गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

इन्कुइसिशन - लेडीज़ स्पेशल

बिल्ली का पंजा (Cat's Paw)

कहते हैं कि जीसस का दायाँ हाथ दया और क्षमा का चिन्ह है और बायाँ हाथ न्याय का. इन्कुइसिशन के समय नास्तिकों को छूने के लिए जीसस के प्रतिनिधि पोप ने और उजले चोगे वाले फादर लोग दया और क्षमा की प्रतिमूर्ति बन जाते होंगे. इस पवित्र कार्य के लिए वो जिस उपकरण की सहायता लेते थे, इस का एक नाम टिक्लर (tickler) अर्थात गुदगुदाने वाला भी रखा था.

ब्रेस्ट रिप्पर (Breast Ripper)

इन्कुइसिशन में प्रयोग किया जाने वाला ये उपकरण केवल महिलायों पर ही प्रयुक्त होता था. जैसा कि इसका नाम है, ये नास्तिक महिलायों अथवा नु महिलायों पर प्रयोग होता था जिन्हें डायन घोषित कर दिया जाता था. अधिकतम धातु से बने उपकरणों को आग में तपा कर प्रयोग किया जाता था.

यहाँ ब्रेस्ट रिप्पर के साथ जो छोटा उपकरण रखा है वो पुरुषों पर प्रयोग किया जाता था. इस का नाम है टेस्टिकल रिप्पर (Testicle Ripper), अर्थात इसे पुरुषों के अंडकोष चीरने के लिए प्रयोग किया जाता था.


लौह मकड़ा अर्थात आयरन स्पाईडर (Spider)

इस उपकरण का चित्र अभी नहीं मिल पाया है लेकिन इस की व्याख्या हमें कई लेखकों से मिलती है और यहाँ जो रेखा चित्र दिखाया गया है, ये लार्नल इंगरसोल नामक एक अमरीकी ने बनाया था जब वो इन उपकरणों को देख कर आया था. ये चित्र १८८० के लगभग बनाया गया था.
 ये लोहे का बना था और जो ऊपर मध्य में छल्ला है, उसे हल्का सा झटका देने पर लोहे के नोकीले दांत एक शिकंजे की भांति कास जाते थे. इनका उपयोग स्त्रियों के स्तनों पर किया जाता था. एक अन्य उल्लेख के अनुसार, बीच वाला छल्ला, एक रस्सी के द्वारा छत से लटका होता था. स्तनों को भेदने के उपरान्त रस्सी से इसे ऊपर खींचा जाता था.
 
पियर (Pear)

पियर को हिंदी में नाशपाती कहते हैं. ये नाम इसे संभवतः इस के आकार के कारण दिया गया है. इसके ऊपर जो छल्ला दिख रहा है, वो एक पेच से जुड़ा है और उस पेच के साथ जुड़ा है एक स्प्रिंग, जो छल्ले को घुमाने से धीरे धीरे पियर को खोलना आरम्भ कर देता है. ये उन उपकरणों में से है जिस में नोक अथवा कीलें नहीं लगी हैं. लेकिन जिस के लिए इस का उपयोग किया जाता था, उसके लिए कीलों की आवश्यकता ही नहीं थी.
इसे बंद अवस्था में अभागे नास्तिक के मुंह में अथवा गुदा द्वार में और महिलायों के लिए, उनके गुप्तांग में डाल दिया जाता था और फिर यातना के लिए धीरे धीरे छल्ला घुमा कर खोला जाता था.
कल्पना कर के देखिये कि उन अभागी महिलाओं के किस स्तर तक मानसिक और शारीरिक यातना का अनुभव होता होगा. और ये सब वहशी यातनाएं धर्म जैसे पवित्र शब्द की आध में दी जाती थीं. यही लोग आज हमारे देश में सिखाते हैं कि हमारे पूर्वज भेद भाव करते थे.
पियर पर कलाकारी भी की जाती थी.
 मैं अपनी अधूरी जानकारी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. ये लेख पूरा करने के उपरान्त मुझे एक और पियर की जानकारी मिली है, जिसका चित्र नीचे दिखा रहा हूँ. पियर में नोक नहीं होती, मैं ये शब्द वापिस ले रहा हूँ.

द्वारपाल की बेटी (Janitor's daughter or Sweeper's daughter)

एक बात की प्रशंसा करनी होगी इन फादर लोग की. उपकरण कितने भी वहशी हों, नाम विनोदी प्रवृति के रखते थे. किसी मिशनरी से मिलिए और उसे कहिये कि हिन्दू गंगा में स्नान करके ऐसा मानते हैं कि पाप धूल जाते हैं. अब प्रतिक्रिया देखी क्या होगी. शब्दों का लम्बा चौड़ा जाल बुना जाएगा और उसका अर्थ होगा कि पाप तो तभी धुलेंगे जब आप द ओनली गौड जीसस क्राइस्ट की शरण में आयेंगे क्योंकि उसने आज से २००० वर्ष पहले समस्त मानव जाति के पापों का प्रायश्चित करने के लिए अपनी जान दी थी. यदि आप ने इस बेतुके मत का तर्क बताने को कहा तो एक नया शब्द जाल बुना जाएगा, जिसका परिणाम होगा कि तर्क कोई नहीं है. यदि आप दो सदियाँ पहले ये प्रश्न पूछते तो आप को मनुष्यता के गिरने की सीमा का पता लगता.

जीसस प्रेम का मार्ग: इन्कुइसिशन ३


नास्तिक का काँटा (Heretic's fork) 




 ये एक लगभग छः से आठ इंच लम्बा लोहे का उपकरण है जिसे अब जंग लग चुका है. लेकिन ये बीती सदियों में उन लोगों के विरुद्ध बहुत प्रभावकारी सिद्ध होता था जो चर्च अथवा बाइबल अथवा पोप के विचारों से सहमत नहीं होते थे. इस के एक छोर पर लगा खांचा ठोढ़ी को अपने घेरे में लेता था और दूसरा उस हड्डी को जो गला समाप्त होते और छाती आरम्भ होने पर गले के नीचे एक खड्डा सा बनाती है. मध्य में जो छेद दिख रहे हैं, उनमें से चमड़े का एक पट्टा, जूते की डोरी की भांति निकलता था. इस पट्टे को नास्तिक की गर्दन के पीछे कस दिया जाता था. इसका एक लाभ तो ये था कि अब इस नास्तिक पर कैसी भी यातना कर ली जाए, ये चिल्ला नहीं सकता था. दूसरे, ये अपने आप में ही एक यातना थी. तीसरे यदि इसे लोगों के बीच लेजाकर जीवित जलाना हो तो वो किसी को बता नहीं पायेगा कि उसके साथ यातना कक्ष में क्या क्या बीता था.

मुकुट (Headgear)


यूं तो देख कर ही समझ में आ गया होगा कि ये किस काम आता होगा. आपको इस के निर्माता की संवेदनशीलता और इसे प्रयोग में लाने वाले इन्कुइसीटरों (चर्च के वो अधिकारी दो ये कार्य करते थे) और इन्कुइसिशन का आदेश देने वाले पोप के दया भाव के संबंध में अनुमान तो हो ही गया होगा. इस में एक ओर जो छल्ले हैं, उनमें से एक पेच निकलता है जिसे घुमा कर इस घेरे को इच्छानुसार कसा अथवा ढीला किया जा सकता है.
जब होली फादर बाइबल और यीशु का ज्ञान तुम्हें दे रहे थे, तब तुम्हें समझ में नहीं आया था. अब फादर जब इस पेच को कसना आरम्भ करेगा तो खोपड़ी में में या तो यीशु का ज्ञान जाएगा अथवा लोहे के कील.

मुखौटा (Mask)


यहाँ जो विभिन्न प्रकार के मुखौटे आप देख रहे हैं, ये उन लोगों को पहनाये जाते थे जो चर्च के मत का विरोध करते थे.

ये सुन कर पहला विचार मन में आता है कि ये तो एक हल्का सा दंड है. मुझे भी ऐसा ही लगा था. तनिक ध्यान से पहले दो मुखौटों से निकल रहे लंबे कानों को देखिये. ऐसा लगता है मानों मुखौटे को हास्यास्पद बनाने के लिए ये कान लगा दिए गए हों. ये उस्तरे की धार जैसे धारदार हैं. अभी भी नहीं समझे. जब ये धातु का बना मुखौटा चर्च अथवा जीसस के प्रेम और करुणा को न स्वीकार करने वाले नास्तिक को पहनाया जाता था तो उस व्यक्ति के कान इस पिंजरे जैसे मुखौटे से बाहर निकल रहे होते थे. अब इन उस्तरे जैसे कृत्रिम कानों को नीचे को एक झटका दिया तो क्या होगा?
खच्च! कान कट कर गिर जाएगा. है न फादर की बात मानने योग्य?

अब इन सभी मुखौटों की एक समानता देखिये. ये सब के सब धातु के बने हुए हैं. इसका भी एक विशेष कारण है. इन्हें आग में तपाने के पश्चात ही नास्तिकों को पहनाया जाता था. कुछ विवरण ऐसे भी हैं जिनके अनुसार मुखौटा पहनाने के उपरान्त, पिघला हुआ सीसा मुंह में अथवा कानों में डाला जाता था.

जीसस प्रेम का मार्ग: इन्कुइसिशन - २


Go ye therefore, and teach all nations, baptizing them in the name of the Father, and of the Son, and of the Holy Ghost.”
- Matthew 28/19
ऊपर दिया वाक्य बाइबल का है और इसका अर्थ है:
जाओ और सभी राष्ट्रों को फादर, पुत्र और पवित्र प्रेत के नाम पर इसाई बना दो.
तीन में एक या एक में तीन

जो लोग इसाई मत के इस सिद्धांत से अनजान हैं, उन्हें संक्षेप में बता दें कि इसाई मत के अनुसार पवित्र प्रेत ने जीसस की माँ मेरी को गर्भवती किया था जब कि उसकी   जोसफ नामक व्यक्ति के साथ सगाई हो चुकी थी और इस गर्भधारण से ही जीसस का जन्म हुआ था, इसलिए जीसस को गौड  का पुत्र भी कहा जाता है. गौड को पिता भी कहते हैं. इस प्रकार ये तीनों एक ही हैं. और इसाई मत के अनुसार, गौड एक ही है.
सन १८२३ में राम मोहन नामक एक बंगाली व्यक्ति ने इस के संबंध में एक छोटा सा लेख लिखा, जिस का शीर्षक है 'पादरी शिष्य संवाद'. इस में एक पादरी अपने तीन शिष्यों को ये सिद्धांत समझाता है और फिर उनसे पूछता है कि बताओ गौड एक है अथवा अनेक. पहला शिष्य उत्तर देता है कि गौड तीन हैं, दूसरा शिष्य उत्तर देता है कि गौड दो हैं और तीसरा उत्तर देता है कि गौड कोई नहीं है. इस पर पादरी क्रोधित हो जाता है और उनसे अपने उत्तर स्पष्ट करने को कहता है. पहला कहता है 
आप ही ने बताया है कि पिता, पुत्र और पवित्र प्रेत, ये तीनों गौड हैं, इसलिए मेरी गणना के अनुसार तो ये तीन गौड हैं. 
दूसरे ने कहा,
आप ही ने बताया कि पिता, पुत्र और पवित्र प्रेत, ये तीन गौड हैं और इनमें से एक को किसी पश्चिमी राष्ट्र में मार दिया गया था, इसलिए मेरे अनुसार तो दो ही बच गए. 
तीसरे ने कहा,
आप बार बार कहते रहे हैं कि गौड एक है और क्राइस्ट के अतिरिक्त कोई सच्चा गौड नहीं है. लेकिन लगभग १८०० वर्ष पहले क्राइस्ट को अरब सागर के निकट रहने वाले यहूदियों ने मार दिया था. इसलिए मुझे लगा कि अब कोई गौड नहीं है.
टेबल टॉर्चर 

अब तक आप समझ गए होंगे कि मिशनरी ऐसे दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर तर्क से तो दे नहीं पायेंगे. तो जब भी ऐसी दुविधा अथवा उनके सिद्धांतों में विरोधाभास की स्थिति आती थी, वे उच्च तकनीक का उपयोग कर लेते थे. आइये कुछ उच्च तकनीक के दर्शन कर लें.

ऊपर के चित्र में दोनों व्यक्ति मुस्कुरा रहे हैं क्योंकि ये एक प्रदर्शनी में लगे इस यातना उपकरण को देख रहे हैं. किन्तु जब लेटने वाला कोई मूर्ती पूजा वाला अथवा चर्च के मत से भिन्न मत वाला होता था तो उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं होती थी. 
जैसा कि आप समझ गए होंगे कि हाथ पाँव बाँधने के पश्चात आप के प्रिय पादरी प्रेम पूर्वक चरखे को घुमाना आरम्भ कर देता था ताकि आप के तर्क का उत्तर दिया जा सके. धीरे धीरे रस्सियों के खिंचाव से आप के शरीर के सारे जोड़ अपने स्थान से खिसकने लग जायेंगे. अब फादर को अपनी बात आप को समझाने में अधिक समय नहीं लगेगा. यही तो टेक्नोलोजी का लाभ है कि श्रम कम करो और परिणाम शीघ्र मिल जाए.
यदि फादर उस दिन आप से अधिक करुणामयी होकर मिलने के इच्छुक हों तो आप को इन गद्देदार कीलों वाले पहियों अर्थात रोलर्स पर भी लिटा सकते हैं.
अच्छा अब कल्पना कीजिये कि यदि किसी को इन पर पेट के बल लेटा कर दोनों ओर से अथवा एक ओर से खींचा जाएगा तो हमारे मिशनरी भाइयों अथवा फादर को कितना आनंद आता होगा. कलाइयों, कोहनी, कन्धों, कूल्हों, घुटनों और एड़ियों के जोड़ तो अपने स्थान से टूट ही जायेंगे, ये कीलें उस नीच मूर्ती पूजा करने वाले की आंतें इस करुणामयी टेबल पर बिछा देंगी. पोप कितने प्रसन्न होते होंगे, जो इस प्रकार की पूछ ताछ का आदेश देते थे.


मूर्ती पूजा करना अथवा जीसस के अतिरिक्त किसी और की अराधना करना, इसाई मत के अनुसार शैतानी मानसिकता है. इसलिए कैसा भी उपाय करना पड़े, शैतानी पद्दतियों और सभ्यताओं का विनाश करना इस मत के अनुसार एक पवित्र कार्य है और इस विनाश के लिए ये मिशनरी जीसस क्राइस्ट की सौगंध खा कर प्रतिबद्ध होते हैं.

साक्षात्कार के लिए कुर्सी (Chair Torture)
इसाई मत के विद्वानों ने, जिन्हें हम मिशनरी अथवा फादर के नाम से पुकारते हैं, इसाई मत के लिए उच्च तकनीक का उपयोग तेरहवीं सदी में ही आरम्भ कर दिया था. वैदिक संस्कृति के ब्राह्मणों ने विश्व को वेद, योग, उपनिषद्, पुराण, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, कृषि व्यवस्था जैसा ज्ञान दिया है और उनकी अपनी जीवन शैली भिक्षुओं की भांति होती थी. ब्राह्मणों की ये जीवन शैली और ज्ञान मिशनरियों के लिए सब से बड़ी बाधा थी इसलिए जब इसाई शिक्षा पद्दति हमारे देश में अपनाई गयी तो मिशनरियों ने अपनी सारी करतूतों को ब्राह्मणों के सर मढना आरम्भ कर दिया. इस शिक्षा के अनुसार इसाई सम्प्रदाय सब को समान दृष्टि से देखता है और ब्राह्मण कुटिल थे और सत्ता के भूखे थे. उन्होंने जन साधारण का शोषण किया और उन पर अत्याचार किये. इसके लिए हिंदी कहावत है - उल्टा चोर कोतवाल को डांटे.


कुछ लोग नाहक ही मिशनरियों को दरिंदा अथवा विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति होने की बात कर देते हैं. ऐसा कुछ नहीं था. वे तो सब के आराम का विशेष ध्यान रखते थे.यदि किसी को लेटने में असुविधा हो तो उस के लिए बैठने का भी उचित प्रबंध किया जाता था. कदाचित मैं बताना भूल गया कि इन सभी आरामदायक उपकरणों पर नग्न कर के ही बैठाया जाता था. वो क्या है कि जब आप ने वस्त्र पहन रखे होंगे तो इन उपकरणों में से निकल रहा गौड का आप के प्रति प्रेम आप को छू नहीं पायेगा. इसे आधुनिक भाषा में 'टच थेरपी' अर्थात छुअन चिकित्सा कहते हैं. यीशु का प्रेम हर स्थान से निकल रहा है, वो लोहा हो अथवा लकड़ी और आप की त्वचा में से होते हुए हड्डियों तक पहुँच जाएगा. क्या पता ह्रदय तक भी पहुँच जाए.

जूडा का पालना (Juda's Cradle)
यदि आप को ऊपर दर्शाई गयी करुणापूर्ण कुर्सी पर बैठने में कोई कठिनाई है तो एक आसन और भी है फादर के घर में. यूंही थोड़ा इसे अकेला सच्चा सम्प्रदाय (द ओनली ट्रू रिलिजन ) कहते हैं.


अपने आप को इस आसन पर बैठे होने की कल्पना कीजिये. यदि बैठते ही आप को जीसस क्राइस्ट में विश्वास न आ गया तो जिन दयावान पुरुषों ने रस्सियाँ पकड़ रखी हैं, वो उन्हें झटके देने लगेंगे. आप अपने धर्म के लिए ऐसे कितने झटके सह सकेंगे?



 लौह कन्या (IRON MAIDEN)

अब लौह कन्या पर भी दृष्टि डाल लें.
 
इसमें खड़े होने का दंड जिन लोगों को दिया जाता था, वे इस में तीन दिन तक खड़े रखे जाते थे. कील त्वचा को भेद जाते थे किन्तु अंदरूनी अंगों को क्षति नहीं पहुंचाते थे. बंदी इस में जीवित रहता था और उसे कुछ समय के पश्चात निकाल लिया जाता था.

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

सेंट ज़ेविअर की देन: इन्कुइसिशन

इसाई मत की विचित्र मान्यता 

इसाई मत के अनुसार जो व्यक्ति जीसस क्राइस्ट को 'एक मात्र भगवान्' अथवा 'इश्वर का अकेला पुत्र' नहीं मानता, वो मरने के उपरान्त सदा के लिए नर्क (एटर्नल डेम्नेशन) का भोग करेगा, और जो इस को स्वीकार कर लेगा, वो सदा के लिए स्वर्ग में रहेगा.
देखा आपने! कितना सीधा सा विधान है. आप का लोगों के प्रति व्यवहार अधिक प्राथमिकता नहीं रखता. आप के आचार विचार कैसे हैं, ये भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है. यदि आप एक नेक इंसान हैं और समाज तथा विश्व के लिए अच्छे कार्य करते हैं लेकिन आप जीसस अथवा यीशु की शरण में नहीं आये तो आप का स्थान केवल नर्क ही है.

एक सरल प्रश्न 
लगभग दो शताब्दी पहले एक ब्राह्मण ने जब इस तर्कहीन मत को पढ़ा तो उसने मिशनरियों से एक प्रश्न पूछा;
यदि इश्वर का ये विधान है तो इश्वर ने घोर अन्याय किया है क्योंकि आप मिशनरियों को भारत तक ये संदेश लाने में लगभग १७०० वर्ष लग गए. इन १७ सदियों में जितने भारतीय मरे हैं, उन्होंने जीसस को 'इश्वर का अकेला पुत्र' (ओनली बेगौटन सन) नहीं माना था इसलिए वो सब बिना अपने किसी अपराध के सदा के लिए नर्क की अग्नि में जल रहे होंगे. इसका अर्थ हुआ की जीसस निर्दयी है जब कि आप कहते हैं कि वो दयावान है. कृपया ये विरोधाभास दूर कीजिये?
मिशनरियों को आज तक इस का उत्तर नहीं मिला.

कई सरल उत्तर 
 
लेकिन यदि आप सोचते हैं कि इस से मिशनरी हार मान लेंगे तो ये आप की भूल है. तर्क तो इनका सबसे छोटा हथियार है. आइये इनके कुछ इश्वर के अकेले पुत्र का ज्ञान देने वाले उपकरण देखते हैं.
 बाएं दिए चित्र में आप एक लगभग तीन इंच लंबा और एक इंच ऊँचा उपकरण देख रहे हैं. ऊपर और नीचे जो दो लंबे पाटों के बीच में जो स्थान है, उस में उन नास्तिक लोगों की दो अंगुलियाँ अथवा अंगूठे रखवा दिए जाते हैं जो मिशनरी फादर की मीठी बातों और मुस्कान में आ कर पवित्र मत को नहीं अपनाता.  इसी चित्र के नीचे वाले भाग में अंगुलियाँ रखने का ढंग भी समझाया गया है. अब उजला लबादा पहने, होली फादर धीरे धीरे ऊपर बने पेच को कसना शुरू करता है. कल्पना कीजिये कि आप की अंगुलियाँ इस छोटे से उपकरण में फंसी हैं और ऊपर और नीचे से निकले हुए कील धीरे धीरे आप की त्वचा में चुभने लगे हैं. आप कितनी देर अपने तर्क को पकडे चिल्लाते रहेंगे. आप के पास रास्ता है जीसस क्राइस्ट को इश्वर मानना. इस से आप नर्क में जाने से बच जायेंगे जिस का छोटा से दृश्य करुणा से भरे फादर ने आप को दिखला दिया है. इस छोटे परन्तु प्रभावी उपकरण का नाम है थम्बरैक.
 ये भी थम्बरैक ही है केवल अंतर इतना है कि ये सारा लोहे से बना है और इसमें एक ओर एक छोटा सा अतिरिक्त छल्ला भी है. जब रैक में दो अंगुलियाँ रखी जाती थीं तो अंगूठा इस छल्ले में से निकाल कर मरोड़ देने की सुविधा दयावान फादर को मिल जाती थी.
लेकिन यदि आप सोच रहे हैं कि आप कठोर हैं और इस उपकरण से नहीं डरेंगे तो आप के लिए एक थोड़ा बड़ा उपकरण भी है.
यहाँ जो दायीं ओर उपकरण है, ये उपकरण कैसा दिख रहा है. अरे! आप तो डर रहे हैं. आप को तकनीक की प्रशंसा करनी चाहिए और इस तथ्य पर गर्व होना चाहिए कि इसाई संत कितने मॉडर्न विचारों के थे और नयी तकनीक का उपयोग करते थे.
यहाँ जो कीलों के बीच स्थान है, उस में आप की कलाई अथवा घुटना रखा हो तो कैसा अनुभव होगा?
अरे नहीं! आप इस तहखाने में अकेले थोड़े ही होंगे. करुणा की मूर्ती, हमारे होली फादर और उनके सहयोगी भी होंगे न. वो ऊपर वाले भाग पर धीरे धीरे भार बढाते रहेंगे. उनके पास ऐसा ही एक और भी तो था जो अब आप के दूसरे घुटने पर लगा दिया गया है. 
जब ये लोग इतने प्यार से आप को समझा रहे हैं तो आप अपने पूर्वजों की पूजा पाठ की पद्दति छोड़ क्यों नहीं देते. हठयोग छोडिये और ओनली बिगौटन सन  की शरण में आ जाइए.
ये उपकरण इन्कुइसिशन के समय प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों का एक छोटा सा भाग हैं. इस से भी परिष्कृत उपकरण आप को देखने को मिलेंगे.

इन्कुइसिशन की परिभाषा 

इन्कुइसिशन (INQUISITION:a former special tribunal, engaged chiefly in combating and punishing heresy.): इस अंग्रेजी भाषा के शब्द का अर्थ शब्दकोष के अनुसार है - एक ऐसी जांच अथवा पूछ ताछ जो चर्च के मत के विरुद्ध मत रखने वालों  को दंड देने के लिए की जाती थी.

भारत में आरम्भ 
 
भारत में और हिन्दुओं के लिए तो इसका विशेष महत्त्व था क्योंकि ये तो सदियों पुरानी सभ्यता है और तर्क वितर्क पर आधारित है. यूं तो इन्कुइसिशन तेरहवीं सदी में ही आरम्भ हो गयी थी लेकिन भारत में ये प्रेम भरी पूछ ताछ सोलहवीं सदी में पहुँच पायी थी. इस का श्री जाता है फ्रांसिस ज़ेविअर नामक व्यक्ति को.
सोलहवीं सदी तक इसे इग्नाशिअस लोयोला नामक एक स्पेनवासी ने सोसाइटी ऑफ जीसस  नामक विशाल संगठित गिरोह का स्थापन किया था जिस के सदस्यों को जेसुइट कहा जाता है. लोयोला का मुख्य सेवक और शिष्य फ्रासिस ज़ेविअर जब एक मिशनरी के रूप में भारत पहुंचा तो उसे ये देख कर दुःख हुआ कि वो हिन्दू जिन्हें बलपूर्वक अथवा प्रलोभन दे कर इसाई बनाया जाता था, वो फिर से मूर्ती पूजा में लग जाते थे. इस अपराध को रोकने के लिए इस दया की प्रतिमूर्ति ने १५४५ में पुर्तगाल के जोहन त्रित्तिय को पत्र लिख कर गोवा में इन्कुइसिशन स्थापित करने को कहा.
जी हाँ, आप ने सही पहचाना. ये भारत भर में सेंट ज़ेविअर के नाम से विख्यात है. आज हमारे राष्ट्र में इस डकैत के नाम से सैंकड़ों की संख्या में संस्थान खुले हुए हैं और इसके नाम के आगे सेंट लगा होता है. यहाँ से पढ़ कर निकलने वाले ये ज्ञान ले कर निकलते हैं कि वो एक संत था और हिन्दू धर्म के संत, अर्थात ब्राह्मण धूर्त थे और अत्याचार करते थे. प्रमाण के रूप में वो आज कल के पंडितों को देख लेता है.

प्रसिद्द फ्रांसीसी दार्शनिक वोल्टायार ने कहा है:
हमने दिखा दिया है कि हम धूर्तता और वीरता में हिन्दुओं से कहीं आगे हैं और ज्ञान में कहीं पीछे हैं.
इसी धूर्तता का परिणाम है आज भारत में स्थापित शिक्षा प्रणाली जिस से निकले हुए हिन्दू भी ब्राह्मणों को धूर्त और मिशनरियों को दयावान मानते हैं. आज इसी मानसिकता वाले गधे शासन और प्रशासन में भरे हुए हैं, जो एक तोते की भांति रटा रटाया तो बोल सकते हैं लेकिन सत्य नहीं ढूंढ सकते.

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

मूर्ती तोड़ना: एक पवित्र कार्य

आज हमारे पाठ्यक्रम की पुस्तकें और तथाकथित बुद्धिजीवी इस्लामी विचारधारा को उदारवादी बताने के लिए तर्क देते हैं कि जब मुसलामानों ने मंदिर और मूर्तियाँ तोड़ी थी तो वो केवल धन लूटना चाहते थे, इस्लाम तो एक शांतिपूर्ण सम्प्रदाय है. इनके पूर्वज इतिहासकार ऐसे दोगले नहीं थे. वो मूर्तियों और मंदिरों को तोड़ना इस्लाम की शान समझते थे क्योंकि उन्हें कुरान और मोहम्मद के आदेश भली भांति पता थे. अपने इन घिनौने कृत्यों को वो अपनी एक उपलब्धि और इस्लाम की सेवा के रूप में करते थे और गर्व अनुभव करते थे.
जिस समय महमूद गज़नी सोमनाथ के मंदिर की मूर्ती को तोड़ने लगा तो वहाँ के ब्राह्मणों ने उस से आग्रह किया कि इस मूर्ती के प्रति लाखों हिन्दुओं की श्रद्धा है इसलिए इसे न तोड़े, इसके लिए ब्राह्मणों ने उसे अपार धन देने का प्रस्ताव रखा. किन्तु महमूद ने उनके प्रस्ताव को ये कह कर ठुकरा दिया कि वो इतिहास में बुत शिकन (मूर्ती तोड़ने वाला) के नाम से प्रसिद्द होना चाहता है, बुत फरोश (मूर्ती व्यापारी) के नाम से नहीं. उसने पवित्र लिंगम के टुकड़े टुकड़े कर दिए और उन में से दो टुकड़ों को गज़नी की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर फेंकने के लिए और दो को मक्का और मदीना की मुख्य गलियों में फेंकने के लिए भेज दिया ताकि जब मुसलमान वहाँ से जाएँ तो उन टुकड़ों को अपने पैरों से रौंदते हुए जाएँ.
तारीख - ऐ - फ़रिश्ता - १, पृष्ठ ३३ 
उस समय का इतिहासकार अल बेरुनी लिखता है:-
महमूद ने सन १०२६ में मूर्ती को नष्ट किया. उसने मूर्ती के ऊपरी भाग को तोड़ने का आदेश दिया और बचे हुए को, जिस में सोना, आभूषण और सुन्दर वस्त्र चढ़े हुए थे. इस का कुछ भाग, चक्रद्वामी की मूर्ती जोकि कांसे से बनी थी और थानेसर (स्थानेश्वर) से लायी गयी थी, नगर के घोड़ों के मैदान में फेंक दी गयी. सोमनाथ से लायी मूर्ती का एक टुकड़ा गज़नी की मस्जिद दे द्वार पर पड़ा है, जिस पर अपने पांवों की मिटटी और पानी साफ़ करते हैं.
अल बेरुनी - २, पृष्ठ १०३, खंड - १, पृष्ठ ११७ 

चलिए देखें कि औरंगज़ेब मूर्तियों के साथ क्या करता था. उस के जीवन से सम्बंधित मासिर - इ - आलमगिरी के अनुसार:-
जनवरी १६७० में, सम्प्रदाय के शंशाह ने मथुरा के मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया. भारी श्रम का के, उस के अधिकारियों ने कुछ ही समय में कुफ्र के उस घर का नाश कर दिया. उसके स्थान पर एक विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया. छोटी और बड़ी मूर्तियाँ, जिन में मूल्यवान आभूषण जड़े थे और जो इस मंदिर में स्थापित थीं, आगरा ले आयी गयीं और बेगम साहिब की मस्जिद (जहानारा मस्जिद) की सीढ़ियों के नीचे दबा डि गयीं ताकि इमानवालों के पैरों तले रौंदी जाती रहें. मथुरा का नाम इस्लामाबाद रख दिया गया.
उल्लेखनीय है कि इस मंदिर का नवीनीकरण राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस काल में ३३ लाख रुपये से करवाया था.
सिकंदर लोदी के समकालीन और उस के बाद के इतिहासकार बताते हैं कि सिकंदर लोदी ने हिन्दू मंदिरों की मूर्तियाँ तोड़ कर उनके टुकड़े मुसलमान कसाइयों को मांस तोलने के लिए दिए थे. जब वो एक राजकुमार था, तब उसने थानेसर (कुरुक्षेत्र) में हिन्दुओं के स्नान पर्व पर निषेध की इच्छा जताई थी और सूर्य ग्रहण पर एकत्रित हिन्दुओं का वध करने की आज्ञा दी थी लेकिन उसे स्थगित कर दिया था. मथुरा और अन्य कई स्थानों पर हिन्दू मंदिरों को मस्जिदों और मुसलमान सरायों में परिवर्तित कर दिया था. कुछ मंदिरों को मदरसे और बाज़ार बना दिया था.
तारीख - ऐ - दौड़ी पृष्ठ ३९, ९६-९९. मख्जान - ऐ - अफगाना  पृष्ठ ६५-६६, १६६. तबकात - इ - अकबरी पृष्ठ ३२३, ३३१, ३३५-३६. तारीख - ऐ - फ़रिश्ता - १, पृष्ठ १८२, १८५-८६. तारीख-इ-सलातीन-इ-अफगाना पृष्ठ ४७, ६२-६३
इतिहासकार  शम्स सिराज अफिफ, जिसने सुलतान के साथ होने के कारण ऐसी घटनाएं देखि थीं, मोहम्मद तुगलक और फ़िरोज़ तुगलक के लिए लिखता है: 
इन्हें इमानदार मुसलामानों में से अल्लाह ने खासतौर से चुना है, इन्होने अपनी सल्तनत में जहां भी मंदिर और मूर्तियाँ देखीं, उन्हें तोड़ दिया.
Elliot and Dowson, Vol. 3, pp - 318
फ़िरोज़ तुगलक को इस घृणित कार्य के लिए किसी और की प्रशंसा की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वो अपने इस पवित्र कार्य का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार कर रहा है:
जहां भी काफिर और मूर्ती पूजक (मुशरिक) मूर्ती पूजा करते थे, वहाँ अल्लाह के रहम से अब मुसलमान सच्चे अल्लाह की नमाज़ करते हैं. मैंने काफिरों की मूर्तियों और मंदिरों को नष्ट कर के उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी हैं.
तारीख ऐ फ़िरोज़ शाही (ELLIOT & DOWSON VOL.3, PP 380)
मुसलामानों द्वारा गर्व से लिखे गए उनके शब्द यहाँ बताने का उद्देश्य भारतवासियों को ये दिखाना है कि किस प्रकार एक आसुरी प्रवृति ने हमारे पूर्वजों पर अन्याय किया था. मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने का उद्देश्य था हिन्दुओं को नीचा दिखाना और उनका मनोबल तोड़ना. हिन्दू सभ्यता पर ये अत्याचार इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया है. 
ये सब आसुरी शासक वही सब कर रहे थे जो बारहवीं सदी के अंत में दिल्ली पर विजय प्राप्त करने वाले सुल्तान क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था. उसने सबसे पहला जो आदेश दिया वो था भव्य निर्माण का ताकि नए जीते गए लोगों पर धाक बैठाई जा सके. भवन निर्माण को मुसलमान राजनैतिक शक्ति और विजय का प्रतीक मानते थे. जो पहले दो निर्माण उन्होंने किये वो थे क़ुतुब मीनार और मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम. इस मस्जिद का निर्माण ११९५ में आरम्भ हुआ और इसे बनाने में २७ हिन्दू और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया.
यहाँ  दो तथ्य ध्यान देने योग्य हैं, पहला तो जो इस मस्जिद का नाम है कुव्वत उल इस्लाम उस का अर्थ है इस्लाम की शक्ति. दूसरा कि इसके लिए २७ हिन्दू और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया है, ये आज भी वहाँ फ़ारसी में शान से लिखा हुआ है.
क़ुतुब मीनार का निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा किया और इसमें भी वैसी ही सामग्री का प्रयोग है. नक्काशी किये हुए पत्थरों को बिगाड़ कर अथवा उन्हें उल्टा लगा कर इस का निर्माण किया गया है. 

इन के निर्माण के लगभग १२५ वर्ष पश्चात जब इब्न बतूता नामक यात्री भारत आया तो वो मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम के संबंध में लिखता है:
पूर्वी द्वार के पास दो विशाल मूर्तियाँ पड़ी हैं जो ताम्बे से निर्मित हैं और पत्थरों के द्वारा परस्पर जुड़ी हैं. हर कोई आने जाने वाला इन पर पाँव रख कर जाता है. इस मस्जिद के स्थान पर एक बुतखाना (मंदिर), अर्थात मूर्ती घर था. दिल्ली की फतह के बाद इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया.
 Ibn Battutah, p. 27; Rizvi Tughlaq Kalin Bharat, vol. I, p. १७५
ये जो गिनी चुनी घटनाएं यहाँ प्रस्तुत की हैं, ऐसी ही दुःख और बबसी से भरी घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है. इन घटनायों में कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि ये दरिंदगी से भरे कृत्य धन के लोभ में किये गए थे. लेकिन यदि आप सकारी पदों और विश्व विद्यालयों पर आसीन इतिहासकारों से इस विषय में पूछेंगे तो उन्हें ये घटनाएं या तो दिखाई नहीं देती अथवा वो हिन्दुओं द्वारा किये गए घृणित कार्यों की दुहाई देने लगते हैं. लेकिन उन से इस के प्रमाण मांगो तो वो उनके पास नहीं होते.

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

जीसस क्राइस्ट की सौगंध - ३

जब शपथ पत्र पर रक्त से नाम लिख दिया जाता है तब इस समारोह का अंतिम चरण आरम्भ होता है.
सुपीरिअर बोलता है:
अब तुम खड़े हो जाओ और मैं तुम्हें प्रश्न उत्तर के रूप में सम्प्रदाय के उन सिद्धांतों के विषय में निर्देश दूंगा जिन्हें ' सोसाइटी ऑफ जीसस' के हर उस सदस्य को जान लेना आवश्यक है जो कि इस स्तर पर पहुँचता है, जानने आवश्यक हैं. सर्वप्रथम, एक जेसुइट भाई की भांति एक और भाई के साथ परस्पर 'क्रॉस' का चिन्ह बनाओगे, जैसा कि कोई भी रोमन कैथोलिक बनाता है; फिर एक अपनी हथेलियों को खुला रख के अपनी कलाइयों को क्रॉस करेगा और उत्तर में दूसरा उसके पैरों को एक के ऊपर एक क्रॉस करेगा; पहला अपने दायें हाथ की पहली अंगुली से बाएं हाथ की हथेली के मध्य में इशारा करेगा; और दूसरा अपने बाएं हाथ की पहली अंगुली से अपने दायीं हथेली के मध्य की ओर इशारा करेगा; इसके बाद पहला अपने दायें हाथ से अपने सर को छूते हुए उसके चारों ओर एक चक्र बनाएगा; फिर दूसरा अपने बाएं हाथ की पहली अंगुली से उसके ह्रदय के नीचे छुएगा; पहला अपने दायें हाथ से दूसरे के गले पर ये बनाएगा, और दूसरा, कटार के साथ पहले के पेट और उदर पर इसे बनाएगा. फिर पहला बोलेगा इउस्टम; दूसरा उत्तर देगा नेकर; पहला बोले गा रेगेस; दूसरा उत्तर देगा इम्पाइयस. फिर पहला एक विशेष प्रकार से मोड़ा हुआ पत्र भेंट करेगा और दूसरा उसे चार बार लम्बाई में काटेगा और इसे खोलने पर उसमें एक क्रॉस के सर और भुजाओं पर तीन बार जेसू लिखा हुआ होगा. फिर तुम्हें आगे आने वाले प्रश्न और उत्तर प्राप्त होंगे:
इस प्रकार की प्रश्न - उत्तर की श्रृंखला जो इसाई सम्प्रदाय में प्रयोग की जाती है कोई सूचना देती है, अंग्रेजी में 'catechism' कहलाती है.

प्रश्न - तुम कहाँ से आये हो?
उत्तर - पवित्र सम्प्रदाय से.
प्रश्न - तुम किस के सेवक हो?
उत्तर - रोम के पवित्र सम्प्रदाय का, पोप का, विश्व भर में फैली रोमन कैथोलिक चर्च का.
प्रश्न - तुम्हें निर्देश कौन देता है?
उत्तर - सेंट इग्नाशिअस लोयोला, जिसने सोसाइटी ऑफ जीसस अथवा सोल्जर्स ऑफ जीसस क्राइस्ट की स्थापना की, का उत्तराधिकारी.
प्रश्न - तुम्हारा स्वागत किस ने किया?
उत्तर - एक सफ़ेद केशों वाले सम्माननीय पुरुष ने.
प्रश्न - किस प्रकार?
उत्तर - एक नंगी कटार से, जब मैं घुटनों के बल क्रॉस के समक्ष, पोप और हमारे मत के ध्वज के प्रति झुका हुआ था.
प्रश्न - क्या तुम ने कोई शपथ ली थी?
उत्तर - हाँ ली थी, कि मैं नास्तिकों, उनके शासन और शासकों का नाश करूंगा, किसी आयु, लिंग और स्थिति पर दया न करते हुए. मैं एक लाश की भांति न तो कोई अपना विचार रखूंगा और न इच्छा और सुपीरिअरों के निर्देशों का बिना झिझक के पालन करूंगा.
प्रश्न - क्या तुम ऐसा करोगा?
उत्तर - हाँ, करूंगा.
प्रश्न - तुम कैसे यात्रा करते हो?
उत्तर - पीटर मछुआरे की नाव में.
प्रश्न - तुम कहाँ यात्रा करोगे?
उत्तर - विश्व में चारों ओर.
प्रश्न - तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य?
उत्तर - अपने सुपीरिअरों और अधिकारियों के निर्देशों के पालन के लिए, पोप की इच्छा पूर्ती के लिए और अपनी शपथ को पूर्ण करने के लिए.
अब तुम जाओ और विश्व भर की समस्त भूमि पर पोप का नाम ले कर अधिकार कर लो. जो पोप को जीसस के पादरी और प्रतिनिधि के रूप में नहीं मानता, उसे शापित समझो और उस को नष्ट कर दो.
इस प्रकार समारोह का समापन होता है और उजले चोगे में और चेहरे पर मुस्कान लिए डकैत निकलते हैं विश्व विजय के अभियान पर. 
अब विचार कर के देखिये कि जब कोलंबस भारत की खोज के लिए निकला था तो किस उद्देश्य से निकला था?उसके पीछे पहुंचे इसाईओं ने वहाँ की मूल सभ्यताओं इनका और माया का नाश कर दिया. आज मूल निवासियों को पिछड़ा हुआ कहा जाता है और वहाँ पर पूर्ण रूप से इसाई राज्य है.
प्राचीन उनानी सभ्यता किस ने नष्ट कर दी?
जब पुर्तगाली वास्को डि गामा  वर्तमान कोज़ीखोड़ (उस समय का कालीकट) के बंदरगाह पर पहुंचा था तो उसने क्या किया था?
वो था सन १४९८, वास्को डि गामा २५ समुद्री पोत अपने बेड़े में ले कर कालीकट के बंदरगाह पर पहुंचा था. इन में से १० पोत केवल गोला बारूद से भरे हुए थे. इस समृद्ध नगर के किनारे जो २० पोत खड़े थे, उन्हें इन डकैतों ने लूट लिया था और इनके लगभग ८०० कर्मियों को बंधक बना कर उनके हाथ, कान और नाक काट दिए थे. इसका उद्देश्य था स्थानीय निवासियों में भय स्थापित करना और वहाँ पोप का साम्राज्य खड़ा करना.
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि वास्को डि गामा सोसायटी ऑफ जीसस की स्थापना से लगभग ५० वर्ष पूर्व आया था. उस समय इसाई मिशनरी डकैतों के रूप में आते थे लेकिन लोयोला ने रणनीति में परिवर्तन कर के उसे शिक्षा और चिकित्सा का उदार चेहरा पहना दिया. दोनों के उद्देश्य में यदि भेद है तो केवल इतना कि अब सभ्यताओं को नष्ट करने का कार्य व्यवस्थित ढंग से हो रहा है. 
लोयोला का सहायक फ्रांसिस ज़ेविअर जब भारत आया तो उसने देखा कि भारत में जिन्हें इसाई बनाया जाता था, वो शीघ्र ही फिर से हिन्दू बन जाते थे. उसने १५४५ में पोप जॉन त्रित्तिय को गोवा में इन्कुइसिशन (inquisition) स्थापित करने का आग्रह किया था.
आज गोवा में जो चर्च दिखाई देते हैं उन में से अधिकतर हिन्दू मंदिरों के खंडहरों के ऊपर बनाए गए हैं और गोवा इन्कुइसिशन के चलते हिन्दुओं पर बर्बरता पूर्वक अत्याचार किये गए थे.
आज जब कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ कर भारतीय बड़े होते हैं तो वो अपनी कहीं विकसित सभ्यता को ही घृणा की दृष्टि से देखने लग जाते हैं. धीरे धीरे डकैतों की विचारधारा प्राचीनतम सभ्यता को नष्ट करती जा रही है.

जीसस क्राइस्ट की सौगंध - १

सोसाइटी ऑफ जीसस
 
१५ अगस्त का स्थान भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है. किन्तु इस लेख में जिस १५ अगस्त का उल्लेख कर रहा हूँ वो है सन १५३४ की. इस दिन पैरिस नगर के बाहर मौन्त्मर्तरे में सात व्यक्तियों की एक बैठक हुई थी जो आज हिन्दू सभ्यता को प्रभावित कर रही है. इन सातों का मुखिया था स्पेन में जन्मा इग्नाशिअस लोयोला और अन्य छः पैरिस विश्व विद्यालय के छात्र थे. ये थे फ्रांसिस्को ज़ेविअर, अलफोंसो सल्मेरोन, डिएगो लैनेज़, निकोलस बोबडिल्ला, पीटर फेबर और सीमाओं रोद्रिगुएज़. 
इस बैठक में इन्होने चर्च की कार्यवाही के लिए एक रूपरेखा तैयार की और १५३७ में उस समय के पोप पॉल त्रित्तिय  से मिलने इटली गए. पोप ने इस की सराहना की और इन सब को पादरी नियुक्त कर दिया. इन्होने जब परियोजना पारित करने के लिए प्रस्तुत की तो कुछ माह तक विवाद चलने के उपरान्त मंडल ने प्रस्तुत संविधान के प्रति अनुकूल मत दिया. पोप ने इस आशय का आदेश २७ सितम्बर, १५४० को दे दिया. इसके अनुसार, सदस्यों की संख्या ६० तक सीमित कर दी गयी. ये सीमा तीन वर्ष बाद हटा दी गयी और इग्नाशिअस लोयोला को इस का प्रथम सुपीरिअर नियुक्त किया गया. उस ने अपने साथियों को मिशनरियों के रूप में यूरोप के विभिन्न प्रदेशों में विद्या संस्थान स्थापित करने के लिए भेजा.
१५५४ में इग्नाशिअस का लिखा हुआ जो संविधान सोसायटी के लिए अपनाया गया, वो केन्द्रीकृत था और उसके अनुसार पोप और सुपीरिअरों की आज्ञा मानने के कठोर प्रावधान थे. इसका अनुशासन सेना की एक टुकड़ी की भांति था, इसलिए इस सोसायटी को आर्मी ऑफ लोयोला अर्थात लोयोला की सेना भी कहा जाता है.


इसके सदस्यों को जेसुइट कहा जाता है. यदि आप चूक गए हैं तो एक बार ध्यान से लोयोला के साथियों के नाम देखिये, जिन में से एक था सेंट फ्रांसिस जेविअर, जिस के नाम से भारत में कई विद्यालय, महाविद्यालय और हस्पताल चलते हैं. जैसा कि आगे हम देखेंगे कि ये सभी संस्थान पोप और चर्च के आदेशानुसार ही कार्य करते हैं. 
इन इसाई पादरियों को एक शपथ दिलाई जाती है जो मेरे इस लेख का विषय है. चलिए इस शपथ ग्रहण समारोह का अवलोकन करते हैं.

शपथ समारोह का दृश्य 

जब भी किसी छोटे स्तर के जेसुइट को इस योग्य समझा जाता है कि वो अधिक दायित्व संभाल सकता है तो उसे अपने मत के गिरजाघर में शपथ दिलाई जाती है, जिस में उसके अतिरिक्त तीन और व्यक्ति अपस्थित होते हैं. सुपीरिअर पूजा की वेदी के सामने खड़ा होता है. दोनों ओर दो पादरी खड़े होते हैं, जिन में से एक के हाथ में पीला और सफ़ेद रंग का, जो कि पोप के रंग हैं, ध्वज होता है और दूसरा काले रंग का ध्वज पकडे रहता है जिस में दो हड्डियों और खोपड़ी के ऊपर एक कटार और लाल रंग का क्रॉस बना होता है, इसके नीचे लिखा होता है INRI, जिस के नीचे एक वाक्य लिखा होता है IUSTUM NECAR REGES IMPIUS.

भूमि पर एक लाल रंग का क्रॉस बना होता है, जिस पर प्रार्थक (postulant) अथवा प्रत्याशी (candidate) घुटनों के बल बैठता है. सुपीरिअर उसे एक काले रंग का छोटा क्रॉस थमाता है, जिसे वो अपने बाएं हाथ में लेकर अपने ह्रदय से छुआता है, इसके साथ ही सुपीरिअर (superior) उसे एक कटार देता है जिसे वो नोक से पकड़ कर अपने ह्रदय पर लगाता है जब कि कटार का हत्था सुपीरिअर के हाथ में ही रहता है. इस मुद्रा में सुपीरिअर बोलना आरम्भ करता है.
postulant - a candidate, esp. for admission into a religious order अर्थात किसी सम्प्रदाय में प्रवेश पाने का इच्छुक व्यक्ति.


सुपीरिअर का उदबोधन 

सुपीरिअर (मुख्य पादरी) कहता है:
मेरे पुत्र, अब तक तुम्हें सिखाया गया कि किस प्रकार पाखण्ड (dissembler) करना है: रोमन कैथोलिकों में रोमन कैथोलिक की भांति, अपने सगे सम्बन्धियों में एक गुप्तचर (spy) की भांति; किसी पर भरोसा नहीं करना; किसी पर विशवास नहीं करना. सुधारकों में सुधारक की भांति, हुगुएनोटों  में  एक हुगुएनोट (huguenot) की भांति; कल्विनिसटों (काल्विनिस्ट) में कल्विनिस्ट की भांति; प्रोटेस्टेंटों (protestant) में प्रोटेस्टेंट की भांति; व्यवहार कर के उनका विश्वास अर्जित करना; यहाँ तक कि उनके पवित्र स्थानों से उनके उपदेश देना, अपने पवित्र सम्प्रदाय की और पोप की कठोरतम शब्दों में निंदा करना; यहूदियों के स्तर तक गिर कर यहूदियों जैसा व्यवहार करना ताकि तुम इस योग्य बन जाओ कि वो सारी जानकारी एकत्रित कर सको जो कि तुम्हारे सम्प्रदाय के लिए लाभदायक हो जिसके लिए तुम पोप के निष्ठावान सैनिक बने हो. 
पाखण्ड - शपथ में जो मूल शब्द है, वो हैं act as dissembler, अर्थात dissemble करना. इस शब्द का शब्द कोष के अनुसार अर्थ है “(used with object) to give a false or misleading appearance to; conceal the truth or real nature of or (used without object) to conceal one‟s true motives, thoughts, etc., by some pretence; speak or act hypocritically” अर्थात एक भ्रामक दृश्य प्रस्तुत करना, सत्य को छिपाना अथवा छल कपट से अपने सच्चे उद्देश्य को छिपाना.
गुप्तचर - शपथ में जो मूल शब्द है, वो है spy. इसके अनुवाद हैं - जासूस, गुप्तचर, भेदिया, मुख़बिर
huguenot, calvinist, protestant - इसाई सम्प्रदाय के अन्य मत.
तुम्हें सिखाया गया है कि किस प्रकार गुप्त रूप से उन सम्प्रदायों, प्रान्तों और राष्ट्रों में घृणा और इर्ष्या के बीज डालने हैं जो शान्ति से रह रहे हैं. किस प्रकार उन्हें उकसाना है कि वो एक दूसरे का रक्त बहायें, उन्हें एक दूसरे से युद्ध करवाना है. जो राष्ट्र स्वतंत्र और वैभवशाली हैं, विज्ञान और कला का विकास कर रहे हैं और शान्ति का आनंद ले रहे हैं उनमें कलह और गृहयुद्ध करवाना है; लड़ने वालों का साथ देना है और गुप्त रूप से अपने उन इसाई भाईओं का साथ देना है जो दूसरी ओर से लड़ रहे हों, और खुले रूप से उनके विरोध में हों जिनका साथ तुम दे रहे हो, ताकि अंततः चर्च को लाभ हो, उन नियमों से जो शान्ति की संधि के लिए अपनाए जाएँ . परिणाम के लिए क्या रास्ता चुना जाए, ये महत्त्व नहीं रखता.
तुम्हें एक गुप्तचर के रूप में तुम्हारा कार्य समझा दिया गया है; सारी जानकारी और आंकड़े एकत्रित करना जो सामर्थ्य के अनुसार तुम सभी स्त्रोतों से कर पाओ; अपने आप को सभी प्रकार के नास्तिकों और उनके प्रियजनों का विश्वासपात्र बनाना; पोप के लिए, जिसके हम जीवन भर के दास हैं, हर श्रेणी में घुसपैठ करना जैसे विद्यालय, विश्वविद्यालय, बैंक कर्मी, अधिवक्ता, व्यवसायी, संसद और विधान सभाओं में, न्याय व्यवस्था में. प्रत्येक व्यक्ति से उस जैसा बन कर व्यवहार करना. अब तक तुम्हें जो निर्देश दिए गए थे वो एक नौसिखिये की भांति अथवा एक नए पादरी के लिए थे और तुम ने एक पादरी की भांति कार्य किया है, लेकिन तुम्हें वो नहीं बताया गया था जो कि पोप की सेवा करने वाली लोयोला की सेना की कमान संभालने के लिए आवश्यक है. तुम्हें अपने सुपीरिअरों के निर्देशानुसार एक यंत्र और जल्लाद की भांति निश्चित समय लगाना पड़ेगा; क्योंकि ये कमान कोई तब तक नहीं संभाल सकता जब तक कि उसने अपने श्रम को नास्तिकों के रक्त से पवित्र न किया हो; क्योंकि बिना रक्त बहाए कोई व्यक्ति बचाया नहीं जा सकता. इसलिए, अपने आप को इस कार्य के योग्य बनाने के लिए और अपने उद्धार के लिए, तुमने जो पोप की आज्ञाकारिता और निष्ठा की शपथ ली है, उसके अतिरिक्त, मेरे पीछे दोहरायोगे:
इसके पश्चात इस समारोह की शपथ उस प्रत्याशी को दिलाई जाती है.

जो सिखाया वही सीखा, जितना सिखाया उतना ही सीखा

शपथ पर अपना ध्यान केन्द्रित करने से पहले एक बार कुछ अवलोकन कर लें और एक  महत्वपूर्ण तथ्य जान लें ताकि शपथ समझ में आ जाए. आज भारत के सभी नागरिक सन १८३५ में स्थापित शिक्षा प्रणाली के उत्पाद हैं. इस प्रणाली का संस्थापक कौन था? मैकॉले नामक एक अँगरेज़. लेकिन वो केवल एक अँगरेज़ नहीं था, एक इसाई भी था. आज हिन्दू समाज की स्थिति क्या है? जो जातिवाद इस समाज के स्थायित्व का मुख्य स्तम्भ था उसे उस का सब से बड़ा दोष बना कर इसी शिक्षा प्रणाली के माध्यम से ध्वस्त किया जा रहा है. राष्ट्र का विभाजन कर के पाकिस्तान बना दिया गया है. इसाई राष्ट्र एक को शस्त्र बेच देते हैं और दूसरे को विवश हो कर लेने पड़ते हैं. इरान और इराक के युद्ध के पीछे किस का हाथ था? अमरीका का अर्थात इसाईओं का. जो अपने आप को बुद्धिजीवी की उपाधि से सम्मानित कर चुके हैं, उन्हें इसी शिक्षा प्रणाली ने एक पाठ पढ़ाया है - एक लीक पर सोचना, जिसे अंग्रेजी में लीनिअर थिंकिंग (linear thinking) कहते हैं. इस का परिणाम है कि हम कभी भी ये नहीं सोचते कि सब छोटे छोटे टुकड़े मिल कर ही पूरा परिदृश्य निर्मित करते हैं. इसाई मिशनरियों का पूरा ढांचा भी सिगरेट निर्माता कंपनियों की भांति कार्य करता है. जो इन का मार्किटिंग डिपार्टमेंट है वो एक ऐसी छवि प्रस्तुत करता है जो कि वास्तविकता की गंदगी को छिपाए रखती है.

I.N.R.I.

क्या आप जानते हैं कि जो इसाई क्रॉस पर शब्द लिखे होते हैं I.N.R.I. उनका क्या अर्थ है?

इनका अर्थ है - इउस्टम नेकर रेगेस इम्पाइयस (IUSTUM NECAR REGES IMPIUS). इस का अंग्रेजी अनुवाद है - It is just to exterminate or annihilate impious or heretical Kings, Governments, or Rulers
ये आज कल न प्रयोग की जाने वाली लैटिन भाषा के शब्द हैं और इन का अर्थ है:
नास्तिक राजाओं, शासकों को समाप्त अथवा नष्ट करना न्याय संगत है. 
यहाँ जिस इम्पियस शब्द का उपयोग किया गया है, उसका अर्थ समझ कर ही इस वाक्य की नीचता स्पष्ट होती है. इस का अर्थ है जो सम्मान नहीं करता. किस का सम्मान? चर्च का.
लेकिन मार्कीटिंग डिपार्टमेंट ने इस वहशी सत्य को छिपाने का एक सुगम हल खोज कर लोगों को मूर्ख बनाने का कार्य शुरू कर दिया है.  उन्होंने एक नया वाक्य जो खोजा है, वो है IESUS NAZARENUS REX IUDAEORUM जिस का अंग्रेजी अनुवाद है  “Jesus of Nazareth, King of the Jews" अर्थात -
नाज़रेथ का जीसस, यहूदियों का राजा
भला हो अमरीकी कांग्रेस का जिस के दस्तावेजों से हम सच्चाई जान पाए हैं.
शपथ पर दृष्टिपात करना है तो पढ़ें जीसस क्राइस्ट की सौगंध - २ 

जीसस क्राइस्ट की सौगंध - २

आज हमारे राष्ट्र में सैंकड़ों ऐसे संस्थान हैं जिनके नाम सेंट शब्द से शुरू होते हैं जैसे सेंट जॉन, सेंट जेवियर आदि. इन नामों से ऐसा आभास होता है कि मानो ये किसी पवित्र संत के नाम से रखे गए हों. क्योंकि इसाई सम्प्रदाय की मानसिकता हिन्दू धर्म से पूर्ण रूप से भिन्न है इसलिए इसाई संत भी हिन्दू संतों से पूर्ण रूप से भिन्न होते हैं. यदि इन तथाकथित संतों की मानसिकता समझनी हो तो ये शपथ समारोह अत्यंत आवश्यक है. इस समारोह का दृश्य और आरम्भ जानने के लिए जीसस क्राइस्ट की सौगंध - १ पढ़ें. यहाँ उस शपथ का अनुवाद दिया जा रहा है जो केवल उन्ही पादरियों को दिलाई जाती है जोकि विश्वासपात्र माने जाते हैं.
ये शपथ पत्र अमरीकी कांग्रेस के दस्तावेजों में और उनके आधिकारिक पुस्तकालय में अंकित है. अमरीकी कांग्रेस भारतीय कांग्रेस की भांति एक अकेले राजवंश का चाटुकार संस्थान न हो कर दोनों मुख्य राजनैतिक दलों का संस्थान है जिसमें जनता के प्रतिनिधि सीधे चुन कर आते हैं.
(Jesuit Extreme Oath of Induction as recorded in the Journals of the 62nd Congress 3rd Session of the US Congressional Record) (House Calendar # 397 Report # 1523 of February 15 1913 on page # 3215 to 3216)
अमरीकी कांग्रेस का उल्लेख करने का तात्पर्य है कि ये शपथ पत्र किसी की कल्पना नहीं है अपितु एक सच्चा पत्र है.
ये शपथ प्रार्थक, सुपीरिअर के पीछे पीछे दोहराता है. कुछ विशेष शब्दों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें गहरा कर के दिखाया है.

मैं _______________, इश्वर, सुखी कुंवारी मरियम, सुखी सेंट जौहन, पवित्र पैगम्बरों, सेंट पीटर और सेंट पॉल, और सभी संतों, स्वर्ग के निवासी, मेरे होली फादर, सोसाइटी ऑफ जीसस के प्रमुख जिसे सेंट इग्नाशिअस लोयोला ने पॉल तृतीय के अधीन स्थापित किया और जो अभी भी निरंतर विद्यमान है, कुंवारी के गर्भ, इश्वर के सांचे और जीसस क्राइस्ट को उपस्थित जान कर ये शपथ लेता हूँ कि 
पोप क्राइस्ट का प्रतिनिधि है और कैथोलिक अथवा विश्व चर्च का एकमात्र प्रधान है और मेरे रक्षक जीसस क्राइस्ट द्वारा दिए गए अधिकार से उसे किसी भी नास्तिक राजा, राजकुमार, राष्ट्र अथवा शासन को हटाने अथवा उसे नष्ट करने का अधिकार है. इसलिए मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार, उन सब से जो इस सिद्धांत को और पोप के अधिकार को हड़पते हैं, विशेषतः जर्मनी, हौलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और नोर्वे के लुथरियन चर्च, इंग्लैण्ड, स्कौटलैंड और आयरलैंड के ढोंगी चर्च अधिकारी और उन की विभिन्न शाखाएँ जो अमरीका में हैं, और उन के सभी माननेवालों से, और जो नास्तिक रोम की चर्च का विरोध करते हैं, रक्षा करूँगा ताकि उन्हें हड़प लिया जाए. मैं किसी भी नास्तिक राजा, राजकुमार अथवा शासन, वो प्रोटेस्टेंट हों अथवा लिबरल, से अपने को मुक्त घोषित करता हूँ और उनके सभी नियमों, अधिकारियों अथवा न्यायाधीशों को नकारता हूँ.
मैं अन्य सभी चर्चों के मतों को घिनौना घोषित करता हूँ, वे इंग्लैण्ड, स्कौटलैंड, कल्विनिस्ट, हुगुएनोट्स अथवा प्रोटेस्टेंट या मेसन हों, और उन्हें भी घिनौना मानता हूँ जो उन्हें नहीं त्याग देते. मैं ये भी घोषणा करता हूँ कि मैं कहीं भी रहूँ, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, हौलैंड, आयरलैंड, अमरीका अथवा अन्य किसी भी राज्य या क्षेत्र में, मैं पोप और उस के लोगों को सहायता और मंत्रणा देता रहूँगा और भरसक प्रयास करूंगा कि नास्तिक प्रोटेस्टेंट अथवा मेसनी मत को उखाड़ दूं और उनकी सारी दिखावटी शक्ति, वैधानिक अथवा अन्य को नष्ट कर दूं.
मैं ये प्रतिज्ञा और घोषणा करता हूँ कि मैं चर्च मां के हित में, किसी भी नास्तिक सम्प्रदाय का रूप धर लूँगा; चर्च के सभी रहस्य और जासूसों की जानकारी को गुप्त रखूँगा. किसी भी परिस्थिति में अपनी कोई जानकारी, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, लिख कर या बोल कर किसी को नहीं दूंगा. मुझे अपने होली फादर अथवा इस पवित्र संस्थान द्वारा जो भी करने का आदेश दिया जाएगा, वो मैं पूरा करूँगा. मैं ये भी घोषणा करता हूँ कि एक लाश की भांति, मेरी कोई निजी राय नहीं होगी और न ही किसी प्रकार की कोई मानसिक अवरोध होगा. मैं बिना झिझक के जीसस क्राइस्ट और पोप की इस सेना के अधिकारियों के आदेशों का पालन करूंगा. मैं विश्व के किसी भी भाग में रहूँ, वो उत्तर के जमे हुए क्षेत्र हों, भारत के जंगल हों, यूरोप की सभ्यता हो अथवा अमरीकी वहशी दरिंदों का जंगली क्षेत्र हो, मैं बिना किसी विरोध के रहूँगा, जहां कहा जाएगा.
मैं ये भी घोषणा करता हूँ कि अवसर मिलते ही मैं नास्तिकों,प्रोटेस्टेंट और मेसनी के विरुद्ध छिप कर अथवा खुला युद्ध निर्दयता से करूँगा, जैसा कि मुझे निर्देश है कि उन्हें पूरी धरती से उखाड़ फेंकना है. मैं किसी की आयु, लिंग अथवा स्थिति का सम्मान नहीं करूंगा. मैं इन कुख्यात नास्तिकों को फांसी लटका दूंगा, जला दूंगा, गला घोंट दूंगा, खाल उतार लूँगा, उबाल दूंगा अथवा जीवित ही भूमि में गाढ़ दूंगा. मैं इन के पेट और इनकी महिलाओं की कोख चीर दूंगा, उनके अबोध बच्चों के सर दीवार से कुचल दूंगा ताकि इनकी घृणित वंशावली ही नष्ट हो जाए. और यदि ऐसा प्रत्यक्ष में नहीं कर पाया तो मैं छुप कर विष युक्त प्यालों का, गला घोंटने वाली रस्सी का, इस्पात के खंजर का या गोलियों का प्रयोग करूंगा. जब मुझे ऐसा करने का निर्देश पोप से, होली फादर से, किसी अधिकारी से अथवा किसी जासूस से मिलेगा तो मैं उस व्यक्ति के सम्मान, पद, अधिकार अथवा प्रतिष्ठा को बिना देखे, उसकी निजी अथवा सार्वजनिक स्थिति को बिना देखे निर्देश के अनुसार कार्य करूंगा. ये सब, जिसके लिए मैं अपना जीवन, आत्मा और सारी शक्ति समर्पित कर रहा हूँ, इस की पुष्टि के लिए मैं इस कटार से जो मुझे अब प्राप्त हुई है, अपना नाम अपने खून से लिखता हूँ. 
यदि मैं ये सब नहीं करूँ अथवा मेरी इच्छा शक्ति कम हो जाए तो मैं चाहूंगा कि 
पोप की सेना के मेरे साथी सैनिक और भाई,  मेरे हाथ पाँव काट दें, मेरी गर्दन एक कान से दूसरे कान तक काट दें, मेरा पेट चीर कर उस में गंधक जला दें और वो सभी दंड दें जो कि दिए जा सकते हैं और मेरी आत्मा को शैतान नरक में सदा के लिए यातना दें. मैं मतदान के समय प्रोटेस्टेंट अथवा मेसनी को छोड़ कर सदा अपने कैथोलिक  प्रत्याशी को ही मत दूंगा. यदि दो कैथोलिक होंगे तो मैं उसे मत दूंगा जो चर्च का अधिक समर्थन करेगा. यदि मेरे बस में होगा तो मैं न तो प्रोटेस्टेंट से संबंध रखूंगा और न ही उसे काम पर रखूंगा. मैं कैथोलिक लड़कियों को प्रोटेस्टेंट घरों में पहुंचाऊंगा और उनसे साप्ताहिक सूचना लेता रहूँगा ताकि नास्तिकों की अंदरूनी गतिविधियों जान सकूँ. मैं अपने लिए शास्त्रों और गोला बारूद का प्रबंध रखूँगा ताकि जब भी चर्च की रक्षा के लिए जब भी मुझे व्यक्तिगत रूप से अथवा पोप की सेना के रूप में आदेश मिले तो मैं तत्पर रहूँ. 
मैं,____________, जीसस, होली फादर और होली घोस्ट की सौगंध खाता हूँ और इस कटार की नोक से अपने खून से इस पवित्र वस्तु पर अपना अपना नाम लिख रहा हूँ और मुहर लगा रहा हूँ.
जो पत्र उसे सुपीरिअर द्वारा दिया जाता है, वो उस पर अपने ह्रदय के ऊपर से लिए गए अपने रक्त में कटार भिगो कर अपना नाम लिखता है.
सोसायटी ऑफ जीसस की मुहर 

क्योंकि हम एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की उपज हैं, जिस का स्थापन ईसाईयों ने सन १८३५ में किया था, इसलिए हमारे लिए इसाइयत के इस रूप को सहज विश्वास कर पाना संभव नहीं है. इसके पश्चात सुपीरिअर उसे क्या निर्देश देते हैं, उसके लिए देखें  जीसस क्राइस्ट की सौगंध - ३

रविवार, 26 दिसंबर 2010

जिहाद कब तक

मुसलामानों को कुरान के अनुसार जिहाद का आदेश कब तक के लिए है, इसे दर्शाती है कुरान के अध्याय (सुरा) ८ की आयत ३९. ये आयत इस प्रकार है:-

وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ كُلُّهُ لِلَّـهِ ۚ فَإِنِ انتَهَوْا فَإِنَّ اللَّـهَ بِمَا يَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
इस आयत का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:-
8:39 फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
मुसलमानों काफ़िरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई फसाद (बाक़ी) न रहे और (बिल्कुल सारी ख़ुदाई में) ख़ुदा की दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आएं तो ख़ुदा उनकी कारवाइयों को ख़ूब देखता है
 8:39 फ़ारूक़ ख़ान & अहमद
उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है
8:39 Yusuf Ali
And fight them on until there is no more tumult or oppression, and there prevail justice and faith in Allah altogether and everywhere; but if they cease, verily Allah doth see all that they do.
8:39 Ahmed Ali
So, fight them till all opposition ends, and obedience is wholly God's. If they desist then verily God sees all they do.
 8:39 Pickthall
And fight them until persecution is no more, and religion is all for Allah. But if they cease, then lo! Allah is Seer of what they do.
8:39 Daryabadi
And fight against them until there be no temptations and their obedience be wholly unto Allah. So if they desist, thens verily Allah is the Beholder of that which they do.
8:39 Shakir
And fight with them until there is no more persecution and religion should be only for Allah; but if they desist, then surely Allah sees what they do.
 8:39 Asad
And fight against them until there is no more oppression and all worship is devoted to God alone. And if they desist-behold, God sees all that they do;
8:39 Hilali & Khan
And fight them until there is no more Fitnah (disbelief and polytheism: i.e. worshipping others besides Allah) and the religion (worship) will all be for Allah Alone [in the whole of the world]. But if they cease (worshipping others besides Allah), then certainly, Allah is All-Seer of what they do.
8:39 Maududi
And fight against them until the mischief ends and the way prescribed by Allah - the whole of it -prevail Then, if they give up mischief, surely Allah sees what they do.
8:39 Qaribullah
Fight them until persecution is no more and the Religion of Allah reigns supreme. If they desist, Allah sees the things they do;
 8:39 Sahih International
And fight them until there is no fitnah and [until] the religion, all of it, is for Allah. And if they cease - then indeed, Allah is Seeing of what they do.
8:39 Sarwar
Fight them so that idolatry will not exist any more and God's religion will stand supreme. If theygive up the idols), God will be Well Aware of what they do.

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

हिन्दू और अँगरेज़: दोनों शत्रु

३ अक्टूबर, २०१०, को टाइम्स ऑफ इंडिया में समाचार प्रकाशित हुआ कि पिछले दिन, अर्थात २ अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिवस की वर्षगाँठ पर, वहाँ के अधिकारियों ने गांधीजी का एक बुत लक्षद्वीप में स्थापित करने का कार्यक्रम रखा था. इन में प्रमुख थे, प्रशासनिक अधिकारी वसंत कुमार.
स्थानीय निवासिओं ने ये बुत, जिसे केरल के एक शिल्पकार से बनवाया गया था, बंदरगाह पर उतरने नहीं दिया. परिणामतः, गांधीजी का बुत वापिस लाना पड़ा. आधिकारिक रूप से इस का कारण था मौसम की खराबी. लेकिन सूत्रों के अनुसार, स्थानीय निवासियों का विरोध इस का कारण था.
साधारणतया, इस प्रकार के समाचार की प्रतिक्रिया के रूप में कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ हंगामा अवश्य करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि गांधी का नाम उन की बपौती है. किन्तु न तो कांग्रेसियों ने हंगामा किया और न ही मीडिया में बवाल मचा.

इस प्रकरण से दो प्रश्न उठते हैं.
  1. कांग्रेस ने बवाल क्यों नहीं मचाया?
  2. इन निवासियों का गांधीजी ने क्या बिगाड़ा था कि वो इतने क्रोधित हैं?
पहले प्रश्न का उत्तर है कि लक्षद्वीप लगभग पूर्ण रूप से मुसलमान है. इस एक तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि वोट बैंक की राजनीति बापू पर भारी पड़ गयी. बेचारे बापू जीवन भर मुसलामानों को प्रसन्न करने में लगे रहे लेकिन उन्हीं मुसलामानों ने उनका अपमान किया और उन के तथाकथित अनुयाइयों की पार्टी सत्ता में होते हुए लाचार हो गयी. कदाचित इसी को भारतीय राजनीति कहते हैं.
दूसरे प्रश्न का उत्तर छिपा है इस्लाम की विचारधारा में. इस्लाम किसी भी प्रकार की मूर्ती पूजा अर्थात बुत परस्ती के विरुद्ध है और फिर बुत यदि किसी काफिर का हो तो ये तो अक्षम्य अपराध है.
विडम्बना देखिये कि जिस गांधी ने इस्लाम जैसी विचारधारा को अपने 'सर्व धर्म समभाव' जैसे नारे से सम्मान दिया, वही उन को सहन नहीं कर सकती. जब उन की प्रेरणा से हिन्दुओं ने गाना बनाया, 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना', उन्होंने इस्लाम नहीं पढ़ा होगा. इस्लाम अपने मज़हब को छोड़ कर किसी सम्प्रदाय को अच्छा नहीं समझता.

जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, उन दिनों मुसलामानों को दुविधा होती थी कि एक ओर गांधीजी हैं और दूसरी ओर जिन्ना जो पाकिस्तान की मांग कर रहा है. इस दुविधा के समाधान के लिए वो इस्लाम के ज्ञाता उलेमाओं से निर्देश लेते थे, जो इस्लाम के अनुसार फतवा देते थे. तब उलेमा दो भिन्न विचारधाराओं में बनते हुए थे. बहुमत उनका था जो गांधीजी और हिन्दुओं के नेत्रित्व को स्वीकार करना इस्लाम के विरुद्ध मानते थे क्योंकि वो एक काफिर थे.

किन्तु दूसरा मत इस नेत्रित्व के पक्ष में था. इन्हें राष्ट्रवादी उलेमा की संज्ञा दी गयी थी. आइए देखें इन ताताहकथित राष्ट्रवादी उलेमा के फतवे क्या कहते हैं. इस लेख में दिए फतवे अरुण शोरी की प्रसिद्द पुस्तक 'द वर्ल्ड ऑफ फतवास' से लिए गए हैं.

मुफ्ती किफायतुल्ला: किफायत - उल - मुफ्ती खंड १ से ९

प्रश्न - भारत में इस्लाम के ८१ मत हैं. यदि इन में से कोई मुसलमान इस्लाम के दुश्मनों से मिल जाए तो क़यामत के दिन वो मुसलमान माना जाएगा या नहीं? एक तरफ वर्धा है और दूसरी तरफ काबा है, मुसलमान किस तरफ जाए?
टिपण्णी - यहाँ वर्धा से गांधीजी की कर्मभूमि की ओर इशारा है.
फतवा - ये तो साफ़ है कि जो इस्लाम के दुश्मनों से मिल जाएगा वो मुसलमान नहीं है लेकिन अगर अपना स्वार्थ और उद्देश्य पूरा करने के लिए किसी मौके पर वो इस्लाम के दुश्मन का साथ लेता है तो वो गिना नहीं जाएगा. इसलिए अगर दो दुश्मन हैं और ताक़तवर से बचने के लिए वो कमज़ोर दुश्मन से ताक़त लेता है तो ये बुरा नहीं गिना जाएगा.
इस आन्दोलन में वर्धा और काबा का उदाहरण गलत है क्योंकि इसमें मुसलमान वर्धा के लिए नहीं अपने लिए लड़ रहे हैं. जो मुसलमान अपने हक के लिए दूसरी कौम का साथ देते हैं और दूसरे जो नहीं लेते, दोनों में से कोई काबा नहीं जा रहा. दोनों के रास्ते अलग हैं लेकिन मंजिल एक है.
न तो हिन्दू और न ही अँगरेज़ इस्लाम के दोस्त हैं. दोनों में से जो ताक़तवर है वो मुसलामानों के लिए ज्यादा नुकसानदेह है.

अगले चार प्रश्नों को एक क्रम में पढ़ें क्योंकि वो परस्पर जुड़े हैं. पूछने वाला ये जानना चाहता है कि गांधी की अपेक्षा जिन्ना को क्यों न नेता माना जाए.

प्रश्न - जिन्ना एक शिया है, तो क्या वो मुसलमान है?
फतवा - हाँ मैं जानता हूँ कि जिन्ना एक शिया है और शिया मुसलामानों का ही एक पंथ है.

प्रश्न - मुसलमान होने के नाते, जिन्ना मुसलामानों के हक के लिए सही है या गांधी, या कांग्रेस प्रधान या कांग्रेस कार्यकारी समिति जो हिन्दू बहुल है?
फतवा - मुसलमान के मुकाबले एक गैर मुसलमान को मुसलमान के हक का रक्षक नहीं माना जा सकता.

प्रश्न - जब मोहम्मद अली जिन्ना कहता है कि मैं पहले मुसलमान हूँ और बाद में हिन्दुस्तानी हूँ तो क्या ये सही है या आदमी पहले हिन्दुस्तानी होता है और बाद में मुसलमान?
फतवा - ये सही है कि एक मुसलमान पहले मुसलमान होता है और बाद में हिन्दुस्तानी

प्रश्न - क्या जिन्ना हिन्दुस्तान की राजनीति और कानून का माहिर है?
फतवा - हाँ जिन्ना हिन्दुस्तान की राजनीति और कानून का माहिर है.

आगे मुफ्ती लिखता है - जिन्ना की सोच क्या है, मैं नहीं जानता लेकिन उसका बर्ताव इस्लामी नहीं है ये सूरज की तरह साफ़ है. वो शिया है, ये भी साफ़ है. उसकी पढ़ाई और सोच यूरोपी है जो सब जानते हैं कि इस्लामी सोच से बिलकुल अलग है. ये सही है कि एक गैर मुसलमान को इस्लाम का रक्षक नहीं माना जा सकता लेकिन ऐसा मानने को कह कौन रहा है. कांग्रेस में मुसलमान अपने हक की रक्षा करेंगे. वो नहीं चाहते कि हिन्दू इस्लाम की रक्षा करें. ये सही है कि एक मुसलमान पहले मुसलमान है और बाद में कांग्रेसी या मुस्लिम लीगी या कुछ और.

पाकिस्तान के विरुद्ध फतवा

प्रश्न - जमीअत उल उलेमा ऐ हिंद और आप पाकिस्तान का विरोध क्यों करते हैं?
फतवा - हमारे विचार से पाकिस्तान की मांग मुसलामानों के हित में नहीं है क्योंकि न तो पाकिस्तान बनेगा और न ही एक सच्चा पाकिस्तान माँगा जा रहा है. जो पाकिस्तान की मांग कर रहे हैं, वो इस्लाम की शान को पूरे हिन्दुस्तान की बजाय एक छोटे से हिस्से में सीमित करना चाहते हैं. इस से एक हिस्से में एक विरोधी राष्ट्रीय पार्टी जो कि हिन्दुओं की है, उसका राज हो जाएगा. इसका एक मतलब ये भी है कि करोड़ों मुसलामानों के हाथ पैर काट के दूसरे हिस्से में उन्हें छोड़ दिया जाए.

ध्यान दीजिये कि ये विरोध भारत की एकता अथवा अखंडता की चिंता से नहीं है बल्कि उस के ठीक विपरीत यहाँ इस्लाम स्थापित करने के लिए है. ये तो एक तथाकथित राष्ट्रवादी उलेमा का फतवा है.

इस्लाम में भेदभाव नहीं है

कुरान की सुरा २ में है आयत संख्या २२१, जिस के अनुसार मुसलामानों को किसी मुशरिक स्त्री से निकाह न करने का आदेश है. लेकिन यदि हम तथाकथित सेकुलरवादियों, मार्क्सवादियों और नेहरुवादियों की बात सुनते हैं तो सारे भेदभाव केवल हिन्दू धर्म में हैं. यहाँ इस आयत के भिन्न भिन्न अनुवादकों द्वारा किया गया अनुवाद प्रस्तुत है. ये सभी अनुवाद प्रतिष्ठित इस्लाम ज्ञाताओं के हैं. इतने अनुवाद देने का कारण है कि जब कुरान की आयतों की सच्चाई दिखाई जाती है तो मुंह छुपाने के लिए एक बहाना होता है कि अनुवाद त्रुटिपूर्ण है.

وَلَا تَنكِحُوا الْمُشْرِكَاتِ حَتَّىٰ يُؤْمِنَّ ۚ وَلَأَمَةٌ مُّؤْمِنَةٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكَةٍ وَلَوْ أَعْجَبَتْكُمْ ۗ وَلَا تُنكِحُوا الْمُشْرِكِينَ حَتَّىٰ يُؤْمِنُوا ۚ وَلَعَبْدٌ مُّؤْمِنٌ خَيْرٌ مِّن مُّشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ ۗ أُولَـٰئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَاللَّـهُ يَدْعُو إِلَى الْجَنَّةِ وَالْمَغْفِرَةِ بِإِذْنِهِ ۖ وَيُبَيِّنُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ 
[2:221] फ़ारूक़ ख़ान एवं अहमद
और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें 
[2:221] फ़ारूक़ ख़ान एवं नदवी
और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते
[2:221] Sahih International
And do not marry polytheistic women until they believe. And a believing slave woman is better than a polytheist, even though she might please you. And do not marry polytheistic men [to your women] until they believe. And a believing slave is better than a polytheist, even though he might please you. Those invite [you] to the Fire, but Allah invites to Paradise and to forgiveness, by His permission. And He makes clear His verses to the people that perhaps they may remember.


[2:221] Ahmed Ali
Do not marry idolatrous women unless they join the faith. A maid servant who is a believer is better than an idolatress even though you may like her. And do not marry your daughters to idolaters until they accept the faith. A servant who is a believer is better than an idolater even though you may like him. They invite you to Hell, but God calls you to Paradise and pardon by His grace. And He makes His signs manifest that men may haply take heed.

[2:221] Ahmed Raza Khan
And do not marry polytheist women until they become Muslims; for undoubtedly a Muslim bondwoman is better than a polytheist woman, although you may like her; and do not give your women in marriage to polytheist men until they accept faith; for undoubtedly a Muslim slave is better than a polytheist, although you may like him; they invite you towards the fire; and Allah invites towards Paradise and forgiveness by His command; and explains His verses to mankind so that they may accept guidance.

[2:221] Daryabadi
And wed not infidel women until they believe; of a surety a believing bondwoman is better than an infidel Woman, albeit she please you. And wed not your women to infidel men until they believe; of a surety a believing bondman is better than an infidel, albeit the please you. These Call you unto the Fire, and Allah calleth you unto the Garden and unto forgiveness, by His leave; and He expoundeth His commandments unto mankind that haply they may be admonished.


[2:221] Hilali & Khan
And do not marry Al-Mushrikat (idolatresses, etc.) till they believe (worship Allah Alone). And indeed a slave woman who believes is better than a (free) Mushrikah (idolatress, etc.), even though she pleases you. And give not (your daughters) in marriage to Al-Mushrikun till they believe (in Allah Alone) and verily, a believing slave is better than a (free) Mushrik (idolater, etc.), even though he pleases you. Those (Al-Mushrikun) invite you to the Fire, but Allah invites (you) to Paradise and Forgiveness by His Leave, and makes His Ayat (proofs, evidences, verses, lessons, signs, revelations, etc.) clear to mankind that they may remember.

[2:221] Maududi
Do not marry mushrik women unless they believe; a slave woman who believes is better than a free woman who does not believe, even though the latter may appear very attractive to you. (Likewise) do not wed your women to mushrik men unless they believe; a slave man who believes is better than a free man who does not, even though he may be very pleasing to you. These mushrik people invite you to the Fire while Allah by His grace invites you to the Garden and His pardon, and He makes His revelations plain to the people so that they should learn a lesson and follow the admonition.

[2:221] Pickthall
Wed not idolatresses till they believe; for lo! a believing bondwoman is better than an idolatress though she please you; and give not your daughters in marriage to idolaters till they believe, for lo! a believing slave is better than an idolater though he please you. These invite unto the Fire, and Allah inviteth unto the Garden, and unto forgiveness by His grace, and expoundeth His revelations to mankind that haply they may remember.

[2:221] Qaribullah
Do not wed idolatresses, until they believe. A believing slavegirl is better than a (free) idolatress, even if she pleases you. And do not wed idolaters, until they believe. A believing slave is better than a (free) idolater, even though he pleases you. Those call to the Fire; but Allah calls to Paradise and pardon by His permission. He makes plain His verses to the people, in order that they will remember.

[2:221] Sarwar
Do not marry pagan women unless they believe in God. A believing slave girl is better than an idolater, even though the idolaters may attract you. Do not marry pagan men unless they believe in God. A believing slave is better than an idolater, even though the idolater may attract you. The pagans invite you to the fire, but God invites you to Paradise and forgiveness through His will. God shows His evidence to people so that they may take heed.

[2:221] Shakir
And do not marry the idolatresses until they believe, and certainly a believing maid is better than an idolatress woman, even though she should please you; and do not give (believing women) in marriage to idolaters until they believe, and certainly a believing servant is better than an idolater, even though he should please you; these invite to the fire, and Allah invites to the garden and to forgiveness by His will, and makes clear His communications to men, that they may be mindful.

[2:221] Yusuf Ali
Do not marry unbelieving women (idolaters), until they believe: A slave woman who believes is better than an unbelieving woman, even though she allures you. Nor marry (your girls) to unbelievers until they believe: A man slave who believes is better than an unbeliever, even though he allures you. Unbelievers do (but) beckon you to the Fire. But Allah beckons by His Grace to the Garden (of bliss) and forgiveness, and makes His Signs clear to mankind: That they may celebrate His praise.

हमारी सभी इतिहास की और सामाजिक विज्ञान की पुस्तकों में लिखा है कि इस्लाम किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता. क्या हमारे शिक्षा नीति निर्धारकों से हमें इस झूठ के लिए प्रश्न नहीं पूछना चाहिए?