मोहम्मद का स्वप्न
सन ६२८ के फ़रवरी में मोहम्मद ने अपने साथियों को बताया कि उसे एक स्वप्न आया जिस में उस ने मक्का में स्थित काबा (जिस में विभिन्न देवी देतायों की लगभग ३६० मूर्तियाँ स्थापित थीं) का तीर्थ किया और बलि दी. अब तक मोहम्मद और उसके साथियों को मक्का छोड़े हुए लगभग छः वर्ष हो चुके थे इसलिए संभवतः सभी इस तीर्थ यात्रा के इच्छुक थे. ये वर्ष का वो समय था जब छोटा तीर्थ किया जाता था. इस समय विरोधी कबीलों से सामना होने की संभावना भी कम थी और इस काल में परंपरा के अनुसार पूरे अरब में और विशेष रूप से मूर्तियों वाले पवित्र काबा और मक्का में युद्ध करना वर्जित था. इस से अगले माह बड़ा तीर्थ होना था जिस में विरोधी कबीलों से आमना सामना हो सकता था.
इस समय यदि मक्का के निवासी (कोरिश) मोहम्मद अथवा उस के साथियों पर आक्रमण करते तो उन्हें ही अपराधी माना जाता. एक विशाल तीर्थ समूह ले जाने से मोहम्मद की कोरिशों के साथ लड़ाई में विजय भले ही न हो पाती किन्तु सुरक्षित लौटने की विश्वसनीयता तो थी ही. इसलिए मदीना के निवासियों ने (जिन्हें अंसार कहा जाता है) मोहम्मद के उन साथियों के साथ जो कि मक्का से पलायन कर के आये थे (मुहाजिर), तीर्थ यात्रा की तैय्यारी कर ली.
बददुओं का इनकार
अपने समूह को विशाल बनाने के लिए मोहम्मद ने आस पास के अरबी कबीलों को भी साथ चलने का न्यौता दिया जिसे कम ही लोगों ने स्वीकार किया क्योंकि इस में उन्हें लूट का माल (ग़नीमत) मिलने की संभावना नहीं थी. अधिकतम ने अपनी व्यस्तता और घरेलु समस्या बताते हुए इनकार कर दिया.
बलि के ऊंट
निश्चित दिन, मोहम्मद अपनी ऊंठ्नी अल कसावा पर सवार हो कर १५०० साथियों का गिरोह ले कर तीर्थ के प्रथम पड़ाव हुलीफा की ओर निकल पड़ा. वहां पहुँच कर सब ने विश्राम किया और बलि के लिए ऊंठों का चुनाव किया. उन ७० ऊंठों के मुंह मक्का की ओर कर दिए गए और उनके गलों में आभूषण डाल कर उनके दायीं ओर चिन्ह लगा दिए गए. इन में अबू जहल का ऊंट भी सम्मिलित था जिसे बद्र के युद्ध में मार दिया गया था और ऊंट मुसलामानों ने ग़नीमत के रूप में अपने अधिकार में ले लिया था.
बददुओं का इनकार
अपने समूह को विशाल बनाने के लिए मोहम्मद ने आस पास के अरबी कबीलों को भी साथ चलने का न्यौता दिया जिसे कम ही लोगों ने स्वीकार किया क्योंकि इस में उन्हें लूट का माल (ग़नीमत) मिलने की संभावना नहीं थी. अधिकतम ने अपनी व्यस्तता और घरेलु समस्या बताते हुए इनकार कर दिया.
बलि के ऊंट
निश्चित दिन, मोहम्मद अपनी ऊंठ्नी अल कसावा पर सवार हो कर १५०० साथियों का गिरोह ले कर तीर्थ के प्रथम पड़ाव हुलीफा की ओर निकल पड़ा. वहां पहुँच कर सब ने विश्राम किया और बलि के लिए ऊंठों का चुनाव किया. उन ७० ऊंठों के मुंह मक्का की ओर कर दिए गए और उनके गलों में आभूषण डाल कर उनके दायीं ओर चिन्ह लगा दिए गए. इन में अबू जहल का ऊंट भी सम्मिलित था जिसे बद्र के युद्ध में मार दिया गया था और ऊंट मुसलामानों ने ग़नीमत के रूप में अपने अधिकार में ले लिया था.
इसके पश्चात, वे आगे की यात्रा पर निकल पड़े. २० घुड़सवार आगे आगे चल कर संभावित शत्रुओं की टोह लेते थे. किसी यात्री के पास अधिक शस्त्र नहीं थे. सब म्यान में बंद एक तलवार, एक धनुष और बानों से भरा तुणीर ले कर चल रहे थे जैसा कि परंपरा के अनुसार आदेश था. मोहम्मद अपनी छठी पत्नी ओम्म सलमा को साथ ले कर आया था.
कोरिशों का विरोध
जब कोरिशों को मोहम्मद कि सूचना मिली तो उन्होंने आस पास के कबीलों के साथ मिल कर युद्ध की तैय्यारी कर ली. उनका मत था कि मोहम्मद शान्ति से नहीं आएगा बल्कि धोखे से युद्ध करेगा. उन्होंने मदीना से मक्का की ओर आने वाली सड़क पर ही छावनी लगा ली. खालिद और इक्रिमा (अबू जहल का बेटा) के नेत्रित्व में २०० घुड़सवारों को आगे भेज दिया गया.
मोहम्मद को जब ये सूचना मिली कि कोरिश अपनी महिलायों और बच्चों सहित लड़ने आये हैं और दृढ प्रतिज्ञ हैं कि मोहम्मद को प्रवेश नहीं करने देंगे, तब वो यात्रा के दूसरे पड़ाव ओस्फान के निकट पहुँच गए थे. अभी मोहम्मद युद्ध के लिए तत्पर नहीं था. अपने समक्ष विशाल सेना देख मोहम्मद ने सड़क से दायीं ओर मुड़ कर एक लम्बा मार्ग चुना. ये एक उबड़ खाबड़, लम्बा और थकाने वाला मार्ग था किन्तु शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता था.
हुदैबिया
इस मार्ग से होते हुए, मोहम्मद और उस के साथी हुदैबिया नामक स्थान पर पहुंचे जो एक खुला हुआ क्षेत्र था और मक्का की पवित्र सीमा के निकट था.
हुदैबिया
इस मार्ग से होते हुए, मोहम्मद और उस के साथी हुदैबिया नामक स्थान पर पहुंचे जो एक खुला हुआ क्षेत्र था और मक्का की पवित्र सीमा के निकट था.
यहाँ अल कसावा अपने पाँव जमा कर रुक गयी और आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. लोगों ने कहा कि वो थक गयी है तो इस पर मोहम्मद ने कहा,
नहीं, इसे उस ने रोक दिया है जिस ने हाथी को रोक दिया था.
(सन ५७० में हब्शीनियाँ के एक इसाई शासक अब्राहा ने मक्का पर हमला किया था. उसका उद्देश्य था इस मंदिर का नाश करना ताकि उसके द्वारा साना में बनाए गिरजाघर में अधिक लोग आयें. वो अपने साथ एक हाथी भी लाया था जोकि अरब में एक विशेष परिस्थिति थी. किसी महामारी से अब्राहा और उस की सेना मर गयी और मक्का का मंदिर सुरक्षित बच गया था) सभी अरबवासी इसे इश्वर का चमत्कार मानते थे. मोहम्मद ने कहा कि आज वो इस पवित्र स्थान का सम्मान करते हुए, कोरिशों के किसी भी अनुरोध को अस्वीकार नहीं करेगा. वहाँ कुछ कूएँ थे जो कि धूल के कारण बंद हो गए थे. मोहम्मद ने अपने तुणीर में से एक बाण निकाल कर अपने एक साथी को देते हुए धूल को कुरेदने के लिए कहा. ऐसा करते ही कूएँ में जल आ गया.
कोरिशों की मक्का वापसी और दूतों द्वारा संदेश
जब कोरिशों को पता लगा कि यात्री हुदैबिया की ओर चल दिए हैं, तो वो मक्का की सुरक्षा के लिए अपने नगर में लौट आये और मोहम्मद की मंशा भांपने के लिए दूत भेजने लगे. सब से पहले खोजा कबीले का बुदील नामक मुखिया आया जिस ने मोहम्मद को बताया कि कोरिश अपने नगर का बचाव करने के लिए दृढ हैं. प्रत्युत्तर में मोहम्मद ने कहा:
कोरिशों की मक्का वापसी और दूतों द्वारा संदेश
जब कोरिशों को पता लगा कि यात्री हुदैबिया की ओर चल दिए हैं, तो वो मक्का की सुरक्षा के लिए अपने नगर में लौट आये और मोहम्मद की मंशा भांपने के लिए दूत भेजने लगे. सब से पहले खोजा कबीले का बुदील नामक मुखिया आया जिस ने मोहम्मद को बताया कि कोरिश अपने नगर का बचाव करने के लिए दृढ हैं. प्रत्युत्तर में मोहम्मद ने कहा:
मैं हज के लिए आया हूँ और इसके अतिरिक्त मेरा कोई और उद्देश्य नहीं है. जिस ने भी हमें रोकने की चेष्टा की, हम उस से झगड़ा करेंगे.
इसके बाद अबू सोफिआं का दामाद और तैफ कबीले का मुखिया ओरवा दूत बन कर आया. उसने कहा कि मक्कावासी मोहम्मद को नहीं आने देंगे. इस पर अबू बकर ने क्रोध दर्शाया. ओरवा ने हाथ बढ़ा कर मोहम्मद की दाढ़ी पकड़ ली तो मोहम्मद के एक युवा साथी ने उसकी भुजा पर चोट करते हुए मोहम्मद को छोड़ने को कहा. ओरवा ने उस युवक की ओर देखते हुए पूछा:
ये कौन है?
उसे उत्तर मिला:
ये तुम्हारे भाई का बेटा मोघिरा है.
ओरवा ने विस्मय से उत्तर दिया
ऐ कृत्घन, अभी कल की तो बात है कि मैंने तेरी जान बचाई थी.
यहाँ ओरवा अपने इस भतीजे द्वारा किसी की हत्या किये जाने के पश्चात हताहत के परिजनों को दिए धन की ओर संकेत कर रहा था जो ओरवा ने दिए थे.
ओरवा ने भी वापिस आ कर कोरिशों को बुदील जैसा ही संदेश दिया लेकिन कोरिश नहीं माने. उनका कहना था कि यदि
मोहम्मद को आगामी वर्ष में हज की अनुमति
मोहम्मद इस प्रकार शक्ति प्रदर्शन करता हुआ मक्का में आया तो सारे अरब में कोरिशों की साख कम हो जायेगी. उन्होंने कहा:
मोहम्मद को आगामी वर्ष में हज की अनुमति
मोहम्मद इस प्रकार शक्ति प्रदर्शन करता हुआ मक्का में आया तो सारे अरब में कोरिशों की साख कम हो जायेगी. उन्होंने कहा:
उस से जा कर कहो कि इस वर्ष लौट जाए और अगले वर्ष आ कर हज पूरा कर ले.
इस प्रकार दोनों ओर से कई दूत गए. इन में से एक रेगिस्तानी बद्दू कबीले का मुखिया था जिस ने कोरिशों को वापिस आ कर बलि के ऊंठों का मोहम्मद के साथ होना हज के उद्देश्य का प्रमाण बताया. किन्तु कोरिशों ने उस से कहा कि वो एक सीधा सादा रेगिस्तानी है जो चालाकियों को नहीं समझता. इस पर ये मुखिया क्रोधित हो गया और उस ने कोरिशों से अपना सहयोग खींच लेने की धमकी दी. इस से कोरिश कुछ घबरा गए और उस से कहा:
धैर्य रखो और हमें अपनी सुरक्षा के संबंध में विचार कर लेने दो.
उस्मान - मुसलामानों का दूत
मुसलामानों के पहले दूत के साथ दुर्व्यवहार किया गया और उसके ऊंट को भी घायल कर दिया गया था. अंततः मोहम्मद ने अपने दामाद उस्मान को दूत बना कर भेजा गया क्योंकि उसके कई प्रभावशाली सम्बन्धी मका में रहते थे इसलिए उस से दुर्व्यवहार होने की संभावना नहीं थी. नगर में पहुँचते ही उस के एक प्रियजन ने उसे सुरक्षा प्रदान कर दी. वो सीधा मक्का के मुखिया अबू सोफ़िआन के पास गया और कहा:
हम हज के लिए पशु भी साथ लाये हैं. हम पवित्र स्थान का सम्मान कर के और बलि देने के उपरान्त लौट जायेंगे.
उसे उत्तर मिला कि यदि उस्मान चाहे तो बलि दे सकता है किन्तु मोहम्मद को इस वर्ष नगर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. उस्मान ये संदेश ले कर पड़ाव में लौट आया.
वृक्ष तले ली गयी प्रतिज्ञ
उसके लौटने से पहले पड़ाव में मोहम्मद और अन्य मुसलामानों को भ्रम हो गया कि उस्मान की हत्या कर दी गयी है. उसने सब को एक बबूल के वृक्ष के नीचे बुलाया और और उन से प्रण करवाया कि यदि उस्मान की हत्या कर दी गयी है तो वे सब इस का प्रतिशोध लेंगे. जब सब ने मोहम्मद की हथेली पर अपनी हथेली मार कर ये प्रतिज्ञा कर ली तो मोहम्मद ने स्वयं भी अपनी दोनों हथेलियों को आपस में मिला कर प्रतिज्ञा की.
सुहील द्वारा संधि
जब उस्मान लौट आया तो सब ने राहत की सांस ली. इस प्रतिज्ञा ने सब में एकता की भावना भर दी थी.
अंततः कोरिशों ने अपनी ओर से सुहील को संधि करने के लिए अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा. लंबे वाद विवाद के पश्चात दस वर्ष की संधि का प्रस्ताव बना. इस संधि के अनुसार दस वर्ष तक कोई युद्ध नहीं होगा और सीरिया से आने वाले कारवां को मुसलमान सुरक्षित छोड़ देंगे. यदि कोई मुसलमान बनाना चाहे तो इसके लिए वो स्वतंत्र होगा.
सुहील का प्रतिरोध: मोहम्मद अल्लाह का पैगम्बर नहीं बल्कि अब्दुल्लाह का बेटा
मोहम्मद ने संधि लिखने के लिए अली को आदेश दिया. मोहम्मद ने जब संधि के आरम्भ में अली से लिखने को कहा कि ये संधि जो मोहम्मद जो अल्लाह का पैगम्बर है और सुहील के बीच में की जा रही है तो सुहील ने उसे रोक कर कहा:
यदि तुम वो हो जो तुम कह रहे हो तो मैं कभी तुम्हारे विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाता. संधि परम्परागत नियमों के अनुसार ही लिखी जाए.
तत्पश्चात ये लिखा गया कि कए संधि मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह (अर्थात अब्दुल्लाह का बेटा मोहम्मद) और सुहील बिन अम्र के बीच में हुई है. इसके अनुसार आगामी दस वर्ष तक कोई परस्पर युद्ध नहीं होगा. यदि कोई मोहम्मद का साथी बनाना चाहे तो उसे रोका नहीं जाएगा और यदि कोई कोरिशों का साथ देना चाहे तो उसे भी रोका नहीं जाएगा. इस वर्ष मोहम्मद लौट जाएगा और आगामी वर्ष अपने साथियों के साथ हज के लिए आ सकता है. उसके आने पर कोरिश तीन दिन के लिए नगर मोहम्मद और उसके साथियों के लिए छोड़ कर चले जायेंगे. वे सब शास्त्रों से रहित आयेंगे और केवल एक म्यान बंद तलवार साथ लाने की अनुमति है.
साक्षी के रूप में अबू बकर और अन्यों ने हस्ताक्षर किये. मूल प्रति मोहम्मद ने अपने पास रखी और एक प्रति सुहील को दे दी.
साथियों की मायूसी
इसके पश्चात मुसलामानों ने हुदैबिया में ही ऊंठों की बलि दी, मोहम्मद सहित सब ने अपने सर मुन्दवाए और १०-१५ दिन वहाँ रुकने के पश्चात मदीना लौट आये. जो मोहम्मद के स्वप्न को सच मान कर यात्रा पर चले थे वो मायूस थे.
इस संधि ने मोहम्मद की प्रतिष्ठा बढ़ा कर कोरिशों के समकक्ष कर दी थी.
कुरान की आयतों का प्रकट होना
लौटते समय कुरान की जो आयत प्रकट हुई थी वो इस प्रकार है:
[48:1] फ़ारूक़ ख़ान एवं नदवी
हमने तुम्हें (ऐ मोहम्मद) एक निश्चित फतह दी है. २ ताकि अल्लाह तुम्हारे अगले और पिछले गुनाह माफ़ करे और तुम्हें सही रास्ता दिखाए ३ और अल्लाह तुम्हारी खूब मदद करे. ४ वही है जिसने दीन वालों के दिलों में सकीना (शान्ति) उतारी, ताकि अपने दीन को और बढ़ा सकें. ज़मीन और आसमान की सारी फौजें अल्लाह की ही हैं. अल्लाह सब जानने वाला और समझदार है. ५ ताकि वह मुसलमान पुरुषों औप औरतों को जन्नत के ऐसे बाग़ों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जिनमे वो सदा रहेंगे और उनके गुनाह बख्श दे - ये अल्लाह की नज़र में बड़ी फतह है. ६ ताकि वो उन मुनाफ़िक़ mardon और औरतों tatha mushriq mardon और औरतों को saza दे sake jo अल्लाह के baare में bura sochte हैं र मुनाफ़िक़ औरतों और मुशरिक मर्द और मुशरिक औरतों पर जो ख़ुदा के हक़ में बुरे बुरे ख्याल रखते हैं अज़ाब नाज़िल करे उन पर (मुसीबत की) बड़ी गर्दिश है (और ख़ुदा) उन पर ग़ज़बनाक है और उसने उस पर लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है और वह (क्या) बुरी जगह है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें