गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

चर्च की न्यायप्रियता


अपनी पुस्तक ए की तो पोपरी में भूतपूर्व फादर एंथोनी गैविंस बताते हैं कि जब किसी फादर को लगता था कि कोई कन्फैशन  अथवा उस से सम्बंधित विषय गंभीर हैं तो एक बीस सदसीय समिति जिसे कि मॉरल अकैडमी  कहते हैं उस की समीक्षा करती है. नाम से समझ गए होंगे कि इस समिति का कार्य था नैतिक विषयों पर चिंतन करना और निर्देश देना. ये सभी बीस सदस्य इसाई मत के शीर्ष फादर होते हैं. ऐसा ही एक कन्फैशन था लियोनोर का.
इस लेख को पढ़ने से पहले लियोनोर की कन्फैशन पढ़ें. इस संबंध में जब मॉरल अकैडमी ने चिंतन किया तो इन महान और होली उच्चाधिकारियों के निर्णय की समीक्षा भी कर लें.
जब लियोनोर का कन्फैशन मॉरल अकैडमी के समक्ष रखा गया तो विचार विमर्श के पश्चात प्रमुख छः बिंदु थे जिन पर कि इस अकैडमी ने निर्णय करना था.

प्रथम बिंदु, जिसे हल किया जाना था, ये था कि क्या लियोनोर पर किये गए अत्याचार के लिए फ्रान्सिसकी कॉन्वेंट पर कार्यवाही की जा सकती थी?
अकैडमी के प्रधान ने घटना क्रम के प्रत्येक भाग की समीक्षा करने के उपरान्त कहा कि लियोनोर ने अपने कंफैसर फादर की अवज्ञा नहीं की किन्तु यदि वो कॉन्वेंट पर कार्यवाही करने की चेष्टा करेगी तो उसकी अपनी अपकीर्ति होगी और कॉन्वेंट पर तथा कंफैसर फादर पर भी एक अत्यंत नीच अपराध का धब्बा लग जाएगा. हमें उस मार्ग का चयन करना चाहिए जिसमें कि कम से कम क्षति पहुंचे. यदि फ्रान्सिसकी समुदाय पर कार्यवाही करते हैं तो इस से लियोनोर की छवि को जो क्षति होगी वो उसके अनाथ होने से अधिक होगी इसलिए हमें इस संबंध में कुछ नहीं करना चाहिए.

कहिये, कैसा लगा आप को चर्च का न्याय? यदि आप ने कहा कि ये अन्याय है तो आप को सेक्युलर नहीं माना जाएगा. हो सकता है कि राहुल गांधी आप को हिन्दू आतंकवादी कह दें. चर्च की दृष्टि में एक सोलह वर्षीया बच्ची का बलात्कार करने वाले राक्षस के प्रति कार्यवाही करने से बच्ची को अधिक हानि होगी. ये उसी चर्च का निर्णय है जिसने ६०० वर्ष तक तो आधिकारिक रूप से और उस से कहीं अधिक लंबे समय के लिए लाखों लोगों को यातनाएं दे कर इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वो चर्च की विचारधारा से सहमत नहीं थे.

अकैडमी के समक्ष जो दूसरा विचारणीय बिंदु था, वो था कि दो माह का वो अंतराल जब फादर लियोनोर के घर रहा था और उस का शारीरिक दुरूपयोग करता रहा था, उसमें लियोनोर अपराधी है अथवा नहीं?
जी हाँ. ये होली लोग लियोनोर के अपराध की चर्चा कर रहे हैं ना कि उस बदमाश फादर  की. इसे कहते हैं चर्च का न्याय.
इन विचारशील पुरुषों में छः का विचार था कि इस दो माह के अंतराल में लियोनोर भी दोषी थी किन्तु अन्य सदस्यों का मत था कि ऐसा नहीं है. इसलिए निर्णय यह हुआ कि लियोनोर को दोषी ना माना जाये.

तीसरा बिंदु था कि जब दूसरे फादर ने लियोनोर को इन्कुइसिशन की धमकी दे कर उस से बलात्कार किया था तो इस में लियोनोर पापी है अथवा नहीं?
अर्थात दूसरे फादर के घृणित कार्य की समीक्षा नहीं हो रही है. क्योंकि वो तो होली फादर है. इस विषय पर इस अकैडमी का निर्णय था कि उसने अपने आप को इन्कुइसिशन से बचाने के लिए इस होली फादर और उसके साथियों को अपने प्रति बलात्कार करने दिया था, इसलिए उसका ये पाप अन्य पापों से बड़ा नहीं था.

चौथा बिंदु था कि लियोनोर ने चर्च में से चैलिस  चुराया है क्या इसके लिए लियोनोर से चर्च के द्वारा प्रतिशोध के रूप में कुछ लिया जाए अथवा नहीं?
इस सन्दर्भ में अकैडमी के सदस्यों में एक मत नहीं था. कुछ का मत था कि इस में लियोनोर और फादर दोनों ही दोषी थे इसलिए दोनों को इसका भुगतान करना चाहिए. किन्तु कुछ का मत था कि इस अपराध में लियोनोर तो केवल होली फादर के निर्देशों का पालन कर रही थी इसलिए फादर ही दोषी था. निर्णय था कि लियोनोर को क्षमा कर दिया जाए. जहां तक फादर का प्रश्न है तो उनकी समाज में प्रतिष्ठा को देखते हुए और ये जानते हुए कि उनके मर्नोप्रांत सब कुछ चर्च को ही मिलने वाला है, उनसे कुछ ना लिया जाए.

पांचवा बिंदु था कि क्या चर्च में सहवास करने से चर्च अपवित्र हो गयी है? क्या लियोनोर बताने के लिए बाध्य है कि वहाँ क्या क्या किया गया था? 
जहां तक चर्च के अपवित्र हो जाने का प्रश्न था तो सर्व सम्मति ये थी कि चर्च दूषित हो गयी है. दूसरा प्रश्न था बिशप को विस्तार पूर्वक चर्च में के गयी गतिविधि के संबंध में; चार सदस्यों का मत था कि विस्तार पूर्वक बताना चाहिए जब कि अन्य सोलह सदस्यों की सहमति नहीं थी. उनका विचार था कि होली वाटर अर्थात पवित्र जल के छिडकाव से चर्च पवित्र हो जायेगी.

अंतिम बिंदु था कि क्या इस सब को अकैडमी के अभिलेख (रिकार्ड) में अंकित किया जाए अथवा नहीं?
इस सन्दर्भ में निर्णय किया गया कि इन घटनाओं और निर्णयों को पीड़िता और फादर के नाम ना लिखे ही अंकित कर लिया जाए. न ही ये उल्लेख हो कि ये इसाई मत के किस गुट के थे.

कैसा लगा चर्च का न्याय? ध्यान रहे कि ये कोई इक्का दुक्का भ्रष्ट पादरी का विषय नहीं है बल्कि शीर्ष समिति का व्यवहार है. इस सब से क्या शिक्षा मिलती है? ए होली फादर! जितना लूटना है लूटो, भले ही वो बच्चियों की मर्यादा ही क्यों न हो, तुम्हें कोई आंच नहीं आ सकती. 

प्रकृति ने हमारी रचना जिस प्रकार की है, शरीर की आयु के अनुरूप अपनी मांग होती है. इस रचना के अनुसार आजीवन ब्रह्मचर्य शाश्वत नियमों का उल्लंघन और प्रकृति की अवहेलना ही कहा जाना चाहिए. इस का परिणाम है कि जब शरीर की प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ती नहीं होती तो मानसिकता विकृत होना अवश्यम्भावी है. यदि हम इसाई मत के इन तथाकथित होली पुरुषों के व्यवहार को देखें तो समझ में आ जाता है कि एंथोनी गैविंस, जो स्वयं इस जीवन शैली के साक्षी रहे हैं, क्या कहना चाहते हैं. इसलिए जब वो लिखते हैं कि बहुत थोड़े से ही फादर उचित जीवन आदर्शों का निर्वाह करते हैं तो हमें जान लेना चाहिए कि अधिकतम फादर एक दोहरी जीवन शैली जी रहे हैं. उनका व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन एक दूसरे के विरुद्ध हैं, इसलिए ढोंग करना उनकी प्रकृति बन जाता है.

ये समस्या केवल पुरुषों की हो, ऐसा भी नहीं है. आये दिन समाचार पत्रों में जो इसाई नन्स के संबंध में देखने को मिलता है वो इसी समस्या का दूसरा परिपेक्ष है. इसकी एक झलक हमें इसी पुस्तक में मिल जाती है. यदि विश्वास नहीं है तो एक नन का कन्फैशन पढ़ लीजिये.

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