शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

मोहम्मद द्वारा राजनैतिक हत्याएं

काब बिन अशरफ 

सन ६२४

इस वर्ष मोहम्मद और मुसलामानों ने कोई विशेष लड़ाई नहीं की थी किन्तु जुलाई के महीने में मोहम्मद ने एक और बर्बरतापूर्ण और नीच कृत्य किया था, जिस प्रकार के कृत्यों से मोहम्मद की जीवन गाथा भरी पड़ी है.
 'काब बिन अशरफ' जो एक कवि था, मदीना के निकट ही निवास करता था. बद्र की लड़ाई के उपरान्त जब मोहम्मद ने जायेद और अब्दुल्लाह  को अपने जीतने की सूचना देने के लिए मदीना भेजा था तो वो सूचना पाने वालों में 'काब' और उसकी माता भी थे. अपनी माता की भाँती, काब भी यहूदी मत का अनुयाई था. इस्लाम के प्रारम्भिक दिनों में मोहम्मद यहूदियों को लुभाने के लिए जेरुसलेम की और मुंह कर के नमाज़ करता था. इन दिनों काब भी मोहम्मद के गिरोह के साथ हुआ करता था. किन्तु जब मोहम्मद ने क़िबला (नमाज़ की दिशा) को जेरुसलेम के स्थान पर काबा मंदिर की और कर दिया तो काब उन से पृथक हो गया था. काबा के मुख्य मूर्तिपूजकों की हत्या की सूचना सुन कर 'काब' को इस पर विश्वास नहीं हुआ. उसने आश्चर्य व्यक्त किया,"क्या ये जो कह रहे हैं वो सत्य है? क्या मोहम्मद ने उन सभी की हत्या कर दी है, जिनके नाम ये ले रहे हैं? यदि ये सत्य है तो जीवित रहने से मर जाना श्रेयस्कर होगा क्योंकि ये तो इस क्षेत्र के मुख्या व्यक्ति थे".
तत्पश्चात काब मक्का चला गया और वहां के निवासियों के साथ इन हत्याओं पर शोक  व्यक्त किया. वहाँ उसने दिवंगत वीरों की श्रद्धांजलि में कुछ कवितायेँ भी रचीं. कुछ इस्लामी इतिहासकारों का कथन है कि काब ने एक मुसलमान महिला के विषय में एक अभद्र कविता रची थी जिससे मोहम्मद उस पर क्रोधित था.



मोहम्मद को चिंता होने लगी कि यदि इस प्रभावशाली व्यक्ति को इस शैली से अपने विचार प्रकट करने से रोका नहीं गया तो उसका नेतृत्त्व प्रभावी नहीं रहेगा. मोहम्मद ने अस्मा नामक कवयित्री की हत्या करवाने के लिए भी किसी व्यक्ति विशेष को निर्देश नहीं दिए थे, उसी शैली में, किसी एक को संबोधित न करते हुए मोहम्मद ने उच्च स्वर में कहा,
या अल्लाह! अल अशरफ के बेटे से, जैसे भी हो, मुझे निजात दिलायो. वो मेरा खुला विरोधी है.
तत्पश्चात उसने अपने मुसलामानों से संबोधित होते हुए पूछा: 
कौन मुझे अल अशरफ के बेटे से मुक्ति दिलाएगा. वो मुझे झल्ला रहा है.
ये सुनते ही मोहम्मद बिन मसलमा ने प्रतिक्रिया दी: मैं ये कार्य करूंगा. ऐ अल्लाह के पैगम्बर! मैं उसकी हत्या कर दूंगा.
मोहम्मद बिन मसलमा ने निश्चय तो कर लिया किन्तु तीन दिन तक उसे हत्या का अवसर नहीं मिला. जब उसे मोहम्मद ने बुलवाया तो उसने मोहम्मद से कहा कि हत्या करने के लिए उसने एक योजना बनाई है. इस योजना के अंतर्गत वो काब के पास जा कर, उसे कपट से मारने के लिए, उससे मित्रतापूर्ण व्यवहार करेगा और ऐसा प्रपंच करेगा कि वो पैगम्बर से अप्रसन्न है. मोहम्मद ने उससे कहा:
जो कहना चाहो कह देना. तुम्हें खुली छूट है.
मोहम्मद ने उसे 'बानू ऑस' कबीले के मुखिया साद बिन मोआध की सहायता लेने के लिए भी कहा. साद बिन मोआध ने अपने कबीले के चार युवक उसकी सहायता के लिए उसके साथ भेज दिए. अपनी धूर्तता को कार्यान्वित करने के लिए उन्होंने काब के मुंह बोले भाई अबू नैला को अपने साथ मिला लिया और उसे काब के पास भेजा.
अबू नैला ने काब का विश्वास जीतने के लिए उससे कहा कि वो मुसलामानों के मदीना में बसने से खिन्न है क्योंकि मोहम्मद के कारण सभी अरबवासी मदीना के शत्रु हो गए हैं. इससे मदीनावासियों का कहीं भी जाना सुरक्षित नहीं है. काब ने उस पर विश्वास कर लिया. अबू नैला को जब ये आभास हो गया कि उसने काब का विश्वास जीत लिया है तो उसने कहा कि वो अपने कुछ साथियों के लिए खाद्य सामग्री ऋण के रूप में लेना चाहता है. जब काब ने सामग्री के लिए किसी प्रत्याभूति (गारंटी) की मांग की तो अबू नैला ने उसे कहा कि वो और उसके मित्र, प्रत्याभूति के रूप में अपने शस्त्र दे देंगे तो काब ने इसे स्वीकार कर लिया. हत्यारों की योजना सफल हो गयी थी क्योंकि अब वो काब के निकट, बिना उसे आशंकित किये, शस्त्र ला सकते थे. लेन देन के लिए साँयकाल तय कर के अबू वहां से मोहम्मद के यहाँ पहुंचा.
साँयकाल सभी हत्यारे मोहम्मद के निवास पर एकत्रित हुए और वहाँ से हत्या के लिए चले. ये एक चांदनी रात थी और मोहम्मद उनके साथ मदीना की सीमा तक आया. यहाँ स्थित मुसलामानों के कब्रिस्तान से जब वो निकले तो मोहम्मद ने उन्हें शुभ कामना देते हुए कहा: 
जाओ!अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा!
काब का घर मदीना नगर से लगभग चार कोस दूर एक यहूदी बस्ती के निकट था. जब वो अबू के निवास पर पहुंचे तो वो विश्राम करने लगा था. अबू नैला ने जब उसे पुकारा तो काब की नवविवाहिता पत्नी ने रोकते हुए बाहर न जाने का आग्रह किया. काब ने अपना वस्त्र अपनी पत्नी के हाथ से खींचते हुए, विनोद भरे स्वर में कहा,"ये तो मेरा भाई अबू नैला है, यदि किसी योद्धा को कोई पुकारे वो तो तब भी जाता है". बाहर आ कर, आगंतुकों के हाथों में शस्त्र देख कर उसे अनिष्ट की आशंका नहीं हुई क्योंकि वो तो झांसे में आ चुका था. हत्यारे उससे इधर उधर की बातें करते हुए थोड़ा दूर ले गए. राह में अबू नैला उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोला कि उसके बालों की सुगंध आकर्षक है. काब ने उत्तर में कहा कि ये तो उसकी पत्नी की सुगंध है. कपटी अबू ने पुनः हाथ फेरा तो उसके बालों को पकड़ लिया और उसे भूमि पर पटक कर चिल्लाया ! 
मारो इसे! अल्लाह के दुश्मन को मार दो! 
सभी हत्यारों ने अपने खड़ग से काब पर प्रहार किया. काब, मोहम्मद बिन मसलमा के निकट था इसलिए उसकी लम्बी खड़ग कारगर नहीं हो रही थी. उसने अपना छुरा निकाला और उसे पेट से गुप्तांगों तक काट दिया. उसकी हृदयविदारक चीख सुन कर सभी निकटवर्ती यहूदी उस और भागे किन्तु तब तक हत्यारे मृत कवि का सर काट कर ले गए थे.
भागते हुए जब वो कब्रिस्तान तक पहुंचे तो उन्होंने विख्यात इस्लामी तकबीर बोली :
अल्लाहु अकबर! 
इसे सुनते ही मोहम्मद समझ गया कि षड्यंत्र सफल हो गया है. वो उन्हें मस्जिद के द्वार पर ही मिल गया और उन्हें बोला: 
खुशामदीद! तुम्हारे रुख से फतह की रौशनी झलक रही है.
हत्यारों ने उत्तर में कहा: 'ये तो आप की फतह है' और काब का सर मोहम्मद के पैरों में दाल दिया. मोहम्मद ने, एक हत्यारा जो हमले में अपने ही साथियों की खड़ग से घायल हो गया था, सांत्वना देते हुए कहा कि यह फतह तो 'अल्लाह का करम' है.


ये घटना लगभग १४०० वर्ष पुरानी है किन्तु उस समय भी मोहम्मद के इस सम्प्रदाय में कितनी क्रूरता और कट्टरता थी ये अनुमान लगाया जा सकता है. 
सन १९४६ में भारत के बंगाल राज्य में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों नोआखाली एवं टिप्पेराह में जब दंगे हुए थे तो मुसलामानों ने हिन्दुओं के नेता राजेन्द्र लाल रॉय का सर काट कर अपने नेता गुलाम सरोवर (जो कि मुस्लिम लीग का भूतपूर्व विधायक था) को एक चांदी की तश्तरी में सजा कर भेंट किया था. और उनकी दो युवा पुत्रियों को लूट के माल के रूप में गुलाम सरोवर के दो गुंडों को भेंट किया गया था.


स्त्रोत : इब्न इस्हाक़ कृत 'सीरत रसूल अल्लाह', विलियम मुइर कृत 'लाइफ ऑफ मोहम्मद' एवं अल तबरी कृत 'मोहम्मद की जीवनी'

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