सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

विज्ञान पर आधारित बाइबल

मुझे अपने बचपन के दिनों में विज्ञान की पुस्तकें देख कर एक दबा सा विचार आया करता था की जितने भी आविष्कार हम पढ़ते हैं, वो भारतीयों के नाम न हो कर विदेशियों के नाम हैं. हमारे ग्रन्थ और मेरी नानी कहा करती थी कि हम सब से उन्नत सभ्यता हैं. ये विरोधाभासी विचार ले कर ही बचपन व्यतीत हुआ.
कुछ बड़े होने पर किसी ने समझाया कि एक दीर्घ काल तक परतंत्र होने का कारण भारतीयों के नाम कोई भी अन्वेषण अथवा खोज नहीं है और सभी उपलब्धियां ईसाईयों के नाम हैं क्योंकि वो शासक थे. आज पता लगता है कि कोई इसाई तो कभी खोज कर ही नहीं सकता क्योंकि ऐसा करते ही वो इसाई नहीं रहेगा.

इसाई मत कितना तर्क विहीन एवं अवैज्ञानिक है, इसे जानने के लिए इस लेख में चर्च के आलेखों का अनुवाद प्रस्तुत है. आज जिस गैलिलिओ के सिद्धांत हम अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों में पढ़ते हैं, उस से चर्च ने किस प्रकार दुर्व्यवहार किया था, इसका साक्ष्य चर्च के आलेख ही दे रहे हैं.

२४ फरवरी, सन १६१६ को रोम में, होली ऑफिस के जाने माने विद्वान् फादर एकत्रित हुए थे. इन 
महान विद्वानों को जिन विषयों पर निर्णय लेना था, वो कुछ वर्ष पूर्व स्वर्ग सिधार चुके, पश्चिम के एक वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ कोपरनिकस  द्वारा प्रस्तावित सिद्धांत थे. 
यदि आप को ये पढ़ कर आश्चर्य हो रहा है की इसाई मत के इन ठेकेदारों ने वैज्ञानिक के सिद्धांतों का निर्णय क्यों करना था तो इसका अर्थ है की आप को भी उसी विकृत इतिहास की जानकारी है जो गत सात दशकों में तथाकथित सेक्यूलरवादियों द्वारा और उस से पूर्व उनके जनक इसाई मिशनरियों द्वारा हमारे इस महान राष्ट्र पर थोपा गया है.
पुनः विषय पर लौटते हैं. इन्होने जिन विषयों की समीक्षा करनी थी तथा निर्णय देना था, वो इस प्रकार हैं.

१.  क्या सूर्य विश्व का केंद्र है और चलायमान नहीं है?
निर्णय: सभी विद्वान् फादर एक मत थे कि ये एक मूर्खतापूर्ण तथा अव्यवहारिक सिद्धांत है और एक नास्तिक मत है क्योंकि ये इसाई मत के ग्रंथों से पूर्णतया विरोध में है. ये निर्णय सभी होली फादरों तथा मत के विद्वानों ने ग्रन्थ के शब्दों के अनुसार लिया है.

२. पृथ्वी विश्व का केंद्र नहीं है और न ही अपने स्थान पर स्थिर है किन्तु चलायमान है और धुरी पर घूमती है?
निर्णय: सभी का मत था कि ये प्रस्ताव भी उतना ही त्रुटिपूर्ण है, दर्शन के आधार पर भी तथा इसाई मत के अनुसार भी.

इन विद्वानों के नाम इस प्रकार हैं:-
अर्माघ के आर्कबिशप पतरस लोम्बर्दास
पवित्र एपोस्तोलिक महल के मास्टर, फादर ह्यासिन्तास पेत्रोनिअस
डोमिनिकी ऑर्डर के मत के मास्टर तथा विकार जनरल, फादर माइकालेंजेलो सेगिज्ज़ी
होली ऑफिस के कमिसरी और पवित्र मत के मास्टर, फादर हियारोनिमस डे कसलिमैयोरी
होली ऑफिस के मंत्री फादर थॉमस डे लेमौस
फादर ग्रेगोरियास नन्नियास कोरोनल
सोसैती ऑफ जीसस के फादर राफेल रस्तेलियास 
नियमित लिपिक, मत के मास्टर
नेपल्स के फादर माइकल
सर्वाधिक सम्मानित कमिसरी के फादर का होली ऑफिस का सहायक फादर लैकोबस टिनटस
 
तनिक इन महान विचारकों की उपाधियों और मानसिक तथा बौधिक स्तर को देखिये. इनकी विद्वत्ता तो देखते ही बनती है. इन महान विचारकों के समक्ष हमारे ऋषि मुनि तो कहीं ठहर ही नहीं पाते. यदि हम वैदिक प्रमाणों पर न जाते हुए केवल १५०० वर्ष पूर्व जन्मे गणितज्ञ आर्यभट्ट द्वारा दिए गए सिद्धांतों को देखें तो उन्होंने कोपरनिकस वाला सिद्धांत उस से दस शताब्दियाँ पहले ही प्रस्तुत कर दिया था.

इन महापुरुषों की ये बैठक, एक मृत वैज्ञानिक के सिद्धांतों की निंदा करने इसलिए बैठी थी क्योंकि अक अन्य वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ गैलीलियो ने इन सिद्धांतों का न केवल समर्थन किया था वरन उनकी पुष्टि करते हुए लेख भी प्रकाशित करवा दिए थे. चर्च के विरुद्ध इस पाप का दंड निर्धारित करने के लिए इस बैतःक आयोजन हुआ था. अपनी और से इन तथाकथित पाप कर्मों की निंदा करने के उपरान्त की कार्यवाही हमें इन्कुइसिशन के आलेख में इस प्रकार मिलती है:
२५ फरवरी, १६१६, दिन बृहस्पतिवार
मत के ज्ञानवान फादरों का निर्णय आने के पश्चात होली ऑफिस के अति शोभनीय लॉर्ड कार्डिनल मिलिनी  ने जांच करने वाले प्रतिष्ठित फादर और नियुक्त अधिकारी को गणितज्ञ गैलिलिओ द्वारा प्रस्तावित विषय (जिसके अनुसार सूर्या विश्व का केंद्र है तथा स्थिर है और पृथ्वी चलायमान है तथा अपनी धुरी पर घूमती है) के निर्णय से अवगत करवाने के उपरानत अति शोभनीय लॉर्ड कार्डिनल बेल्लार्माइन को निर्देश दिया कि वो गैलिलिओ को अपने समक्ष प्रस्तुत होने का आदेश दें और अपने इन विचारों को त्यागने का निर्देश दें; और यदि वो ऐसा करने से इनकार करे, तो एक नोटरी और एक साक्षी की उपस्थिति में उसे अपने मत और सिद्धांत पर विचार विमर्श करने, उसे पढ़ाने और उसका बचाव करने के लिए एक निषेधाज्ञा दें; यदि वो इसे स्वीकार नहीं करता तो उसे बंधक बना लिया जाए.
यहाँ जिसे होली ऑफिस के नाम से संबोधित किया जा रहा है, उस का अक्षरशः अनुवाद है - पवित्र कार्यालय. एक मुहावरा है - आँख का अँधा नाम नयनसुख, वो यहाँ प्रयोग की जा सकती है क्योंकि इस पवित्र कार्यालय के नाम सुनते ही उस समय के लोग भयभीत हो जाते थे क्योंकि इस तथाकथित होली ऑफिस का कार्य था इन्कुइसिशन करने का (इन्कुइसिशन सम्बंधित जानकारी और उसका होली फादरों द्वारा उपयोग). ये कार्यालय गोवा में भी था और कहा जाता है कि हिन्दुओं के लिए इस कार्यालय के बुलावे का अर्थ होता था एक पीड़ाजनक मृत्यु. गैलिलिओ इसाई था तथा एक सम्मानित अध्यापक था, इसलिए उसे मृत्यु का भय तो नहीं था किन्तु इसकी अवहेलना वो नहीं कर सकता था. परिणामस्वरूप, फादरों के आदेश पर अगले दिन वो उपस्थित हो गया.
प्रस्तुत है चर्च का उल्लेख:

विशेष निषेधाज्ञा - २६ फरवरी, शुक्रवार, १६१६
अति शोभनीय लॉर्ड कार्डिनल बेलार्माइन के राजभवन में उपरलिखित गैलिलिओ को अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत होने का आदेश दिया गया था. गैलिलिओ के उपस्थित होने पर अति शोभनीय लॉर्ड कार्डिनल द्वारा उसे चेतावनी दे दी गयी है कि उपरलिखित सिद्धांत दोषपूर्ण हैं इसलिए इन्हें त्याग दिया जाए. होली ऑफिस के प्रतिष्ठित फादर माइकालैंजेलो सेगिज्ज़ी तथा अन्य अधिकारिओं की उपस्थिति में, अति शोभनीय लॉर्ड कार्डिनल ने, पोप के प्रतिनिधि के रूप में, स्वयं गैलिलिओ को उसके समक्ष ये निर्देश दिया कि वो  अपने उपरलिखित विचार, जिनके अनुसार सूर्या विश्व का केंद्र है और पृथ्वी चलायमान है को त्याग दे. न तो इसे भविष्य में, लिखित रूप में अथवा वाणी से, पढ़ाया जाए और न ही उसे इसका बचाव करना है; अन्यथा होली ऑफिस के द्वारा उस पर कार्यवाही की जायेगी. गैलिलिओ ने इस इस निषेधाज्ञा को स्वीकार कर लिया है.
स्थान  - रोम, उपस्थित साक्षी - साइप्रस राज्य से फादर बदिनो नोर्स और मोंटे पुल्सियानो के चर्च से  ऐगोस्तिनो मोंगार्दो     
आज भारत में इसाइयत का प्रचार करने वाले इटली से आये गिरगिट ये जताते नहीं थकते कि यदि हिन्दू धर्म वैज्ञानिक है तो इसाई मत भी विज्ञान पर आधारित है.


है न निर्लज्जता की पराकाष्ठा?

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