रविवार, 21 नवंबर 2010

मोहम्मद द्वारा काफिरों का नरसंहार

जब मोहम्मद को यथ्रीब (मदीना का पुराना नाम) से पलायन किये हुए पांच वर्ष हो चुके थे, तब तक वो और उस के मुसलमान अनुयायी मक्का वासियों (कोरिशों) के कुछ कारवां लूट चुके थे तथा उन के कई निवासियों की हत्या कर चुके थे. इस से मक्का वासियों में एक रोष की लहर व्याप्त थी. कुछ ऐसी ही मनोदशा कई और कबीलों की थी जिन में कुछ यहूदी कबीले भी थे. इन सब ने मिल कर, मक्का के मुखिया अबू सुफियान के नेत्रित्व में यथ्रीब पर आक्रमण कर के प्रतिशोध लेने के लिए सेना भेज दी. जब से मोहम्मद यथ्रीब में बसा था, उसने यथ्रीब के दो उपनगरीय यहूदी कबीलों (बानू कैनुका और बानू नज़ीर) तथा एक अरबी कबीले (बानू मुस्तालिक) को वहाँ से खदेड़ कर उन की सम्पति पर अधिकार कर लिया था.
परिणामतः, वहां बचे हुए यहूदी कबीले (बानू कुरैज़ा) में मोहम्मद का भय व्याप्त था. इसलिए जब अबू सुफियान की सेना ने यथ्रीब के निकट डेरा डाला तो संभवतः, उन्होंने मोहम्मद का साथ नहीं दिया और तटस्थ बने रहे. कुछ हदीसों के अनुसार क़ुरैज़ा के निवासी कोरिशों की सहायता कर रहे थे, किन्तु इन पर विश्वास करने से अच्छा है यदि हम अपने प्रमाण कुरान में ही देखें. निम्नलिखित आयतें क़ुरैज़ा की तटस्थता अथवा असक्रिय सहायता अंकित करती हैं. 

कोरिशों की वापसी 

लगभग दो सप्ताह तक दोनों सेनाएं आमने सामने खड़ी रही. अंततः, एक दिन आंधी और तूफ़ान ने कोरिशों के की छावनी तथा खाद्य सामग्री को विनष्ट कर दिया. विवश हो कर कोरिशों को लौटना पड़ा. 

अल्लाह का पैगाम 

जब सभी यथ्रीब निवासी अपने घरों को लौटने लगे तो मोहम्मद के लिए कुरान की आयतें प्रकट होने लगी. इन आयतों के अनुसार अल्लाह ने मुसलामानों की सहायता के लिए ही तूफ़ान भेजा था.
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की उस अनुकम्पा को याद करो जो तुमपर हुई; जबकि सेनाएँ तुमपर चढ़ आई तो हमने उनपर एक हवा भेज दी और ऐसी सेनाएँ भी, जिनको तुमने देखा नहीं। और अल्लाह वह सब कुछ देखता है जो तुम करते हो.
 कुरान सुरा ३३:९
यहूदियों के संबंध में इसी सुरा में आगे कहा गया है:-
और जबकि उनमें से एक गिरोह ने कहा, "ऐ यसरिबवालो, तुम्हारे लिए ठहरने का कोई मौक़ा नहीं। अतः लौट चलो।" और उनका एक गिरोह नबी से यह कहकर (वापस जाने की) अनुमति चाह रहा था कि "हमारे घर असुरक्षित है।" यद्यपि वे असुरक्षित न थे। वे तो बस भागना चाहते थे 
  कुरान सुरा ३३:१३
यद्यपि वे इससे पहले अल्लाह को वचन दे चुके थे कि वे पीठ न फेरेंगे, और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के विषय में तो पूछा जाना ही है  
  कुरान सुरा ३३:१५
अल्लाह तुममें से उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो (युद्ध से) रोकते है और अपने भाइयों से कहते है, "हमारे पास आ जाओ।" और वे लड़ाई में थोड़े ही आते है, (क्योंकि वे) तुम्हारे साथ कृपणता से काम लेते है। अतः जब भय का समय आ जाता है, तो तुम उन्हें देखते हो कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार ताक रहे कि उनकी आँखें चक्कर खा रही है, जैसे किसी व्यक्ति पर मौत की बेहोशी छा रही हो। किन्तु जब भय जाता रहता है तो वे माल के लोभ में तेज़ ज़बाने तुमपर चलाते है। ऐसे लोग ईमान लाए ही नहीं। अतः अल्लाह ने उनके कर्म उनकी जान को लागू कर दिए। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है
  कुरान सुरा ३३:१८-१९

क़ुरैज़ा पर धावा 

इस प्रकार, कथित रूप से, अल्लाह के आदेश पर यथ्रीब की सेना अब बानू क़ुरैज़ा की ओर चल पड़ी. इस सेना में लगभग ३००० मुसलमान थे और ३६ घुड़सवार थे. इन्होने बानू क़ुरैज़ा को घेर लिया जिस से कि उन्हें खाद्य सामग्री न मिल सके. ये घेराव दो - तीन सप्ताह तक रहा. इस पूरे समय, तीरों की वर्षा से कबीले को डराए रखा गया. एक मुसलमान, जो अधिक आगे निकल गया था, एक यहूदी महिला द्वारा चक्की के पत्थर के गिराने से, मारा गया था.

क़ुरैज़ा का समर्पण 

अंततः, भूख और प्यास से बेहाल हो कर  क़ुरैज़ा के निवासियों ने मोहम्मद के पास संदेश भेजा कि वे बस्ती छोड़ कर चले जायेंगे, जिस प्रकार पहले भी दो यहूदी बस्तियां मोहम्मद और उस के मुसलमान साथियों ने खाली करवा ली थी. इन बस्तियों की सारी चल अचल सम्पति मुसलामानों ने आपस में बाँट ली थी.

मोहम्मद का इनकार 

मोहम्मद ने प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि इस बार वो इस से भी बड़ी ग़नीमत (लूट का माल) बटोरने वाला था. 'मरता क्या न करता' की स्थिति में क़ुरैज़ा के निवासियों ने आत्म समर्पण का निश्चय किया और कहा कि बानू ऑस कबीले का मुखिया  'साद  इब्न मुआध' को मध्यस्थता के लिए आग्रह किया. इस कबीले के बानू क़ुरैज़ा से मैत्रीपूर्ण संबंध थे.
सभी २००० निवासियों को बंदी बना लिया गया. पुरुषों के हाथ उनके पीछे बांध दिए गए और उन्हें मोहम्मद बिन असलम (काब का हत्यारा) के अधिकार में, निर्णय आने तक रखा गया. महिलाएं और बच्चों को एक यहूदी से मुस्लिम बने व्यक्ति के अधीन रखा गया. ग़नीमत में १५०० तलवारें, १००० बरछे, ५०० ढालें, ३०० बख्तर के अतिरिक्त वस्त्र और अन्य सामग्री मुसलामानों को प्राप्त हुई. साद इब्न मुआध का निर्णय सभी हदीसों में वर्णित है. एक वर्णन यहाँ पाठकों के लिए प्रस्तुत है.

नरसंहार का निर्णय 

सही बुखारी - खंड ४, पुस्तक ५२, संख्या २८०; अबू सईद अल खुदरी की व्याख्या के अनुसार:-
जब बानू क़ुरैज़ा के निवासी साद का निर्णय मानने स्वीकार कर लिया तो मोहम्मद ने साद को बुलाया. साद एक गढ़े पर सवार, मोहम्मद के पास पहुंचा. जब वो निकट आ गया तो मोहम्मद ने उसे अपने निकट बैठने को कहा और एक मदीना निवासी से कहा,"अपने मुखिया के लिए खड़े हो जाओ". मोहम्मद ने साद से कहा,"ये लोग तुम्हारा निर्णय स्वीकार करने के लिए सहमत हैं". साद ने कहा,
मैं निर्णय देता हूँ कि इन के सभी योधाओं को मृत्यु दंड दिया जाए और इन के बच्चों और पत्नियों को बंदी बना लिया जाए.
मोहम्मद ने टिपण्णी की," ऐ साद, तुमने अल्लाह की इच्छा के अनुरूप ही निर्णय दिया है".

बच्चों का चयन

नरसंहार से बचने वाले बच्चों में से एक के द्वारा हमें मुसलामानों द्वारा बच्चों के चयन की प्रक्रिया का पता लगता है. तफसीर अल तबरी, पुस्तक ३८, संख्या ४३९० के अनुसार, अतैय्या अल कुराज़ी बताता है:
मैं बानू क़ुरैज़ा के बंधकों में था. मोहम्मद के साथियों ने हमारा निरिक्षण किया. जिनके गुप्तांगों पर केश आने लग गए थे, उनकी हत्या कर दी गयी और अन्यों को नहीं मारा गया.
रेहाना

यह निर्णय शाम के समय दिया गया था.  इस निर्णय के पश्चात्, बंधकों को मोहम्मद की निगरानी में ले जाया गया तो उस ने उन में से रेहाना नाम की सुन्दर यहूदी महिला को अपने लिए चुन लिया. पुरुषों को एक विशाल गोदाम में रखा गया. रात्री में यथ्रीब के बाज़ार में एक विशाल खड्डा खोदा गया और अगले दिन प्रातः काल पुरुष बंधकों को ५-६ के झुण्ड में बारी बारी से लाया गया. मोहम्मद द्वारा उन्हें गड्ढे के किनारे पर बैठने का आदेश दिया जाता, जहां उन की गर्दनें काट दी जाती और शवों को गड्ढे में गिरा दिया जाता. यह प्रक्रिया पूरा दिन चली जिस के फलस्वरूप लगभग ८०० यहूदी पुरुषों की हत्या कर दी गयी.

महिला की हत्या 

जिस महिला ने पत्थर से एक मुसलमान की हत्या की थी, उसने मोहम्मद को अपने कृत्य से अवगत करवाया और आग्रह किया कि उसे भी उस के पति की भांति मार दिया जाए. उसे तत्काल मार दिया गया. मोहम्मद की बाल वधु आयेशा (जो इस नरसंहार को देख रही थी) ने उस महिला के विषय में कहा कि उस महिला का हँसता हुआ चेहरा उसे जीवन भर विचलित करता रहा.

ज़हीर की हत्या 

बानू ऑस के निवासी थाबित ने एक वृद्ध यहूदी ज़हीर तथा उस के कुटुंब के लिए मृत्यु दंड से मुक्ति अर्जित कर ली क्योंकि इस वृद्ध ने एक पुराने युद्ध में बानू ऑस के कई व्यक्तियों की जान बचाई थी. ज़हीर ने जब अन्य मुखियों के विषय में पूछा, जिस में हुवाये, काब, ओज्ज़ल के विषय में पूछा. प्रत्येक के विषय में उसे एक ही उत्तर मिला कि वे सब मार दिए गए हैं. तब ज़हीर ने कहा 
यदि वे सब मर गए हैं तो मैं भी एक ऐसे व्यक्ति के अधिकार में जीवित नहीं रहना चाहता जिस ने मेरे सभी प्रियजनों की हत्या कर दी है. ये मेरी तलवार लो, और मुझे भी मार दो ताकि मैं भी उन से जा मिलूँ. 
जब थाबित ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो अली के कहने पर एक अन्य व्यक्ति ने उसे मौत के घात उतार दिया. मोहम्मद को जब उस के अंतिम वाक्य सुनाये गए तो उसने कहा,
वो अपने साथियों से अवश्य मिलेगा, जहन्नुम की आग में 
तत्पश्चात मोहम्मद ने  शवों के ऊपर मिटटी डलवा कर भूमि को समतल करने का आदेश दे दिया. कहते हैं कि मदीना का वो बाज़ार आज भी वहीँ पर है.

रेहाना - मोहम्मद की उपस्री (रखैल)

इस प्रकार ८०० व्यक्तियों को मौत के घात उतारने के पश्चात् मोहम्मद रेहाना नामक उस महिला के पास पहुंचा, जिस के पति सहित अन्य पुरुष सम्बन्धी इसी मोहम्मद ने मार दिए थे और उस से इस्लाम अपनाने और मोहम्मद की पत्नी बनने को कहा. जब रेहाना ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उसे मोहम्मद के हरम में रखा गया, जहां वो मोहम्मद के जीवन काल तक उस की वासना पूर्ती के लिए रखी गयी. इस निरीह महिला की मनः स्थिति का, जिसे अपने पति और अन्य सम्बन्धियों के हत्यारे की वासना पूर्ती पहली रात से ले कर कई वर्षों तक करनी पड़ी हो, हम संभवतः अनुमान ही लगा सकते हैं.

ग़नीमत का बंटवारा 
ग़नीमत अर्थात लूट के माल को चार श्रेणियों में रखा गया; भूमि, अन्य वस्तुएं, पशु एवं गुलाम (महिलाएं और बच्चे). इन सब में से पांचवां भाग मोहम्मद को प्राप्त हुआ. अर्थात लगभग १००० महिलायों और बच्चों में से २०० मोहम्मद के लिए थे. इन में से कुछ महिलायों और लड़कियों को उस ने अपने मित्रों को उपहार स्वरुप भेज दिया. जो बच गए, उन्हें नज्द इलाके के बदूं कबीलों को बेच कर उन के स्थान पर घोड़े तथा अस्त्र शस्त्र ले लिए क्योंकि वो एक सशक्त सेना का निर्माण करना चाहता था.
अन्य सभी सामान ३००० सैनिकों में विभक्त कर दिया गया. महिलाएं सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेच दी गयी. इब्न इस्हाक़ तथा विल्लियम मुइर द्वारा लिखी मोहम्मद की जीवन कथा के अनुसार, ३-४ पुरुषों ने घेराव से पहले ही इस्लाम अपना कर अपनी जान, माल और कुटुंब की रक्षा कर ली थी. 

कुरान में वर्णन 

इस नरसंहार और लूट पाट का स्पष्ट प्रमाण हमें कुरान में ही मिल जाता है. हदीसें तो इन प्रमाणों से भरी पड़ी हैं.
और किताबवालों में सो जिन लोगों ने उसकी सहायता की थी, उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है
  कुरान सुरा ३३:२६-२७
कुरान की शैली में यहूदियों और ईसाईयों को किताबवाले लोग कहा जाता है. यहाँ उल्लेखनीय है कि बानू क़ुरैज़ा पर कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वो मोहम्मद के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे. यदि वे वास्तव में सक्रिय रूप से विरोध करते तो कोरिशों ने जब आक्रमण किया था, उस समय बानू क़ुरैज़ा मदीना पर पीछे से आक्रमण कर के मोहम्मद को पराजित करने में कोरिशों को विजय दिलवा सकते थे.

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