जब आप किसी मुसलमान को भूमि पर वस्त्र बिछा कर नमाज़ अदा करते देखते हैं तो आप क्या सोचते हैं?
यदि आप हिन्दू संस्कृति में पाले बढे हैं तो आप सोचते होंगे कि वो गायत्री मन्त्र अथवा शान्ति पाठ की भांति सम्पूर्ण विश्व के सुख की प्रार्थना कर रहा है.
ये विचार आना स्वाभाविक है क्योंकि सनातन, वैदिक, आर्य अथवा हिन्दू मान्यता के अनुसार प्रार्थना ऐसी ही होनी चाहिए.
ला इलाहा इल अल्लाह - मोहम्मद रुसूलाल्लाह
इसका अर्थ है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई और पूजा करने योग्य नहीं है और मोहम्मद, अल्लाह का संदेश वाहक (पैगम्बर) है.
सरल शब्दों में इस का अर्थ है कि राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा, इश्वर, परमेश्वर, परमात्मा इत्यादि कहना इस्लाम के अनुसार एक अपराध है.
ऐसा करने वालों के लिए इस्लाम में और कुरान में जो शब्द है, वो है काफिर. काफिर दो प्रकार के हैं. एक हैं जिन्हें अहले किताब अथवा किताबी कहते हैं और दूसरे हैं मुशरिक.
अहले किताब अथवा किताबी वो हैं जिनके पास किताब (बाइबल अथवा तौरह) है. इस श्रेणी में आते हैं - इसाई और यहूदी.
कुरान के अनुसार इनसे नीच श्रेणी है मुशरिकों की. मुशरिक वो हैं जो मूर्ती पूजा करते हैं अथवा एक से अधिक देवी देवताओं को पूजते हैं. इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद ने अपने जीवन काल में सैंकड़ों मुशरिकों की हत्या की अथवा करवाई और जीवन भर मुशरिकों से युद्ध किया. जिसे आज मक्का की मस्जिद काबा कहते हैं, वहाँ सन 628 तक मूर्ती पूजा होती थी और काबा में 360 मूर्तियाँ स्थापित थीं जो कि देवी देवताओं की थीं. इन मूर्तियों को, मोहम्मद ने मक्का पर कब्ज़ा करने के पश्चात अपने हाथों से तोड़ा था. कई काफिरों की महिलाओं को
1947 में पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू २५ से ३० % थे किन्तु आज ये आंकड़ा २-३% है. इन हिन्दुओं का क्या हुआ ये तो सरकार ही बता सकती है किन्तु क्यों हुआ, उसका उत्तर है मोहम्मद और कुरान.
प्रत्येक मुसलमान की इच्छा है कि वो मोहम्मद के जीवन का अनुसरण करे, इसलिए मेहँदी लगाना, ऊंचा पायजामा पहनना, दाढ़ी रखना, सभी का अनुसरण किया जाता है.
मुग़ल शासन काल में और खिलाफत आन्दोलन के दंगों अथवा नोआखली के दंगों के समय भी हिन्दू महिलाओं के अपहरण, ज़बरन निकाह और बलात्कार मोहम्मद के जीवन के ही उदाहरणों का अनुसरण था. मोहम्मद ने भी कई काफिर कबीलों को हराने के पश्चात उनकी महिलाओं को अपने हरम में भर लिया था.
आज हमारे देश के मार्क्सवादी इतिहासकार हमें बताते हैं कि मोहम्मद एक नेक मानव था तथा उसने विधवाओं के उद्धार के लिए उन से निकाह किया था. वो ये नहीं बताते कि उनके पतियों की हत्या भी उसी ने की थी अथवा करवाई थी.
प्रत्येक मुसलमान जानता है कि मोहम्मद एक ऐतिहासिक तथ्य है इसी लिए जब मार्क्सवादी इतिहासकारों ने ये अफवाह उड़ाने की चेष्टा की कि मोहम्मद एक काल्पनिक चरित्र है तो मुसलमान ही उन पर भड़क उठे थे.
कम ही हिन्दू जानते हैं कि इसाइयत, इस्लाम और मार्क्सवाद, तीनों ही बाइबल में से निकले हैं और एक दूसरे के विरोधी हैं. किन्तु तीनों का एक मुख्य उद्देश्य है विश्व में एकमात्र बची हुई पुरानी सभ्यता अर्थात हिन्दू धर्म का नाश. इसके लिए आज ये तीनों शक्तियां मिल कर कार्य कर रही हैं.
इस लेख में कुरान की उन आयतों में से कुछ का उल्लेख किया गया है जो काफिरों से अथवा आज विश्व में फैले जिहाद नामक आतंकवाद से जुड़ी हैं. अंग्रेजी कुरान के लेखक हैं ताकिउद्दीन हिलाली और मोहम्मद मोहसिन खान. ये विश्व में सर्वाधिक प्रचलित कुरान है. इसका एक मुख्य कारण है कि इसे अरब सरकार के द्वारा हज यात्रिओं को बांटा जाता है.
भारत में १९४७ में मुसलमान ९% थे किन्तु आज सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग १४% हैं जबकि इन में बांग्लादेश से आये हुए और आंकड़ों से बचे हुए मुसलमान मिला लें तो ये आंकड़ा लगभग २५% होगा. अर्थात हिन्दू केवल विदेशों में ही नहीं भारत में भी कम हो रहे हैं.
हिन्दुओं को सिखाया जाता है कि 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर करना', आइये देखें कि ये कितना सच है. प्रस्तुत लेख में कुरान के अंग्रेजी अनुवाद का प्रयोग किया गया है. ये अनुवाद हिलाली तथा खान द्वारा कृत है जोकि इस्लाम सम्प्रदाय के महान ज्ञाता माने जाते हैं. इस अनुवाद की प्रमानिन्कता इस तथ्य से सिद्ध होती है कि ये विश्व में सबसे अधिक प्रचलित कुरान है और साउदी अरब का शासन हज यात्रा के लिए आये मुसलामानों को भी ये कुरान बांटता है. कुरान की आयतों का एक विशाल भाग काफिरों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करता है. इस लेख में उन में से कुछ आयतों का उल्लेख किया जा रहा है.
[9:5] Hilali & Khan
Then when the Sacred Months (the Ist, 7th, 11th, and 12th months of the Islamic calendar) have passed, then kill the Mushrikun (see V. 2:105) wherever you find them, and capture them and besiege them, and prepare for them each and every ambush. But if they repent and perform As-Salat (Iqamat-as-Salat), and give Zakat, then leave their way free. Verily, Allah is Oft-Forgiving, Most Merciful.
जब हुरमत के (पवित्र) महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहां भी देखो, क़त्ल कर दो. उन्हें पकड़ो, घेरो और हर घात लगाने के स्थान पर उनकी ताक में छुप कर बैठो. अगर वो तौबा करते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं तो उन्हें जाने दो, यकीनन अल्लाह रहम करने वाला (रहीम) और माफ़ करने वाला (गफूर) है.
[9:6] Hilali & Khan
And if anyone of the Mushrikun (polytheists, idolaters, pagans, disbelievers in the Oneness of Allah) seeks your protection then grant him protection, so that he may hear the Word of Allah (the Quran), and then escort him to where he can be secure, that is because they are men who know not.
और अगर मुशरिकों में से कोई तुम से शरण मांगे तो उसे शरण दो ताकि वो अल्लाह का कलिमा (कुरान) सुन ले. इसके बाद उसे ऐसी जगह छोड़ो जहां वो सुरक्षित महसूस करे क्योंकि ये वो लोग हैं जो सच नहीं जानते.
[2:193] Hilali & Khan
And fight them until there is no more Fitnah (disbelief and worshipping of others along with Allah) and (all and every kind of) worship is for Allah (Alone). But if they cease, let there be no transgression except against Az-Zalimun (the polytheists, and wrong-doers, etc.)
और तुम उन से लड़ते रहो जब तक कि फितना (अल्लाह के साथ और देवी देवताओं की अराधना) समाप्त न हो जाए और (केवल) अल्लाह का ही सम्प्रदाय रह जाए. और यदि वो समझ जाएँ तो ज़ालिमों (अन्य देवी देवताओं की पूजा करने वालों और बुरे कार्य करने वालों) के अतिरिक्त किसी के प्रति सीमा न लान्घो.
[8:38] Hilali & Khan
Say to those who have disbelieved, if they cease (from disbelief) their past will be forgiven. But if they return (thereto), then the examples of those (punished) before them have already preceded (as a warning).
[8:39] Hilali & Khan
And fight them until there is no more Fitnah (disbelief and polytheism: i.e. worshipping others besides Allah) and the religion (worship) will all be for Allah Alone [in the whole of the world]. But if they cease (worshipping others besides Allah), then certainly, Allah is All-Seer of what they do.
तुम काफिरों से कहो कि यदि उन्होंने कुफ्र छोड़ दिया तो उन की पुरानी भूलें क्षमा कर दी जायेंगी किन्तु यदि पुनः वही करने लगे तो उन्हें भी वही दंड मिलेगा जो पहले ऐसा करने वालों को मिला है.
ऐ मुसलामानों! तुम काफिरों से तब तक लड़ते जाओ जब तक कि कोई फितना न बचे और सम्पूर्ण विश्व में केवल अल्लाह का ही दीन रह जाए.
[4:55] Hilali & Khan
Of them were (some) who believed in him (Muhammad SAW), and of them were (some) who averted their faces from him (Muhammad SAW); and enough is Hell for burning (them).
उनमें से कुछ (मोहम्मद पर) ईमान लाये और कुछ ने अवहेलना की. उनके लिए जहन्नुम (नर्क) की पर्याप्त अग्नि है.
[9:73] Hilali & Khan
O Prophet (Muhammad SAW)! Strive hard against the disbelievers and the hypocrites, and be harsh against them, their abode is Hell, - and worst indeed is that destination.
ऐ नबी (मोहम्मद)!(काफिरों और मुनाफिकों से जिहाद करो और उन से कठोरतापूर्ण व्यवहार करो. अंततः तो उनका स्थान नर्क में ही है; क्या बुरा स्थान है वो!
[9:111] Hilali & Khan
Verily, Allah has purchased of the believers their lives and their properties; for the price that theirs shall be the Paradise. They fight in Allah's Cause, so they kill (others) and are killed. It is a promise in truth which is binding on Him in the Taurat (Torah) and the Injeel (Gospel) and the Quran. And who is truer to his covenant than Allah? Then rejoice in the bargain which you have concluded. That is the supreme success.
निःसंदेह, अल्लाह ने मोम्मिनों के जीवन और संपत्ति को बहिश्त (जन्नत अथवा स्वर्ग) का मूल्य दे कर खरीद (विक्रय कर) लिया है. इसलिए जब वो अल्लाह की राह में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मरते भी हैं. ये अल्लाह का ऐसा वायदा है जो तौराह (यहूदी सम्प्रदाय की पुस्तक जिसे ताल्मुद भी कहते हैं), इंजील (बाइबल का इवैन्जिल Evangel) और कुरआन में किया गया है. अल्लाह के अतिरिक्त अपने वायदे को पूर्ण करने वाला कौन हो सकता है? इसलिए ये जो सौदा तुमने किया है, उस से हर्षित हो जायो. यह सबसे बड़ी सफलता है.
[9:113] Hilali & Khan
It is not (proper) for the Prophet and those who believe to ask Allah's Forgiveness for the Mushrikun (polytheists, idolaters, pagans, disbelievers in the Oneness of Allah) even though they be of kin, after it has become clear to them that they are the dwellers of the Fire (because they died in a state of disbelief).
किसी नबी और मुसलामानों के लिए ये उचित नहीं है कि वे, मुशरिकों (एक से अधिक देवी देवताओं को पूजने वालों, मूर्ती पूजा करने वालों, अल्लाह को अकेला रब न मानने वालों) के लिए क्षमा प्रार्थना की दुआ करें, भले ही वो अपने प्रियजन हों जब कि ये स्पष्ट हो चुका है कि वे जहन्नुम में ही जायेंगे (क्योंकि वो बेईमान ही मर गए)
[9:123] Hilali & Khan
O you who believe! Fight those of the disbelievers who are close to you, and let them find harshness in you, and know that Allah is with those who are the Al-Muttaqun (the pious - see V. 2:2)
ऐ मुसलामानों! उन काफिरों से, जो तुम्हारे निकट हैं, ऐसे लड़ो कि वो तुम में क्रूरता का अनुभव करें और ये जान लो कि अल्लाह तो केवल मुसलामानों के साथ है.
[21:98] Hilali & Khan
Certainly! You (disbelievers) and that which you are worshipping now besides Allah, are (but) fuel for Hell! (Surely), you will enter it.
यकीनन तुम (काफिर) और वो जिस की तुम अल्लाह को छोड़ कर पूजा करते हो जहन्नुम की अग्नि के ईंधन हो इसलिए तुम उस अग्नि में ही जायोगे.
[32:20] Hilali & Khan
And as for those who are Fasiqun (disbelievers and disobedient to Allah), their abode will be the Fire, every time they wish to get away therefrom, they will be put back thereto, and it will be said to them: "Taste you the torment of the Fire which you used to deny."
[32:21] Hilali & Khan
And verily, We will make them taste of the near torment (i.e. the torment in the life of this world, i.e. disasters, calamities, etc.) prior to the supreme torment (in the Hereafter), in order that they may (repent and) return (i.e. accept Islam).
[32:22] Hilali & Khan
And who does more wrong than he who is reminded of the Ayat (proofs, evidences, verses, lessons, signs, revelations, etc.) of his Lord, then he turns aside therefrom? Verily, We shall exact retribution from the Mujrimun (criminals, disbelievers, polytheists, sinners, etc.).
और वो जो फ़ासिक़ (अल्लाह को न मानने वाले नास्तिक), तो आग में ही जलेंगे. वे जब भी अग्नि में से निकलने का प्रयास करेंगे, फिर से उसी में झोंक दिए जायेंगे और उन से कहा जाएगा,"अब इस अग्नि की यातना चखो जो तुम्हें लगता था कि केवल मिथ्याभाषण है.
और हम उन्हें उस अंतिम यातना से पूर्व ही इस जगत में यातना (विपत्तियाँ और प्रकोप) का स्वाद चखाएंगे कदाचित वे (पश्चाताप कर के इस्लाम में) लौट आयें
और उन से बढ़ कर दोषी और कौन होगा जिन्हें रब की आयतें बताई जाएँ और इसके उपरान्त भी वे मुख मोड़ लें. उन मुजरिमों (अपराधियों, नास्तिकों, पापियों, मूर्ती पूजा करने वालों तथा अन्य देवी देवताओं की पूजा करने वालों) से हम प्रतिशोध अवश्य लेंगे.
गधा वो था जिसने कहा था "मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना" अथवा वो हिन्दू हैं जो इस सोच से ग्रसित हो कर अपनी ही जड़ें काटने में लगे हैं.
गधा वो था जिसने कहा था "मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना" अथवा वो हिन्दू हैं जो इस सोच से ग्रसित हो कर अपनी ही जड़ें काटने में लगे हैं.
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