बुधवार, 5 जनवरी 2011

इस्लाम में मुस्लिम महिलायों का सम्मान

प्रश्न - मैंने मजाक में, अपनी पत्नी से इंटरनेट पर चैट करते हुए तीन बार तलाक़ लिख दिया था. शरिया के मुताबिक़ इस बारे में क्या हुक्म है? मुझे इस्लाम की ज्यादा जानकारी नहीं है. मैं अपनी बीवी के साथ रहना चाहता हूँ.
फतवा -
तलाक़ हो गया है और आप की बीवी, शरिया कानून के मुताबिक़, आप के लिए हराम है. यदि वो चाहे तो तीन माह की इद्दत  समाप्त हो जाने पर अपनी इच्छा से किसी से भी निकाह कर सकती है. शरिया के मुताबिक़ मज़ाक में दिया गया तलाक़ भी तलाक़ भी मान्य होता है. ये मायने नहीं रखता कि इस्लाम की जानकारी है या नहीं.
तुम न तो उसके साथ रह सकते हो और न ही उस से दुबारा निकाह कर सकते हो. अगर उसके साथ रहना चाहते हो तो तुम्हारी बीवी को पहले हलालाह करना होगा, तभी वो तुम्हारे लिए हलाल होगी.

प्रश्न - मैंने गुस्से में आकर अपनी पत्नी दो मोबाइल फोन पर तीन बार तलाक़ कह दिया था. मेरी पत्नी का कहना है कि नेटवर्क की खराबी के चलते उसे एक ही बार तलाक़ सुनाई दिया था. कोई और गवाह मौजूद नहीं था. मेहरबानी कर के बताएं कि तलाक़ हो गया है या नहीं?
फतवा -
अगर तुम ने तीन बार तलाक़ कहा था तो तलाक़ हो चुका है. शरिया के मुताबिक़ ये ज़रूरी नहीं है कि बीवी ने उसे सुना हो या कोई गवाह मौजूद हो. तुम्हारे लिए वो हराम हो चुकी है.
 http://news.outlookindia.com/item.aspx?701269
ये दोनों समाचार १५/११/२०१० के पत्र में छपे थे.

इन में पहले फतवे में जिस हलालाह शब्द का प्रयोग हुआ है, उसे समझ लीजिये. यदि कोई मुसलमान अपनी बीवी को तलाक़ देना चाहे तो उसे केवल तलाक़, तलाक़, तलाक़ बोलना होता है या इतना कहना होता है कि 'तुझे तीन बार तलाक़' और उसे बीवी से छुटकारा मिल जाता है. इस का पालन उलेमा इतनी कठोरता से करते हैं कि यदि कोई गुस्से में, बेहोशी में अथवा जैसा कि ऊपर दिया है मज़ाक में भी बोल दे तो तलाक़ हो जाता है.
अब यदि पति उसे वापिस पाना चाहे तो इसके लिए तलाकशुदा बीवी को जिस शर्मनाक स्थिति से गुज़ारना पड़ता है वो इस प्रकार है. तलाक़ के बाद तीन माह तक वो कहीं निकाह नहीं कर सकती. इन तीन माह के समय को इद्दत कहते हैं. इसके बाद वो किसी और पुरुष से निकाह करती है जो कम से कम तीन माह तक चलता है. फिर उस से तलाक़ लेना है. अब फिर इद्दत के तीन माह बिताने हैं. अब वो अपने पहले शौहर से निकाह कर सकती है.
ये सुनने में शर्मनाक तो है ही लेकिन वास्तविकता में ये और भी शर्मनाक है क्योंकि दूसरा निकाह तब तक मान्य नहीं होता जब तक कि दूसरे शौहर से संसर्ग न कर लिया जाए.
यदि  आप को ऐसा लगता है कि ये केवल कागज़ी कार्यवाही है तो आप एक बहुत बड़ी भूल पर हैं. इस व्यवस्था को हमारे देश के सेक्युलर शासन और न्यायालयों ने पूर्ण मान्यता दे रखी है. न्यायालयों के अनुसार केवल दूसरा निकाह होना ही काफी नहीं है, ये भी प्रमाणित करना आवश्यक है कि शारीरिक संबंध बने थे.

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