनास के अनुसार, उम सुलैम ने जाते समय उसे विवाह के लिए सजाया और रात को उसे दुल्हन के रूप में पैगम्बर के पास भेज दिया.’ दूल्हा बने पैगम्बर ने एक चमड़े से बनी हुई चादर बिछाई और कहा,' जिस के पास जो भी खाना है वो ले आये.' कुछ लोग खजूरें और कुछ लोग मक्खन ले आये. उन्होंने हैस (एक प्रकार का व्यंजन) बनाया. यह भोजन पैगम्बर का वालिमा था.’
सूचना : वालिमा उस भोज को कहते हैं जो दूल्हा दुल्हन के एक रात साथ बिताने के पश्चात् कराया जाता है.

बुखारी, खंड ५, पुस्तक ५९, क्रम संख्या ५२२ में अनास बिन मलिक द्वारा वर्णन है:
हम खैबर पहुंचे, और जब अल्लाह ने अपने पैगम्बर को फतह करने में मदद की, उस समय किसी ने साफिया बिन्त हुयाये बिन अख्ताक, जिस के पति को मार दिया गया था, की सुन्दरता का वर्णन अल्लाह के पैगम्बर को किया. पैगम्बर ने उसे अपने लिए चुन लिया और उसे वहां से अपने साथ ले गया. जब हम 'सिदद अस सहबा' नामक स्थान पर पहुंचे, तब तक सफिय्या मासिक धर्म से पवित्र हो चुकी थी; तत्पश्चात अल्लाह के पैगम्बर ने उस से विवाह कर लिया. एक चमड़े के टुकड़े पर 'हैस' पका कर परोसा गया. तब पैगम्बर ने मुझ से कहा,'मैं तुम्हारे आस पास के लोगों को आमंत्रित करता हूँ'. तो यह था पैगम्बर और सफिय्या के विवाह का 'वालिमा'. इस के उपरांत हम मदीना की और चल पड़े. मैंने पैगम्बर को अपने ऊँठ पर एक गद्देगर आसन बनाते देखा ताकि सफिय्या उस पर बैठ सके. तत्पश्चात वेह अपने ऊँठ के पास बैठ गया और उसने अपना घुटना आगे किया ताकि सफिय्या उस पर पाँव रख कर ऊँठ पर सवार हो सके.

जब मुसलामानों ने लूट का माल बांटना आरम्भ किया तो उन्होंने पाया कि खैबर की लूट का माल उनकी अभी तक की सब लड़ाइयों से अधिक था. मोहम्मद ने अपने पांचवें भाग से (मोहम्मद ओर कुरान के अनुसार लूट का पांचवां भाग मोहम्मद के लिए है जिसे खम्स कहते हैं) अपनी बीवियों, उपसृयों, बेटियों और उनके बच्चों तथा मित्रों, यहाँ तक कि नौकरों को धनवान बना दिया. १४०० लड़ाकों के लिए १८०० भाग किये गए क्योंकि लूट की बाँट के नियमों के अनुसार हर लड़ाके के लिए एक भाग और घोड़े के लिए दो भाग रखे जाते थे. इस विजय से प्राप्त संपत्ति के लुप्त हो जाने का भी भय नहीं था क्योंकि यहूदियों ने भूमि जोतने के लिए वहीँ रहना था जब कि  उस पर अधिकार लूटने वालों का था.
 
मोहम्मद की जीवनी लिखने वाले मार्गोलिउथ के अनुसार सफिय्या उस का मोहम्मद द्वारा दिया गया नाम था. सफिय्या एक अरबी भाषा का शब्द है जिस का अर्थ है लुभावना टुकड़ा. कदाचित इस पर टिपण्णी न करना ही उचित है.

यहाँ उल्लेखनीय है कि खैबर के निवासियों को अपने स्थान पर बने रहने की अनुमति मोहम्मद ने उन्हें खरज गुज़ार की भांति रहने के लिए दी थी. इसलिए खैबर वासी इतिहास के प्रथम खरज गुज़ार थे. इस का अर्थ था कि वे अपनी ही भूमि पर जो उपजायेंगे, उस में से अपने जीवन यापन के लिए निकाल कर शेष पर मुसलामानों का अधिकार होगा. यही नहीं, उन कि संपत्ति पर भी मुसलामानों का अधिकार होगा. परिणाम स्वरुप, अगले कुछ वर्ष तो यहूदी खैबर में परतंत्रता के जीवन जीते रहे किन्तु फिर मुसलामानों द्वारा उन्हें वहाँ से निष्कासित कर दिया गया. केवल उन्ही को रहने की अनुमति मिली जो मुसलमान बन गए.
जो लोग इस शब्द से अनभिज्ञ हैं, भारत में जब इस्लामी शासन आरम्भ हुआ, हिन्दुओं को खरज गुज़ार की भांति जीवन व्यतीत करना पड़ता था.

स्त्रोत: सही बुखारी , Life of Mahomet - William Muir, इब्न इस्हाक, Mohammad and the rise of Islam - Margoliouth

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें