सोमवार, 29 नवंबर 2010

कुरान में जिहाद

इस्लाम एक शांतिपूर्ण विचारधारा ?

कश्मीर हो अथवा न्यू यॉर्क, जब भी कहीं आतंकी हमला होता है तो कुछ लोग ये कहने लगते हैं कि इस्लाम एक ऐसा संप्रदाय है जो कि आतंकवाद को बढ़ावा देता है, किन्तु उन से कहीं अधिक संख्या में मौलवी, राजनेता और बुद्धिजीवी ये कहते हैं कि इस्लाम तो एक शांतिप्रिय विचारधारा है और मुस्लिम संप्रदाय एक शांतिप्रिय संप्रदाय है. केवल कुछ भटके हुए नवयुवक इस शांत विचारधरा का अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए त्रुटिपूर्ण अर्थ निकाल लेते हैं. इस वाद प्रतिवाद का अंत तथ्यों के प्रकाश में ही किया जाना चाहिए. 

जिहाद सम्बन्धी आयतें 

इन दोनों पक्षों में से कौन सत्य भाषण कर रहा है ये जानने के लिए मुसलामानों द्वारा सर्वमान्य पुस्तक कुरान पर एक दृष्टि डालते हैं. सुरा ६६, आयत ९ इस प्रकार है:-
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
 इस का अनुवाद इस प्रकार हमें मिलता है (इस लेख में जितने भी अनुवाद हैं, वे सभी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अनुवादों में से लिए गए हैं न कि लेखक के अपने हैं):-
ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है
 ये अनुवाद आंशिक रूप से भ्रामक है क्योंकि ये 'इनकार करनेवाले और कपटाचारियों ' जैसे शब्दों का उपयोग करके किया गया है. वास्तव में मूल आयत में जो शब्द हैं, वे हैं काफिर (जो मुसलमान नहीं हैं अर्थात हिन्दू, इसाई, यहूदी) तथा मुनाफ़िक़.(वो मुसलमान जो जेहाद नहीं करते) इस का एक और अनुवाद हमें मिलता है जो कि निम्नलिखित है और अधिक उपयुक्त है.
ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है
 इस आयत से ये तो स्पष्ट हो गया कि कुरान में काफिरों और मुनाफिकों से जेहाद करने के लिए कहा गया है. इसके लिए भी इस्लाम को शान्ति का संप्रदाय बताने वालों के पास एक उत्तर है. वे कहते हैं कि ये जो जेहाद है, ये व्यक्ति के भीतर के युद्ध अथवा द्वंद्वों को इंगित करता है. हालाँकि इस आयत से स्पष्ट है कि ये आक्रामक युद्ध के लिए प्रेरित करती है, किन्तु संदेह लाभ तो मिल ही सकता है.
ये युद्ध आंतरिक है अथवा वास्तविक, इस के लिए भी कुरान का ही अध्ययन करते हैं. सुरा ८, आयत ५७ इस प्रकार है:-
فَإِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِي الْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِم مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ
 इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें
 एक और अनुवाद इस प्रकार है:-
तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख्त गोश्माली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें
इन आयतों से स्पष्ट हो जाता है कि ये कोई आंतरिक युद्ध नहीं है बल्कि वास्तविक युद्ध है. निम्नलिखित आयतें और अधिक स्पष्टता से सच्चाई को दर्शाती हैं.
सुरा ८, आयत 59
وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا سَبَقُوا ۚ إِنَّهُمْ لَا يُعْجِزُونَ
 इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
और कुफ्फ़ार ये न ख्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते
इसी आयत का एक अन्य अनुवाद:-
इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते
सुरा ८, आयत 60
 وَأَعِدُّوا لَهُم مَّا اسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍ وَمِن رِّبَاطِ الْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدُوَّ اللَّـهِ وَعَدُوَّكُمْ وَآخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لَا تَعْلَمُونَهُمُ اللَّـهُ يَعْلَمُهُمْ ۚ وَمَا تُنفِقُوا مِن شَيْءٍ فِي سَبِيلِ اللَّـهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لَا تُظْلَمُونَ
इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे ख़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर ख़ुदा तो उनको जानता है और ख़ुदा की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा
 और दूसरा अनुवाद है:-
और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा
इन आयतों से स्पष्ट है कि इस्लाम के समर्थक या तो अनजाने में और या जान बूझ कर जेहाद और इस्लाम का एक त्रुटिपूर्ण स्पष्टीकरण देते आये हैं. कुरान में जेहादी आयतें बहुतायत में हैं, जिन्हें मैं एक साथ संकलित कर के प्रस्तुत करूंगा. यहाँ केवल सत्य स्थापना के लिए कुछ गिनी चुनी आयतें ही दे रहा हूँ. सुरा ४७ की आयत ४ बताती है कि किस सीमा तक काफिरों से जेहाद करना है.
فَإِذَا لَقِيتُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا فَضَرْبَ الرِّقَابِ حَتَّىٰ إِذَا أَثْخَنتُمُوهُمْ فَشُدُّوا الْوَثَاقَ فَإِمَّا مَنًّا بَعْدُ وَإِمَّا فِدَاءً حَتَّىٰ تَضَعَ الْحَرْبُ أَوْزَارَهَا ۚ ذَٰلِكَ وَلَوْ يَشَاءُ اللَّـهُ لَانتَصَرَ مِنْهُمْ وَلَـٰكِن لِّيَبْلُوَ بَعْضَكُم بِبَعْضٍ ۗ وَالَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّـهِ فَلَن يُضِلَّ أَعْمَالَهُمْ
 इस का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:-
तो जब तुम काफिरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो यहाँ तक कि जब तुम उन्हें ज़ख्मों से चूर कर डालो तो उनकी मुश्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख (कर छोड़ दे) या मुआवेज़ा लेकर, यहाँ तक कि (दुशमन) लड़ाई के हथियार रख दे तो (याद रखो) अगर ख़ुदा चाहता तो (और तरह) उनसे बदला लेता मगर उसने चाहा कि तुम्हारी आज़माइश एक दूसरे से (लड़वा कर) करे और जो लोग ख़ुदा की राह में यहीद किये गए उनकी कारगुज़ारियों को ख़ुदा हरगिज़ अकारत न करेगा 
 इस का दूसरा अनुवाद है:-
अतः जब इनकार करनेवालो से तुम्हारी मुठभेड़ हो तो (उनकी) गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह कुचल दो तो बन्धनों में जकड़ो, फिर बाद में या तो एहसान करो या फ़िदया (अर्थ-दंड) का मामला करो, यहाँ तक कि युद्ध अपने बोझ उतारकर रख दे। यह भली-भाँति समझ लो, यदि अल्लाह चाहे तो स्वयं उनसे निपट ले। किन्तु (उसने या आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे की परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते है उनके कर्म वह कदापि अकारथ न करेगा
 विल्लियम मुइर के अनुसार, यहाँ 'गर्दनें मारना है' का अर्थ गला काटने से है. आज भी जहां इस्लामी दंड व्यवस्था का प्रचलन है, वहाँ जल्लाद तलवार के एक वार से गर्दन को धड से काट देते हैं. इन आयतों से स्पष्ट हो जाता है कि ये कोई अंतर द्वंद्व नहीं है अपितु अन्य सम्प्रदायों को समाप्त करने का अभियान है.
किसी भी प्रकार का युद्ध हो तो धन की आवश्यकता होती है, इसलिए कुरान में जेहाद के लिए धन देने को एक अच्छा कार्य बताया गया है. संभवतः यही कारण है कि आतंकवादियों को कभी धन का अभाव नहीं होता. सुरा ६६ की आयत ११:-
तुम्हें ईमान लाना है अल्लाह और उसके रसूल पर, और जिहाद करना है अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो
शांतिप्रिय आयतें 

अब प्रश्न ये है कि जब इतनी स्पष्टता से जिहाद के लिए उकसाया जा रहा है तो इस्लाम के पक्षधर इसे कैसे छुपाते हैं. इस का एक उदाहरण है कि अभी कुछ माह पूर्व शाह रुख खान (जो इस्लाम को एक 'शांति के सम्प्रदाय' की छवि प्रदान करने के प्रयास करता रहता है) एक इस्लामी चैनल 'पीस टी वी' पर एक कार्यक्रम में उपस्थित हुआ था. वहाँ कुरान की सुरा ५ की आयत ३२ का उल्लेख कर के बताया गया कि इस्लाम 'शांति का सम्प्रदाय' है. कार्यक्रम के सूत्रधार जाकिर नाइक बताते हैं कि कुरान के अनुसार "यदि आप एक व्यक्ति को मारते हैं तो वो ऐसा है मानो आप ने पूरी मानव जाती को मार दिया है".
यदि कुरान में ऐसा है तो ये एक शान्ति का संदेश है और इस्लाम शांति का सम्प्रदाय है. इसे समझने के लिए हम इस पूरी आयत को देखते हैं. सुरा ५, आयत ३२ इस प्रकार है;
مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ
 इस के अनुवाद इस प्रकार हैं:

इसी कारण हमने इसराईल का सन्तान के लिए लिख दिया था कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया। उसने पास हमारे रसूल स्पष्टि प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही है.
फ़ारूक़ ख़ान एवं  अहमद
 इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज्यादतियॉ करते रहे
 फ़ारूक़ ख़ान एवं नदवी 
 पूरी आयत पढ़ कर समझ में आता है कि ये केवल इस्राइल की संतानों, अर्थात यहूदियों के लिए है. दूसरे, कुछ परिस्थितियाँ भी बतायी गयी हैं, जिन में क़त्ल किया जा सकता है, जैसे कि फसाद फैलाने वाले का क़त्ल किया जा सकता है. इस का पूरा आशय अगली आयत से, जो कि टी वी पर नहीं बोली जाती, से स्पष्ट हो जाता है. सुरा ५, आयत ३३:-
إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّـهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ يُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
इस का अनुवाद हैं:
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है
और दूसरा अनुवाद इस प्रकार है:-
जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ते भिड़ते हैं (और एहकाम को नहीं मानते) और फ़साद फैलाने की ग़रज़ से मुल्को (मुल्को) दौड़ते फिरते हैं उनकी सज़ा बस यही है कि (चुन चुनकर) या तो मार डाले जाएं या उन्हें सूली दे दी जाए या उनके हाथ पॉव हेर फेर कर एक तरफ़ का हाथ दूसरी तरफ़ का पॉव काट डाले जाएं या उन्हें (अपने वतन की) सरज़मीन से शहर बदर कर दिया जाए यह रूसवाई तो उनकी दुनिया में हुई और फिर आख़ेरत में तो उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब ही है.
अब समझे. जो एहकाम को नहीं मानते अर्थात जो मुसलमान नहीं हैं, उनके साथ क्या क्या करना है.
यदि आप केवल उतना ही सुनते हैं जो टी वी पर अथवा काफिरों को भ्रमित करने के लिए कहा जाता है तो ये शांति का सम्प्रदाय है. आज काफिरों के पास इतना समय ही नहीं है कि वो अपने धर्म ग्रंथों को पढ़ें फिर अरबी भाषा में लिखी किसी और सम्प्रदाय की पुस्तक को पढने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. खंडित भारत में काफिरों के कर से मदरसों में अबोध बच्चोन को शिक्षा के नाम पर क्या पढाया जा रहा है, उस का ज्ञान यहाँ से हो सकता है. इस का परिणाम क्या होगा ये तो भविष्य में ही पता लगेगा.
इस के अतिरिक्त दो और आयतें हैं जिनका टी वी तथा अन्य माध्यमों पर काफिरों के लिए प्रचार किया जाता है.  ये दोनों आयतें मोहम्मद के जीवन काल के उस खंड की हैं जब वो अभी मक्का में ही रहता था और गिने चुने ही अनुयाई थे. इस समय तक कि आयतों में आक्रामकता प्रखर नहीं हुई थी. कुछ मौलवियों के अनुसार जिहादी आयतों के उपरान्त ये आयतें मान्य नहीं हैं. इन्हें भी देखिये. सुरा २, आयत २५६:-
لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ ۖ قَد تَّبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ ۚ فَمَن يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِن بِاللَّـهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ لَا انفِصَامَ لَهَا ۗ وَاللَّـهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और खुदा ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता है
इस आयत का भी रेखांकित भाग सुनाया जाता है, जिस से ऐसा प्रतीत हो कि इस्लाम सभी सम्प्रदायों को समान देखता है और बलात सम्प्रदाय परिवर्तन में विश्वास नहीं करता.

 सुरा १०९, आयत ६ इस प्रकार है:-
لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِيَ دِينِ
इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन

 जब मोहम्मद मक्का से पलायन कर के मदीना चला गया था तो वहाँ अनुयाइओ की संख्या बढ़  गयी थी. इसके पश्चात  उस ने वहाँ मुसलामानों को जिहाद के लिए प्रेरित करना आरम्भ किया. अगली आयत से ऐसे संकेत मिलते हैं कि कुछ लोग जिहाद नहीं करना चाहते थे. ये है सुरा 47 की आयत 20.
وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُوا لَوْلَا نُزِّلَتْ سُورَةٌ ۖ فَإِذَا أُنزِلَتْ سُورَةٌ مُّحْكَمَةٌ وَذُكِرَ فِيهَا الْقِتَالُ ۙ رَأَيْتَ الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ يَنظُرُونَ إِلَيْكَ نَظَرَ الْمَغْشِيِّ عَلَيْهِ مِنَ الْمَوْتِ ۖ فَأَوْلَىٰ لَهُمْ
इस का अनुवाद इस प्रकार है:-
और मोमिनीन कहते हैं कि (जेहाद के बारे में) कोई सूरा क्यों नहीं नाज़िल होता लेकिन जब कोई साफ़ सरीही मायनों का सूरा नाज़िल हुआ और उसमें जेहाद का बयान हो तो जिन लोगों के दिल में (नेफ़ाक़) का मर्ज़ है तुम उनको देखोगे कि तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखते हैं जैसे किसी पर मौत की बेहोशी (छायी) हो (कि उसकी ऑंखें पथरा जाएं) तो उन पर वाए हो

 इस के उपरान्त कुरान में जिहाद सम्बंधित आयतों की भरमार मिलती है, जिन में से कुछ यहाँ दी  गयी हैं.

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