इस्लाम में फतवा शब्द का एक विशेष महत्त्व है. साधारण व्यक्ति समझते हैं कि फतवा केवल किसी व्यक्ति विशेष की हत्या करने के लिए दिए जाने वाले आदेश को कहते हैं. लेकिन ये सत्य नहीं है.
फतवा किसे कहते हैं?
फतवा किसे कहते हैं?
एक प्रमुख इस्लामी साईट के अनुसार - फतवा एक इस्लामी साम्प्रदायिक निर्णय अथवा इस्लाम की न्याय व्यवस्था के संबंध में किसी विद्वान् की मान्यता है. फतवा इस्लाम के किसी मान्य अधिकारी द्वारा ही निर्गत किया जा सकता है किन्तु क्योंकि इस्लाम में मौलवियों का कोई वरीयता क्रम नहीं होता इसलिए फतवे को मानने की कोई बाध्यता नहीं होती. जो फतवा निर्गत करता है, उसे ज्ञानवान होना आवश्यक है और वो फतवा अपनी सूझ बूझ से ही देते हैं. उन्हें इस्लामी स्त्रोतों से फतवे के पक्ष में प्रमाण देने होते हैं. ऐसा भी होता है कि एक ही विषय पर विद्वानों की सहमति न हो.
इस परिभाषा को पढने के पश्चात हिन्दू संस्कृति में पला बढ़ा व्यक्ति सोचेगा कि अधिकतर विषय आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, क्रोध, साधना, यम नियम, ध्यान, समाधि, सृष्टि चक्र, कुण्डलिनी शक्ति, पुनर्जन्म, योग, प्राणायाम इत्यादि से सम्बद्ध होंगे. अर्थात अधिकतर प्रश्न अपने स्वभाव और अन्तः करण से सम्बंधित होंगे. इस्लाम का दर्शन इस सब से थोड़ा भिन्न है. इस लेख में केवल थोड़े से फतवे दिए गए हैं. आइए देखें कि मुसलामानों की समस्यायों को फतवे कैसे हल करते हैं.
प्रश्न - उस बकरी के संबंध में क्या हुक्म है, जो गर्भवती है और जिस से इमरान (काल्पनिक नाम ) ने सम्भोग किया है?
फतवा -
ईमानवाले का फ़र्ज़ है कि वो तौबा कर ले. जानवर को मार कर जला दो और उस का मांस नहीं खाना है.
यदि आप को संशय है कि यहाँ जानवर कौन है तो उत्तर में बकरी को जानवर कहा गया है.
प्रश्न - यदि किसी पशु के साथ इमरान ने सम्भोग किया गया है तो उस के मांस और दूध के संबंध में क्या हुक्म है?
फतवा -
यदि वीर्यपात पशु के अन्दर नहीं हुआ है तो उसका मांस और दूध बिना शक के हलाल है. लेकिन यदि वीर्यपात हुआ है तो उसे मार कर जला दो. हालांकि उसका मांस हराम नहीं है.
रोज़े के संबंध में जब जानवर के साथ किये सम्भोग पर प्रश्न किया गया तो उस के संबंध में जो फतवा है वो इस प्रकार है:
यदि वीर्यपात हुआ है तो स्नान भी करना पड़ेगा और प्रायश्चित भी करना पड़ेगा. लेकिन यदि वीर्यपात बिना गुप्तांग का इस्तेमाल किये और सिर्फ हाथों के इस्तेमाल से या जानवर को चूमने से हुआ है तो रोज़ा भंग नहीं होगा लेकिन स्नान करना पड़ेगा.
द वर्ल्ड ऑफ फतवास - अरुण शोरी पृष्ठ संख्या ७६ और ११४
यदि किसी की काफिर बुद्धि ये सोच रही है कि ये उत्तर किसी आलिम ने अपनी इच्छा से दे दिए हैं तो ये आप की भूल है और आप की नीच और काफिर बुद्धि का प्रमाण है. उल्लेमा इन गूढ़ प्रश्नों के उत्तर शम्मी और दार उल मुख्तार जैसी मान्य किताबों के अनुसार देते हैं. मौलाना और इमाम इन प्रश्नों को न केवल उत्तर देने योग्य समझते हैं बल्कि इन के उत्तर देने के लिए पुस्तकों को देखने का कष्ट करते हैं और उत्तर देना अपना बौधिक दायित्व समझते हैं.
कुछ और दार्शनिक प्रश्न और उनके फतवे देखते हैं. ध्यान रहे कि उत्तर देने वाले कई वर्षों तक मदरसों में पढने के पश्चात ही इस योग्य समझे जाते हैं कि वो इमाम बन सकें.
एक मुसलमान के एक किरायेदार ने आपत्ति उठाई कि शौचालय में जो नित्य कर्म करने के लिए व्यवस्था है, उस के अनुसार, जब बैठते हैं तो इमानवालों की पीठ किबला (काबा) की ओर हो जाती है. ये कानून के खिलाफ है. रहम कर के रास्ता बताएं. अल्लाह आप पर रहमत करे.
विद्वान् इमाम साहिब जिन का नाम है मौलाना मुफ्ती हफीज कारी कानून के मुताबिक समाधान देते हैं:-
हज़रत मोहम्मद साहब (सही बुखारी और सही मुस्लिम) के अनुसार: शौच और मूत्र विसर्जन के समय न तो मुंह और न पीठ किबला की ओर होनी चाहिए. इसलिए इस्लाम के विद्वान् कानून के जानकारों ने इसे मकरुहे तहरिमी (न करने लायक) करार दिया है, ये किसी भवन के अन्दर हो अथवा बाहर (नुरल इज़ह पृष्ठ ३०, शम्मी खंड १, पृष्ठ 316 ). इसलिए जब तक व्यवस्था उचित दिशा में नहीं हो जाती, मोम्मिन को चाहिए कि वो थोड़ा सा टेढ़ा हो कर बैठे.
ऐसी ही समस्या एक और मोम्मिन की थी, जिस का प्रश्न था कि उल्लेमा के कहने के बावजूद भी लोग एक मस्जिद के पेशाबगाह की व्यवस्था, जो कि गलत दिशा मीन थी, को सही दिशा नहीं दे रहे थे. इस से सम्बद्ध जो गंभीर प्रश्न था वो था कि क्या उन इमामों की इमामत सही है जो इन शौचालयों का उपयोग करते हैं.
मौलाना अहमद रिज़ा खान का फतवा जो फतवा ऐ रिजविया (खंड २, पृष्ठ १५४) में अंकित है:
इस फतवे में जो शब्द मुशरिक है उसका अर्थ है एक से अधिक इश्वर मानने वाले और मूर्ती पूजा करने वाले.
फतवा -
कुरान की जिस आयत का यहाँ वर्णन आया है, वो पूरी आयत (अनुवाद - फारुक खान एवं नदवी) इस प्रकार है:-
फतवा -
प्रश्न - क्या किसी की बीवी अपने शौहर के लिए हराम हो जायेगी अगर वो उसकी बहन (अपनी साली) से व्यभिचार करता है?
फतवा -
इन प्रश्नों से स्पष्ट हो जाता है कि मुसलमान कितने भोले हैं कि इस प्रकार के प्रश्नों के लिए भी निर्देश प्राप्त करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं. कुछ लोग इस भोलेपन को अंध विश्वास, मूर्खता, अनपढ़ता अथवा उल्लेमा द्वारा कौम का नियंत्रण कहते हैं. संभवतः ये तो अपना अपना दृष्टिकोण है. कुछ और प्रश्न देखते हैं.
प्रश्न - इस्तिंजा (शौच के उपरान्त अपने अंगों को साफ़ करना) के लिए क्या हुक्म है? क्या कागज़ का इस्तेमाल कर सकते हैं?
पाठकों को भ्रान्ति न हो इसलिए पहले इस्तिंजा के संबंध में इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद का क्या मत है, उसके संबंध में बता दूं.
फतवा -
प्रश्न - क्या इस्तिंजा के लिए कागज़ का इस्तेमाल हो सकता है, खासतौर से जब कोई रेलगाड़ी में जा रहा हो.
फतवा -
मौलाना अहमद रिज़ा खान का फतवा जो फतवा ऐ रिजविया (खंड २, पृष्ठ १५४) में अंकित है:
पेशाब करते वक़्त, न तो मुंह और न पीठ किबला की ओर होनी चाहिए. जो ऐसा करते हैं वो गलती कर रहे हैं. मस्जिद के व्यवस्थापकों को अथवा इलाके के बाशिंदों को चाहिए कि दिशा ठीक करें. और जब तक ऐसा इंतज़ाम नहीं हो जाता, उन का फ़र्ज़ है कि वो थोड़ा टेढ़ा हो कर बैठें. ऐसी संभावना है कि जिन्हें मालूम है, वो ऐसा ही कर रहे हैं (टेढ़े हो कर बैठ रहे हैं). जहां तक सवाल है इमामत का तो मुसलामानों पर कभी शक नहीं करना चाहिए. उन की इमामत सिर्फ इस वजह से गलत नहीं हो सकती.प्रश्न - यदि कोई मुसलमान आदमी एक गैर मुसलमान औरत से आर्य समाज के मंदिर में शादी करे और कोई इस शादी में शरीक हो तो उस के लिए क्या हुक्म है?
इस फतवे में जो शब्द मुशरिक है उसका अर्थ है एक से अधिक इश्वर मानने वाले और मूर्ती पूजा करने वाले.
फतवा -
एक गैर मुसलमान औरत से (काफिर या मुशरिक) हराम है और भारी गुनाह है. पवित्र कुरान के अनुसार: 'मुशरिका से निकाह न करो जब तक कि वो इस्लाम न कबूल करे - सुरा २, आयत २२१.' इस लिए ऐसे निकाह में शरीक होने की इजाज़त नहीं है. अगर कोई ये सोच कर निकाह करता है कि ये कानूनी है तो ये कुफ्र है. ऐसे आदमी के लिए ये फ़र्ज़ है कि वो जनता के सामने अपना दीन दोबारा अपनाए.
फतवा ए रहिमिय्या, खंड - २ पृष्ठ - ८६-८७
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेतेमूल अरबी आयत इस प्रकार है:-
وَلَا تَنكِحُوا الْمُشْرِكَاتِ حَتَّىٰ يُؤْمِنَّ ۚ وَلَأَمَةٌ مُّؤْمِنَةٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكَةٍ وَلَوْ أَعْجَبَتْكُمْ ۗ وَلَا تُنكِحُوا الْمُشْرِكِينَ حَتَّىٰ يُؤْمِنُوا ۚ وَلَعَبْدٌ مُّؤْمِنٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ ۗ أُولَـٰئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَاللَّـهُ يَدْعُو إِلَى الْجَنَّةِ وَالْمَغْفِرَةِ بِإِذْنِهِ ۖ وَيُبَيِّنُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَप्रश्न - क्या अपनी बीवी की सौतेली वालिदा (माँ) से निकाह कर के दोनों को एक घर में रखा जा सकता है?
फतवा -
हाँ, निकाह किया जा सकता है और दोनों को एक ही घर में रखा जा सकता है.
फतवा ए रहिमिय्या, खंड - २ पृष्ठ - ८६-८७
प्रश्न - क्या किसी की बीवी अपने शौहर के लिए हराम हो जायेगी अगर वो उसकी बहन (अपनी साली) से व्यभिचार करता है?
फतवा -
इस मामले में बीवी हमेशा के लिए हराम नहीं हो जायेगी, लेकिन कुछ कानून के सलाहकारों का मानना है कि शौहर को अपनी बीवी से तब तक संबंध नहीं बनाने चाहिए जब तक कि साली को एक माहवारी नहीं आ जाती.
फतवा ए रहिमिय्या, खंड - २ पृष्ठ - ८६-८७
इन प्रश्नों से स्पष्ट हो जाता है कि मुसलमान कितने भोले हैं कि इस प्रकार के प्रश्नों के लिए भी निर्देश प्राप्त करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं. कुछ लोग इस भोलेपन को अंध विश्वास, मूर्खता, अनपढ़ता अथवा उल्लेमा द्वारा कौम का नियंत्रण कहते हैं. संभवतः ये तो अपना अपना दृष्टिकोण है. कुछ और प्रश्न देखते हैं.
प्रश्न - इस्तिंजा (शौच के उपरान्त अपने अंगों को साफ़ करना) के लिए क्या हुक्म है? क्या कागज़ का इस्तेमाल कर सकते हैं?
पाठकों को भ्रान्ति न हो इसलिए पहले इस्तिंजा के संबंध में इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद का क्या मत है, उसके संबंध में बता दूं.
एक मुशरिक ने मज़ाक उड़ाते हुए हज़रत सलमान फ़ारसी से कहा: "तुम्हारा साथी (पैगम्बर मोहम्मद) तुम्हें शौच के तरीके भी सिखाता है?" वो हमें एक बाप की तरह मोहब्बत करता है. उसने हमें बताया है कि शौच के वक़्त किबला की ओर मुंह नहीं करना चाहिए, धोते वक़्त दायें हाथ का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और सफाई के लिए तीन से कम मिटटी के ढेलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए; हमें तीन ढेलों का इस्तेमाल करना चाहिए और गोबर या हड्डियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
व्याख्याकार - मुस्लिम
यदि कुछ संशय रह गया है तो एक और वर्णन भी है:-पैगम्बर ने अपने साथियों से कहा:"मैं तुम्हारे लिए वैसा ही हूँ जैसे बच्चों के लिए बाप होता है. मैं तुम्हें बताता हूँ कि शौच के वक़्त न तो किबला की तरफ मुंह करो और न ही पीठ. सफाई के लिए मिटटी के तीन ढेलों का इस्तेमाल करो, सूखे गोबर या हड्डियों का इस्तेमाल न करो और अपने दायें हाथ का इस्तेमाल न करो.
मिश्कत, पृष्ठ - ४२
फतवा -
हाँ, इस्तिंजा के लिए कागज़ का इस्तेमाल जायज़ है. इसके अलावा, किसी भी ठोस और सूखी चीज़ का इस्तेमाल जायज़ है. पत्थर, लकड़ी, कपडा और मिटटी का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन हड्डियों से, गोबर से या किसी और जानवर के मल से करना गलत है.
फतवा अहल ए हदीस, खंड - १, पृष्ठ ४५
जैसा कि ऊपर फतवे की परिभाषा में कहा गया है कि इन में मतभेद हो सकता है, इस फतवे के संबंध में बरेलवी मत के मौलाना असहमत हैं. उन से भी इस्तिंजा के संबंध में प्रश्न पूछा गया था.प्रश्न - क्या इस्तिंजा के लिए कागज़ का इस्तेमाल हो सकता है, खासतौर से जब कोई रेलगाड़ी में जा रहा हो.
फतवा -
कागज़ से इस्तिंजा घिनौना है और गलत है. ये ईसाईयों का तरीका है. कागज़ अगर कोरा भी है तो उसकी इज्ज़त करनी चाहिए और यदि उस पर कुछ लिखा है तो ज्यादा इज्ज़त बख्शनी चाहिए. और जहां तक रेलगाड़ी का सवाल है तो क्या गाड़ी में मिटटी का ढेला या कपड़े का टुकड़ा नहीं ले जा सकते.
फतवा ए रिज़्विया, खंड - २, पृष्ठ १५३
बात तो मौलाना साहिब की सही है, अपने ईमान के लिए और अल्लाह की प्रसन्नता के लिए रेलगाड़ी में मिटटी के ढेले ले जाना कोई पहाड़ तोड़ने जैसा तो नहीं है.
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