अस्मा बिन्त मरवान - ६२४
जब मदीना वासियों ने मोहम्मद को अपने नगर में अतिथि की भांति आदर सत्कार से संरक्षण दिया हुआ था, कुछ निवासी मोहम्मद ओर इस्लाम से प्रसन्न नहीं थे. ऐसी ही एक निवासी थी अस्मा. अस्मा इस्लाम को नापसंद करती थी और इसीलिए उसने अपने पूर्वजों की मूर्तिपूजा के पद्दति (जिसे इस्लाम सबसे घोर अपराध कहता है) को नहीं त्यागा था. वो ऑस नामक कबीले के निवासी मरवान की बेटी थी जिसे कविता लिखने में रूचि थी. सन ६२४ में कविता अपने भाव व्यक्त करने के गिने चुने माध्यमों में से एक था.
अस्मा ने एक कविता रची, जिस में उस ने खेद व्यक्त किया कि उस के नगर वासी एक अनजाने व्यक्ति का स्वागत और विश्वास कर रहे थे, जिसने उन्हीके मुखिया की हत्या की थी. ये पंक्तियाँ धीरे धीरे अन्य मूर्तिपूजकों में भी प्रचलित हो गयी और मुसलामानों तक पहुँच गयीं. मुसलमान इस पर क्रोधित हो गए और उन में से एक ओमीर नामक नेत्रहीन मुसलमान (कुछ के अनुसार अस्मा का भूतपूर्व पति) अत्यंत उत्साहित हो गया और उस ने प्रण किया कि वो अस्मा की हत्या करेगा. वो भी ऑस कबीले का ही निवासी था. एक रात वो चुपके से अस्मा के घर में घुस गया. उसने टटोल कर अस्मा के दूध मुहें बच्चे को अलग किया और अपनी तलवार अस्मा के हृदय में इतनी शक्ति से घोंप दी कि वह चारपाई के साथ ही बिंध गयी.
अगली प्रातः जब वो मस्जिद में पहुंचा तो मोहम्मद ने उस से पूछा "क्या तुमने मरवान की बेटी की हत्या कर दी है?" ओमीर ने उत्तर दिया,"हां, परन्तु यह बताएं कि इस में कोई घबराने वाली बात तो नहीं है?" मोहम्मद ने उत्तर दिया,"नहीं, उस के लिए तो कोई दो बकरियां भी आपस में नहीं भिड़ेंगी." फिर वो मस्जिद में एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुए कहा,"यदि तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखना चाहते हो जिस ने अल्लाह और उस के नबी की मदद की है तो इसे देखो".
ये सुन कर ओमर ने कहा,"क्या, ये तो अँधा ओमीर है". मोहम्मद ने उत्तर दिया,"इसे अँधा मत कहो, बल्कि कहो ओमीर बशीर (देखने वाला)".
जब वो हत्यारा वापिस अपने घर जा रहा था तो अस्मा के घर के पास से निकला जहां उसके बेटे अस्मा को दफना रहे थे. उन्होंने ओमीर से कहा कि उसी ने उन की माँ की हत्या की है. ओमीर, जो अब निडर हो चुका था ने प्रत्युतर में कहा कि उसीने हत्या की है और यदि उन में से किसी ने भी वैसा कोई कृत्या किया तो वो उन के पूरे वंश का नाश कर देगा.
इस धमकी का अपेक्षित परिणाम हुआ. धीरे धीरे पूरे कबीले ने इस्लाम संप्रदाय अपना लिया. मृत्यु से बचने का यही एक उपाय रह गया लगता था.
स्त्रोत - इब्न इस्हाक़ पृष्ठ -६७५/९९५, The life of Mahomet - William Muir pp 232
अबू अफाक
इस हत्या के कुछ ही सप्ताह पश्चात् ऐसा ही एक और वध इस्लाम के नाम पर और मोहम्मद के आदेश से किया गया. अबू अफाक नामक एक यहूदी भी अस्मा की ही भांति अपने पूर्वजों के संप्रदाय और पद्दति को पसंद करता था, इसलिए इस्लाम का समर्थक नहीं था. उसने भी कुछ पंक्तियाँ लिखी जो मुसलामानों को पसंद नहीं आयी. वो एक वयोवृद्ध था (कुछ के अनुसार १०० वर्ष से अधिक आयु), और बनी अम्र नामक कबीले का मूल निवासी था.
एक दिन मोहम्मद ने अपने अनुयायिओं से कहा," कौन इस विनाशकारी व्यक्ति से मेरा पीछा छुड़ाएगा"? कुछ ही दिनों के उपरान्त एक मुसलमान सलीम बिन उमैर को अवसर मिल गया. अबू अफाक अपने बरामदे में सो रहा था. मुसलमान ने अवसर देख कर सोये हुए वृद्ध की तलवार से हत्या कर दी. वृद्ध की मृत्यु से पूर्व की चीख पुकार ने आस पास के लोगों को आकृष्ट किया, किन्तु जब तक वे पहुँचते, हत्यारा जा चुका था.
स्त्रोत: इब्न इस्हाक़ पृष्ठ ६७५/९९५, The life of Mahomet - William Muir pp 233
काब बिन अशरफ
काब बिन अशरफ बनी नाधिर नामक कबीले की एक यहूदी महिला का बेटा था. वो कुछ समय के लिए इस्लाम संप्रदाय का समर्थक रहा, किन्तु जब मोहम्मद ने किबला (नमाज़ की दिशा) जेरुसलेम से उलट कर काबा की ओर कर दिया तो इस्लाम से पृथक हो गया.
वो कोरिशों की बद्र के झगडे में हुई पराजय से दुखी था. वो मक्का गया और कोरिशों में, अपनी कवितायों द्वारा, जोश भरने लगा कि वो बद्र में दफ़न अपने वीरों की मृत्यु का प्रतिशोध लें.
जब वो वापिस मदीना पहुंचा तो मुसलामानों ने उस पर आरोप लगाया कि वो उन की महिलायों के सन्दर्भ में अशोभनीय पंक्तियाँ लिखता है. मोहम्मद इस प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा इस्लाम के विरोध से चिंतित था. एक दिन उस ने उच्च स्वर में नमाज़ अदा करते हुए कहा," अल्लाह मुझे अशरफ के बेटे और उसकी कवितायों और विद्रोह से किसी भी तरह निजात दिलायो". पहले कि भांति, अब भी उस ने अपने किसी अनुयायी को सीधे संबोधित करने की अपेक्षा सभी से कहा,"कौन मुझे अशरफ के बेटे से निजात दिलाएगा, जो मुझे परेशान करता है?" मोहम्मद बिन असलम आगे बढ़ा और बोला,"मैं उस की हत्या करूँगा".
मोहम्मद ने अपनी सहमती जताते हुए उसे कहा कि वो अपने कबीले (बनी ऑस) के मुखिया साद बिन मुआध से परामर्श कर ले. साद बिन मुआध के सुझाने पर उस ने अपने कबीले के चार और व्यक्तियों को अपने साथ ले लिया और मोहम्मद से अपनी योजना के लिए अनुमति लेने के लिए पहुंचा. विशेष अनुमति इस लिए लेनी थी क्योंकि योजना के अनुसार उन्होंने यह ढोंग करना था कि वो मोहम्मद को नापसंद करते हैं ताकि काब का विश्वास जीत सकें. इस गिरोह में अबू नैला भी था, जो कि काब का मुंह बोला भाई था और काब उस पर संदेह नहीं करता था.
योजना के अनुसार अबू नैला ने काब के पास जा कर दुःख जताया कि मोहम्मद के कारण कई लोगों को समस्या हो रही है. आस पास के अरबी कबीले मदीना के शत्रु बनाते जा रहे हैं, जिस से कि व्यापर के लिए जाना और जीविका अर्जित करना कठिन हो गया है. जैसी कि अपेक्षा थी, काब बातों में फंस गया. अबू नैला ने काब से कुछ खाद्य सामग्री (मक्की व खजूरें) उधार मांगी, जिस के लिए काब ने उस से कुछ बदले में रखने को कहा. योजना के अनुसार, अबू ने अपने और साथियों के शस्त्र देना स्वीकार कर लिया. अब वे काब की शंका जगाये बिना उस के पास शस्त्र ला सकते थे.
उन्होंने शाम के समय मोहम्मद के घर जा कर स्थिति से अवगत करवाया. वो चांदनी रात थी. मोहम्मद उन के साथ मदीना के बाहर तक आया और बोला,"जाओ, अल्लाह की रहमत तुम पर हो और तुम्हे ऊपर से मदद मिले".
काब का घर मदीना से लगभग २-३ मील बाहर एक यहूदियों की बस्ती के पास था. जब वे पहुंचे तो वो सो रहा था. उन्होंने काब के घर के बाहर से उसे पुकारा. काब जब उठ कर जाने लगा तो उस की नवविवाहित पत्नी ने कहा,"शत्रुता के वातावरण में रात के समय बाहर जाना उचित नहीं है. मुझे इन के स्वर में बुराई (अथवा रक्त) सुनाई दे रहा है". काब ने चेतावनी को अनसुना करते हुए कहा कि ये तो मेरा भाई अबू नैला है, यदि एक योधा को पुकारा जाये तो भी उसे जाना ही चाहिए. इतना कह कर वो बाहर निकल आया और उन से बातचीत करने लगा. अबू ने कहा कि थोड़ा आगे चलते हैं और उस के सर में हाथ फिराते हुए उस के केशों में से आने वाली महक की प्रशंसा करने लगा. काब ने उत्तर दिया कि ये तो उस की पत्नी की महक है.
फिर अचानक ही उस के बालों को खींचते हुए चिल्लाया,"अल्लाह के शत्रु को काट दो". काब ने वीरता से संघर्ष किया और उन के पास होने से उन की तलवारें असफल सिद्ध हो रही थी. फिर एक को अपने छुरे का ध्यान आया. उसने छुरा उस के पेट में घोंप दिया और पेट को काटते हुए उस के गुप्तांगो तक ले गया. इस प्रकार काब वीर गति को प्राप्त हुआ.
उन्हें मोहम्मद के पास लौटने में अधिक समय लगा क्योंकि उन का एक साथी भी घायल हो गया था. मोहम्मद उस समय नमाज़ कर रहा था और उन्हें देख कर उन के पास आया. उन्होंने हत्या की सूचना मोहम्मद को दी. मोहम्मद ने घायल मुसलमान के घाव पर थूका (मुसलामानों के अनुसार मोहम्मद की थूक भी चमत्कारी थी) और उन्हें जाने को कहा. वे अपने अपने घर चले गए.
स्त्रोत - सही बुखारी; खंड ५, पुस्तक ५९, संख्या ३६९
स्त्रोत - इब्न इस्हाक़ पृष्ठ ३६४-३६९
इस्लाम के सम्मानित इतिहासकार तबरी के अनुसार ये पाँचों व्यक्ति हत्या के पश्चात् काब का सर काट कर लाये थे जिसे मोहम्मद को भेंट स्वरुप दिया गया था.
इस की पुष्टि विल्लियम मुइर द्वारा लिखी मोहम्मद की जीवन कथा से भी होती है. वे बताते हैं:
जब उस का पेट कटा तो काब ने एक हृदय विदारक चीख मारी जो रात के सन्नाटे में दूर तक सुनाई दी. कई घरों में प्रकाश हो उठा. हत्यारे पीछा किये जाने के डर से वहाँ से अपने घायल साथी को ले कर भाग खड़े हुए. जब वे कब्रिस्तान के पास सुरक्षित पहुँच गए तो उन्होंने तकबीर लगाई 'अल्लाह हू अकबर'. जिसे मस्जिद में मोहम्मद ने सुन लिया. वो मस्जिद के द्वार पर उन से मिला और बोला,"स्वागत है, तुम्हारे चेहरे फ़तेह से चमकते लग रहे हैं. उन्होंने उत्तर दिया,"आपका भी ऐ नबी" और कटा हुआ सर मोहम्मद के पाँव में गिरा दिया.
The life of Mahomet - pp 239-240
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