शनिवार, 25 दिसंबर 2010

हिन्दू और अँगरेज़: दोनों शत्रु

३ अक्टूबर, २०१०, को टाइम्स ऑफ इंडिया में समाचार प्रकाशित हुआ कि पिछले दिन, अर्थात २ अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिवस की वर्षगाँठ पर, वहाँ के अधिकारियों ने गांधीजी का एक बुत लक्षद्वीप में स्थापित करने का कार्यक्रम रखा था. इन में प्रमुख थे, प्रशासनिक अधिकारी वसंत कुमार.
स्थानीय निवासिओं ने ये बुत, जिसे केरल के एक शिल्पकार से बनवाया गया था, बंदरगाह पर उतरने नहीं दिया. परिणामतः, गांधीजी का बुत वापिस लाना पड़ा. आधिकारिक रूप से इस का कारण था मौसम की खराबी. लेकिन सूत्रों के अनुसार, स्थानीय निवासियों का विरोध इस का कारण था.
साधारणतया, इस प्रकार के समाचार की प्रतिक्रिया के रूप में कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ हंगामा अवश्य करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि गांधी का नाम उन की बपौती है. किन्तु न तो कांग्रेसियों ने हंगामा किया और न ही मीडिया में बवाल मचा.

इस प्रकरण से दो प्रश्न उठते हैं.
  1. कांग्रेस ने बवाल क्यों नहीं मचाया?
  2. इन निवासियों का गांधीजी ने क्या बिगाड़ा था कि वो इतने क्रोधित हैं?
पहले प्रश्न का उत्तर है कि लक्षद्वीप लगभग पूर्ण रूप से मुसलमान है. इस एक तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि वोट बैंक की राजनीति बापू पर भारी पड़ गयी. बेचारे बापू जीवन भर मुसलामानों को प्रसन्न करने में लगे रहे लेकिन उन्हीं मुसलामानों ने उनका अपमान किया और उन के तथाकथित अनुयाइयों की पार्टी सत्ता में होते हुए लाचार हो गयी. कदाचित इसी को भारतीय राजनीति कहते हैं.
दूसरे प्रश्न का उत्तर छिपा है इस्लाम की विचारधारा में. इस्लाम किसी भी प्रकार की मूर्ती पूजा अर्थात बुत परस्ती के विरुद्ध है और फिर बुत यदि किसी काफिर का हो तो ये तो अक्षम्य अपराध है.
विडम्बना देखिये कि जिस गांधी ने इस्लाम जैसी विचारधारा को अपने 'सर्व धर्म समभाव' जैसे नारे से सम्मान दिया, वही उन को सहन नहीं कर सकती. जब उन की प्रेरणा से हिन्दुओं ने गाना बनाया, 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना', उन्होंने इस्लाम नहीं पढ़ा होगा. इस्लाम अपने मज़हब को छोड़ कर किसी सम्प्रदाय को अच्छा नहीं समझता.

जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, उन दिनों मुसलामानों को दुविधा होती थी कि एक ओर गांधीजी हैं और दूसरी ओर जिन्ना जो पाकिस्तान की मांग कर रहा है. इस दुविधा के समाधान के लिए वो इस्लाम के ज्ञाता उलेमाओं से निर्देश लेते थे, जो इस्लाम के अनुसार फतवा देते थे. तब उलेमा दो भिन्न विचारधाराओं में बनते हुए थे. बहुमत उनका था जो गांधीजी और हिन्दुओं के नेत्रित्व को स्वीकार करना इस्लाम के विरुद्ध मानते थे क्योंकि वो एक काफिर थे.

किन्तु दूसरा मत इस नेत्रित्व के पक्ष में था. इन्हें राष्ट्रवादी उलेमा की संज्ञा दी गयी थी. आइए देखें इन ताताहकथित राष्ट्रवादी उलेमा के फतवे क्या कहते हैं. इस लेख में दिए फतवे अरुण शोरी की प्रसिद्द पुस्तक 'द वर्ल्ड ऑफ फतवास' से लिए गए हैं.

मुफ्ती किफायतुल्ला: किफायत - उल - मुफ्ती खंड १ से ९

प्रश्न - भारत में इस्लाम के ८१ मत हैं. यदि इन में से कोई मुसलमान इस्लाम के दुश्मनों से मिल जाए तो क़यामत के दिन वो मुसलमान माना जाएगा या नहीं? एक तरफ वर्धा है और दूसरी तरफ काबा है, मुसलमान किस तरफ जाए?
टिपण्णी - यहाँ वर्धा से गांधीजी की कर्मभूमि की ओर इशारा है.
फतवा - ये तो साफ़ है कि जो इस्लाम के दुश्मनों से मिल जाएगा वो मुसलमान नहीं है लेकिन अगर अपना स्वार्थ और उद्देश्य पूरा करने के लिए किसी मौके पर वो इस्लाम के दुश्मन का साथ लेता है तो वो गिना नहीं जाएगा. इसलिए अगर दो दुश्मन हैं और ताक़तवर से बचने के लिए वो कमज़ोर दुश्मन से ताक़त लेता है तो ये बुरा नहीं गिना जाएगा.
इस आन्दोलन में वर्धा और काबा का उदाहरण गलत है क्योंकि इसमें मुसलमान वर्धा के लिए नहीं अपने लिए लड़ रहे हैं. जो मुसलमान अपने हक के लिए दूसरी कौम का साथ देते हैं और दूसरे जो नहीं लेते, दोनों में से कोई काबा नहीं जा रहा. दोनों के रास्ते अलग हैं लेकिन मंजिल एक है.
न तो हिन्दू और न ही अँगरेज़ इस्लाम के दोस्त हैं. दोनों में से जो ताक़तवर है वो मुसलामानों के लिए ज्यादा नुकसानदेह है.

अगले चार प्रश्नों को एक क्रम में पढ़ें क्योंकि वो परस्पर जुड़े हैं. पूछने वाला ये जानना चाहता है कि गांधी की अपेक्षा जिन्ना को क्यों न नेता माना जाए.

प्रश्न - जिन्ना एक शिया है, तो क्या वो मुसलमान है?
फतवा - हाँ मैं जानता हूँ कि जिन्ना एक शिया है और शिया मुसलामानों का ही एक पंथ है.

प्रश्न - मुसलमान होने के नाते, जिन्ना मुसलामानों के हक के लिए सही है या गांधी, या कांग्रेस प्रधान या कांग्रेस कार्यकारी समिति जो हिन्दू बहुल है?
फतवा - मुसलमान के मुकाबले एक गैर मुसलमान को मुसलमान के हक का रक्षक नहीं माना जा सकता.

प्रश्न - जब मोहम्मद अली जिन्ना कहता है कि मैं पहले मुसलमान हूँ और बाद में हिन्दुस्तानी हूँ तो क्या ये सही है या आदमी पहले हिन्दुस्तानी होता है और बाद में मुसलमान?
फतवा - ये सही है कि एक मुसलमान पहले मुसलमान होता है और बाद में हिन्दुस्तानी

प्रश्न - क्या जिन्ना हिन्दुस्तान की राजनीति और कानून का माहिर है?
फतवा - हाँ जिन्ना हिन्दुस्तान की राजनीति और कानून का माहिर है.

आगे मुफ्ती लिखता है - जिन्ना की सोच क्या है, मैं नहीं जानता लेकिन उसका बर्ताव इस्लामी नहीं है ये सूरज की तरह साफ़ है. वो शिया है, ये भी साफ़ है. उसकी पढ़ाई और सोच यूरोपी है जो सब जानते हैं कि इस्लामी सोच से बिलकुल अलग है. ये सही है कि एक गैर मुसलमान को इस्लाम का रक्षक नहीं माना जा सकता लेकिन ऐसा मानने को कह कौन रहा है. कांग्रेस में मुसलमान अपने हक की रक्षा करेंगे. वो नहीं चाहते कि हिन्दू इस्लाम की रक्षा करें. ये सही है कि एक मुसलमान पहले मुसलमान है और बाद में कांग्रेसी या मुस्लिम लीगी या कुछ और.

पाकिस्तान के विरुद्ध फतवा

प्रश्न - जमीअत उल उलेमा ऐ हिंद और आप पाकिस्तान का विरोध क्यों करते हैं?
फतवा - हमारे विचार से पाकिस्तान की मांग मुसलामानों के हित में नहीं है क्योंकि न तो पाकिस्तान बनेगा और न ही एक सच्चा पाकिस्तान माँगा जा रहा है. जो पाकिस्तान की मांग कर रहे हैं, वो इस्लाम की शान को पूरे हिन्दुस्तान की बजाय एक छोटे से हिस्से में सीमित करना चाहते हैं. इस से एक हिस्से में एक विरोधी राष्ट्रीय पार्टी जो कि हिन्दुओं की है, उसका राज हो जाएगा. इसका एक मतलब ये भी है कि करोड़ों मुसलामानों के हाथ पैर काट के दूसरे हिस्से में उन्हें छोड़ दिया जाए.

ध्यान दीजिये कि ये विरोध भारत की एकता अथवा अखंडता की चिंता से नहीं है बल्कि उस के ठीक विपरीत यहाँ इस्लाम स्थापित करने के लिए है. ये तो एक तथाकथित राष्ट्रवादी उलेमा का फतवा है.

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