मंगलवार, 25 जनवरी 2011

बाइबल, पोप, सेंट और गौड

बाइबल, जिसे कि इसाई मत का ग्रन्थ माना जाता है, कई पुस्तकों का संकलन है. इन्ही में से एक पुस्तक है - दियुतेरोनौमी (Deuteronomy). जिस का अर्थ हिंदी में होता है 'द्वितीय नियम' अथवा दूसरा कानून. चूंकि ये एक नियम है, इसलिए इसकी पालना करना आवश्यक है और जो इसकी पालना नहीं करता वो गौड को प्रिय नहीं होता. 
आइये पहले इस पुस्तक के सत्रहवें अध्याय के कुछ अंशों पर दृष्टिपात कर लें.

“If there be found among you, within any of thy gates which the Lord thy God giveth thee, man or woman, that bath wrought wickedness in. the sight of the Lord thy God, in transgressing his covenant,”
- Deuteronomy, 17/2
अनुवाद दियुतेरोनौमी  १७/२
 यदि तुम में से किसी भी पुरुष अथवा महिला ने कोई दुष्टता की जो कि तुम्हारे स्वामी गौड के साथ किये गए तुम्हारे अनुबंध का उल्लंघन है,
“And bath gone and served other gods, and worshipped them, either the sun, or moon, or any of the host of heaven, which I have not commanded;”
- Deuteronomy, 17/३
अनुवाद दियुतेरोनौमी  १७/३
और  वो किसी अन्य इश्वर की सेवा में लग गए हैं और उस की प्रार्थना करते हैं, वो भले ही सूर्य हो, चन्द्र हो अथवा कोई और, जिन्हें पूजने का आदेश मैंने नहीं दिया है;
“And it be told thee, and thou hast heard of it, and inquired diligently, and, behold, it be true, and the thing certain, that such abomination is wrought in Israel;”
- Deuteronomy, 17/4
अनुवाद दियुतेरोनौमी  १७/४ 
यदि  तुम्हें कोई इस की सूचना देता है तो तुम पूर्ण गंभीरता से इसकी जांच पड़ताल करोगे. यदि तुम्हारी जांच से ये सच सिद्ध हुआ कि ऐसा नीच कार्य किसी ने इस्राइल में किया है;
“Then shalt thou bring forth that man or that woman, which have committed that wicked thing, unto thy gates, even that man or that woman, and shalt stone them with stones, till they die.”
- Deuteronomy, 17/5
अनुवाद दियुतेरोनौमी  १७/५
तो  तुम उस पुरुष अथवा महिला को, जिसने भी ये नीच कार्य किया है, पकड़ कर लाओगे और उसे पत्थरों से तब तक मारते रहोगे जब तक कि वो मर न जाए.
इन का अर्थ है कि इसाई गौड को लगता है कि एक से अधिक गौड हैं और यदि कोई किसी अन्य देवी, देवता, विभूतियों अथवा परमात्मा की पूजा करेगा तो ये एक अपराध माना जाएगा. सूर्य अथवा चन्द्र देव की अराधना करना एक ऐसा अपराध है जिसके लिए पत्थरों से मारने का कठोर दंड दिया जाना चाहिए. 
यदि आप को ये पढ़ कर झटका लगा है तो आप अकेले नहीं हैं. कोई भी साधारण मनुष्य इसे पढ़ कर चकित ही होता है क्योंकि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार तो परमात्मा इर्ष्या जैसे मानवी विचारों से परे है. परन्तु बाइबल के गौड के गुण कुछ भिन्न हैं.
इसका परिणाम है कि पश्चिमी देशों में इसाई मत की पालना करने वालों की संख्या कम होती जा रही है. किन्तु भारत में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिस के लिए ये कोई मत नहीं है अपितु पेशा है. इन्हें मिशनरी कहते हैं. ये वो लोग हैं जो बाइबल की इस प्रकार की गन्दगी को जानते हैं किन्तु उसे या तो छिपा देते हैं या कोई गोल मोल सा उत्तर दे देते हैं. हो भी क्यों न? क्योंकि यदि ये सब के सामने आ गया तो उन्हें तो जीवन यापन की समस्या खड़ी हो जायेगी.
ऐसा एक इसाई भारत में सोलहवीं शताब्दी में आया था.  इसका नाम था फ्रासिस ज़ेविअर. इसके नाम के  आगे सेंट लगाया जाता है, जिस से लगता है कि ये कोई नेक पुरुष था. 
इस के व्यक्तित्व में अपने गौड वाली ही विशेषताएं थीं. आइये मिलें इस तथाकथित सेंट से.
सेंट ज़ेविअर के शब्दों में
जब इन हिन्दुओं को इसाई बना कर भेज दिया जाता है तो ये अपनी पत्निओं और बच्चों सहित लौट कर आते हैं ताकि उन्हें भी इसाई बना दिया जाए. उन्हें इसाई बनाने के उपरान्त मैं उन्हें आदेश देता हूँ कि अपने झूठे मंदिरों को गिरा दो और मूर्तियों को तोड़ दो.
जब ये उन मंदिरों को गिराते हैं जिन में ये पहले पूजा पाठ किया करते थे तो मुझे जिस आनंद का अनुभव होता है, उस की व्याख्या करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.
इस राक्षस को इसाई मत के अनुयायी सेंट अर्थात संत कह कर पुकारते हैं. और इसाई ही क्या, हिन्दुओं के बच्चे, जो इस राक्षस के नाम से स्थापित शिक्षण संस्थानों में पढ़ते हैं, वो भी इसी भ्रम में हैं कि फ्रांसिस ज़ेविअर कोई नेक व्यक्ति रहा होगा. सच जानने पर वो जिस क्रोध का अनुभव करते हैं वो उनके संस्कारों पर निर्भर करता है. जहां कुछ ऐसे नीच व्यक्ति के नाम से चलने वाले संस्थान से पढ़े होने पर ग्लानी अनुभव करते हैं, वहीँ कुछ अन्य जो विषय की गंभीरता को नहीं समझ पाते, इसे एक दुर्भाग्य मान कर शांत हो जाते हैं. इस में इन बच्चों अथवा उनके अभिभावकों का कोई दोष नहीं है क्योंकि नेहरु ने इस नीच शिक्षण प्रणाली को जस का तस चलाने का विचार अंग्रेज़ों के अधीन ही स्वीकार कर लिया था.
यदि इस राक्षस को मंदिर गिराए जाने और मूर्तियाँ तोड़े जाने का हर्ष था तो इसके साथ इसे दो विशेष कष्ट भी थे.  अपने पहले कष्ट का वर्णन इसने सोसाइटी ऑफ जीसस  को लिखे एक पत्र में किया है. इस के अनुसार:
विश्व के इस भाग में जो मूर्ती पूजा करने वाले हैं, उन में एक नीच श्रेणी के लोग निवास करते हैं जिन्हें ब्राह्मण कहते हैं. इन पर बाइबल के साल्म में लिखा हुआ वाक्य,"ओ लोर्ड, अपवित्र जाति और धूर्त लोगों से बचाओ". यदि ये ब्राह्मण यहाँ न होते तो हम ने इन सभी मूर्ती पूजा करने वालों को इसाई बना दिया होता.
उसका दूसरा कष्ट था कि भारत में जो निर्धन हिन्दू इसाई मत में परिवर्तन कर रहे थे, उन्हें निःशुल्क भोजन का लालच दिया जाता था. ये हिन्दू भोजन सामग्री तो ले जाते थे किन्तु अपने पुराने धर्म के अनुसार ही पूजा पाठ करते थे. ज़ेविअर का मत था कि ये इसाई मत के लिए हानिकारक है.
अपने भीतर हिन्दू धर्म के विरुद्ध धधकती हुई इस आग को शांत करने के लिए ज़ेविअर ने पुर्तगाल के तत्कालीन शासक जौहन तृतीय को एक पत्र लिख कर यहाँ की स्थिति से अवगत करवाते हुए आग्रह किया कि भारत में इन्कुइसिशन  की स्थापना की जाए. ये पत्र सन १५४५ में लिखा गया था. उस समय की धीमी संचार प्रणाली के चलते पत्र जब जौहन त्रितीय तक पहुंचा, उसकी प्राथमिकता पुर्तगाल में सुचारू शासन था. अंततः भारत में १५६० में सभी मूर्ती पूजा करने वालों को आतंकित करने वाली तंत्र प्रणाली इन्कुइसिशन की स्थापना गोवा में कर दी गयी. इसलिए गोवा इन्कुइसिशन सेंट ज़ेविअर की देन कही जाती है.
 इन्कुइसिशन नामक प्रणाली की स्थापना सन ११८४ में हुई थी किन्तु ईसाईयों को भारत तक पहुँचने में लगभग ३०० वर्ष लग गए क्योंकि यूरोप और भारत के बीच जो भूमि थी वो मुसलामानों में अधिकार में थी जिस से कि इस्लाम ने ईसाईयों को ये सोने की चिड़िया लूटने से रोके रखा और यहाँ का वैभव लूट कर अरब की ओर ले जाते रहे. ये जानकार इसाई भी इस वैभव को लूटना चाहते थे. जब समुद्र के मार्ग से नाविकों ने कुशलता पूर्वक यात्रा करना आरम्भ किया तो क्रूर इसाई मत को भारत आने का मार्ग मिल गया.

यूं तो व्यापार के लिए मार्को पोलो जैसे यूरोपीय भारत आये थे किन्तु इसे लूटने के लिए और अपना उपनिवेश बनाने के लिए जो सामग्री ले जाने की आवश्यकता थी, उसके लिए समुद्र का मार्ग ही उपयुक्त था.
अभी तक आपने इसाई गौड और इसाई सेंट की मानसिकता तो समझ ली होगी लेकिन अभी भी या तो आप ये सोच रहे होंगे कि जो कुछ अभी तक आपने पढ़ा है वो अपवाद है अथवा मनघडंत है.

गौड की ऐसी शिक्षाएं यहाँ पढ़ें. गौड़ के मांसभक्षण पर विचार तथा इर्ष्या जानने के लिए यहाँ पढ़ें.

अब तनिक ध्यान कीजिये कि आप ने अपने विद्यार्थी जीवन में क्या पढ़ा है. आप ने पढ़ा है कि ब्राह्मण धूर्त थे, सत्ता और अधिकार के लिए लोभी थे. है ना?

ये सब आपको पढ़ाया किसने?

उन्होंने जो आपसे पहले उसी शिक्षा व्यवस्था में पढ़ चुके हैं जिस की स्थापना मैकॉले नामक एक अँगरेज़ ने की थी. वो केवल एक अँगरेज़ ही नहीं था वरन एक कट्टर इसाई भी था. उसकी शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य था हिन्दुओं को इसाई बनाना. ये तभी संभव था यदि आप ऐसा मानें कि हिन्दू धर्म निकृष्ट है लेकिन इसाई मत शान्ति का पाठ पढाता है. इसके लिए उसे केवल इतना करना था कि जो कार्य इसाई मत के ठेकेदार, अर्थात तथाकथित सेंट और फादर करते आये थे उन्हें ब्राह्मणों के सर मढ़ देना था. यही उन्होंने किया भी और सफलता पूर्वक किया है.

आइये अब गौड के पश्चात जिसे गौड अथवा यीशु का प्रतिनिधि माना जाता है उस से भी परिचित हो लें. इस प्रतिनिधि को कहते हैं पोप. ये शब्द आपने पढ़ा अथवा सुना होगा. इसे सुन कर अथवा पढ़ कर एक मुस्कुराते हुए बूढ़े की छवि उभरती है. इसे आज कल की आधुनिक भाषा में कहते हैं इमेज बनाना.

ऐसा ही एक मुस्कुराता हुआ बूढा था पोप अलेक्सान्दर ६. इसने सन १४९२ में पूरी पृथ्वी को अपनी इच्छा से दो भागों में बाँट दिया. इस पोप के आदेश के अनुसार ये काल्पनिक रेखा जो पूरी पृथ्वी को दो भागों में बाँटते हुए यूरोप में से जाती है, के पूर्वी ओर की सारी भूमि पर पुर्गालियों का और पश्चिम की सारी भूमि पर स्पेनियों का अधिकार होगा, जिन पर कि अभी तक ईसाईयों का शासन नहीं है.

अर्थात पूरी भूमि केवल ईसाईयों के लिए है और अन्य सभी मत अथवा सम्प्रदाय झूठे हैं क्योंकि वो गौड को अथवा जीसस को नहीं मानते.

पोप के आदेश को लेकर स्पेनी लुटेरा कोलंबस पश्चिम की ओर चल पड़ा और, यदि आप इसाई मत को माने तो, उस ने अमेरिका की खोज की. हमें पढ़ाया जाता है कि वो एक महान नाविक था किन्तु वास्तव में उसके साथ लुटेरों और इसाई पादरियों का एक लड़ाकू बेड़ा था जिसने अमेरिका के मूल निवासियों और सभ्यताओं का समूल नाश कर दिया था. इन में माया और इन्का जैसी महान सभ्यताएं भी सम्मिलित हैं.

ऐसा ही दूसरा डकैत था वास्को डि गामा, जो भारत के दुर्भाग्य से कोज़ीखोड़ (उस समय का कालीकट) की बंदरगाह पर अपने बेड़े सहित १४९८ में पहुंचा. उसने यहाँ खड़े २५ समुद्री नौकाओं को लूट लिया और उनके लगभग ८०० कर्मियों को बंधक बना लिया. इनके साथ किये गए व्यवहार को जानने के लिए यहाँ देखें.

इन प्रारम्भिक पुर्तगालियों ने हिन्दुओं को इसाई बनाने का कार्य आरम्भ कर दिया किन्तु उनका अधिक ध्यान लूट पाट में था. इसलिए जब लगभग सेंट ज़ेविअर भारत पहुंचा तो उसे अपनी अपेक्षा के अनुसार इसाई मत का प्रसार नहीं मिला.

भारत में इसाई मत को शीघ्रता से प्रसारित करने के लिए उसने पुर्गाली नौसेना की सहायता से तटीय प्रदेशों के निवासियों को तलवार की नोक पर हिन्दू धर्म त्यागने और इसाई मत अपनाने के लिए विवश किया. इन मछुआरों को ये पवित्र संत धमकी देता था कि यदि उन्होंने इसाई मत नहीं स्वीकार किया तो उनकी नावों को नौसेना द्वारा जला दिया जाएगा.

इसके साथ ही पुर्तगाली सैनिकों को ब्राह्मणों की हत्या का आदेश दे दिया गया. इसका परिणाम ये हुआ कि इस क्रूरता को देख कर हिन्दुओं के मन में इसाई मत के प्रति घृणा बढ़ गयी.

आज जब विश्व में एक परिपक्कावता आ रही है और हिन्दू धर्म के सर्वकालिक और सार्वभौमिक सिद्धांतों की सत्यता को स्वीकार जा रहा है, मिशनरी आज भी सोलहवीं सदी की भांति भोले भाले हिन्दुओं को मत परिवर्तन के लिए षड्यंत्रों में फसाते रहते हैं.

ध्यान रहे ये सब पोप और चर्च के कहने से ही हो रहा है न कि कोई व्यक्तिगत रूप से करता है.

ये है इसाई गौड, पोप और सेंट की दुनिया जिसमें केवल अपनी संख्या बढाने पर बल दिया जाता है और हिन्दू धर्म के विपरीत, इसमें किसी और मत को सहन करने का स्थान कतई नहीं है.

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