शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

बद्र की लड़ाई - १

सन ६२४, जनवरी - मार्च

इस समय विश्व में लगभग ५०० मुसलमान थे क्योंकि इस्लाम एक नया सम्प्रदाय था. आज से लगभग १४ शताब्दियों पूर्व आज के साउदी अरब में स्थित एक छोटे से स्थान पर एक लड़ाई लड़ी गयी थी, जिसका परिणाम यदि भिन्न हुआ होता तो आज विश्व के मानचित्र पर कोई इस्लामी राष्ट्र न होता और न ही भारत से काट कर अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं बंगलादेश बना होता. 
ये लड़ाई लड़ी गयी थी मक्का एवं मदीना के बीच स्थित बद्र नामक स्थान पर. मोहम्मद की जीवनी लिखने वाले लेखक इस एक महत्वपूर्ण घटना मानते हैं. इस महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इस में भाग लेने वाले प्रत्येक मुसलमान का नाम तथा इस से जुड़ी छोटी छोटी बातें भी इस्लामी इतिहासकारों ने सहेज रखी हैं.



चोरी छिपे सूचना प्राप्त करना

लगभग तीन माह पूर्व मोहम्मद ने अपने साथियों के साथ मक्का से आने वाले कारवां को लूटने के लिए अभियान किया था, अब उस कारवाँ के लौटने का समय हो चला था. इस बार मोहम्मद इसे पकड़ने के लिए अधिक सावधान था. उसने अपने दो साथियों को कारवाँ की जानकारी लेने के लिए आगे भेज दिया. ये दोनों इस व्यापार मार्ग में पड़ने वाले एक पड़ाव 'अल हौरा' पहुँच गए. उन्हें 'जुहैना' नामक काबिले के वृद्ध मुखिया ने छिपा कर रखा, इस सेवा के लिए बाद में मोहम्मद ने उसके परिजनों को पारितोषिक भी दिया था. कारवाँ की सूचना मिलते ही उन्होंने जा कर मोहम्मद को उसके आगमन की सूचना देनी थी. इसके अतिरिक्त, मोहम्मद ने राह में पड़ने वाले कबीलों को अपने साथ मिला लिया. जो मिलने के इच्छुक नहीं थे, उन्हें उदासीन रहने के लिए कहा गया ताकि वो मक्का वासियों का सहयोग न करें.

अबू सुफियान को भनक

अपने प्रारम्भिक दिनों में मोहम्मद अपनी चाल छिपाने में अधिक कुशल नहीं था. परिणामतः कारवाँ के मुखिया 'अबू सुफियान' को मोहम्मद की मंशा का भान मिल गया. अभी वो सीरिया में ही था, जहां से उसने 'दमदम' नामक व्यक्ति को मक्का की और इस सन्देश के साथ रवाना कर दिया कि वो सशस्त्र टुकड़ी ले कर कारवाँ की सुरक्षा का प्रबंध करें. स्वयं वो अपने मार्ग से दिशा परिवर्तित कर अधिक गति से चल पड़ा. संभवतः उसे मोहम्मद के आक्रमण की सूचना किसी मदीनावासी ने दी थी.

मोहम्मद द्वारा कूच करने का आदेश

इस शंका से कि कहीं पहले की भाँती कारवाँ हाथ से निकल न जाए, मोहम्मद ने गुप्तचरों की प्रतीक्षा करने की बनिस्पत चलने का निर्णय कर लिया. उसने अपने साथियों को बुलाया और उनसे कहा," देखो कुरैशियों का एक वैभवशाली कारवाँ आ रहा है. चलो उस पर आक्रमण करें; संभवतः अल्लाह हमें वो वैभव प्रदान कर ही दे". लूट के माल (जिसे कुरआन में गनीमत अथवा अन्फाल कहा जाता है) के लोभ में केवल मुसलमान ही नहीं अपितु बहुत से मदीनावासी भी तत्पर हो गए. 
मोहम्मद का साथ देने वालों अथवा इस्लाम धारण करने वालों का उद्देश्य इन दो घटनाओं से समझा जा सकता है.
१. मोहम्मद ने जब दो मदीनावासियों को, जो अभी मुसलमान नहीं बने थे चलते हुए देखा तो उसने उन्हें अपने निकट बुला कर चलने का उद्देश्य पूछा. उन का उत्तर था कि हमारे नगरवासियों ने तुम्हें संरक्षण दिया है इसलिए तुम हमारे साथी हो; इसलिए हम अपने साथियों के साथ लूट का माल लेने चल रहे हैं. मोहम्मद ने उन्हें कहा ' मेरे साथ केवल वाही जायेंगे जो दीन (दीन तथा ईमान का अर्थ है इस्लाम) वाले हैं. उन्होंने चलने का हठ करते हुए कहा कि वो अच्छे लड़ाके हैं इसलिए साथ चलेंगे और केवल अन्फाल ले कर चले आयेंगे. किन्तु मोहम्मद नहीं माना. उसने कहा 'ईमान लाओगे तभी लड़ोगे'. मोहम्मद के हठ को देख कर उन्होंने मोहम्मद को पैगम्बर मान लिया और 'ईमानदार' बन गए. इस प्रकार वो लड़ने के लिए गए और केवल बद्र में ही नहीं बल्कि कई अन्य अभियानों में जाने माने लुटेरे बने.
२. मोहम्मद और साथियों के मदीना लौटने पर एक मदीनावासी ने टिपण्णी की थी कि:
यदि मैं भी पैगम्बर के साथ गया होता तो मैंने बहुत सा माल पाया होता.

मदीना से कूच

'अबू लुबाब' को मदीना की सुरक्षा के लिए वहीं रुकने को और एक अन्य मदीना वासी को 'कोबा' एवं ऊपरी मदीना की सुरक्षा के लिए नियुक्त करके, रविवार के दिन, मोहम्मद ने अपने साथियों के साथ लड़ाई के लिए कूच किया. नगर से बाहर निकल कर मक्का जाने वाले मार्ग पर उसने अपनी टुकड़ी का निरीक्षण किया और कुछ जो अभी तरुण ही थे, उन्हें मदीना लौटा दिया. अन्य सभी, जिनकी संख्या ३०५ थी, आगे बढ़ गए. इनमें ८० वो थे जिन्होंने मोहम्मद के साथ मक्का से पलायन किया था और अन्य 'ऑस' तथा 'खज़राज' से थे. सवारियों के रूप में इन के पास ७० ऊंट और दो अश्व थे. वे क्रमवार इन पर सवारी करते अथवा चलते थे.

मोहम्मद के गुप्तचर

 दो तीन दिन की यात्रा के पश्चात 'अल सफ्र' नामक स्थान पर रुकते हुए, मोहम्मद ने दो साथियों को सीरिया के रास्ते में एक यात्रियों के रुकने वाले स्थान पर 'अबू सुफियान' के कारवाँ की सूचना लाने के लिए कहा. उन्हें यह पता लगाना था कि क्या कारवाँ के वहाँ पहुँचने के लिए प्रबंध किये जा रहे हैं अथवा नहीं. जब ये दोनों वहां पहुंचे तो उन्होंने वहाँ पानी के स्त्रोत के निकट कुछ महिलायों को वार्ता करते हुए सुना कि कारवाँ एक दो दिन में पहुँचने वाला है. ये सूचना पाते ही वे मोहम्मद के पास पलट आये.


अबू सुफियान सचेत

इधर अबू सुफियान बद्र के निकट आते आते सचेत होता जा रहा था क्योंकि उसे आभास हो रहा था कि अब वो ऐसे क्षेत्र में था जहां उसे लूटा जा सकता था. खतरे को भांपने के लिए वो कारवाँ से आगे निकल कर बद्र पहुँच गया. उसे 'बनू जोहीना' कबीले के मुखिया ने बताया कि उन्होंने किसी संदिग्ध व्यकी को यहाँ नहीं देखा है, केवल दो पुरुष आये थे जो कूंएं के निकट अपने ऊंठों सहित आये थे. उन्होंने जल ग्रहण करने के उपरान्त कुछ समय विश्राम किया और चले गए थे. अबू सुफियान ने कूंएं पर पहुँच कर वहां का निरीक्षण किया. उसने वहाँ पर पड़े अवशेषों को देख कर मदीना की खजूरों के विशेष छोटे बीज पहचान लिए और बोला 'ये यथ्रीब के ऊंट थे! और वो मोहम्मद के साथी थे!' यह जानते ही वो कारवाँ के निकट पहुंचा और सीधे मार्ग को छोड़, दायीं और मुड़ गया. यह रास्ता समुद्र के किनारे किनारे चलता था. कारवाँ दिन रात, बिना किसी विश्राम के चलता रहा, जब तक कि उन्हें विशवास नहीं हो गया कि अब वो दस्यु दल की पहुँच से परे हैं. जब अबू सुफियान को सूचना मिली कि मक्का से उसकी सहायता करने के लिए एक सशस्त्र दल रवाना हुआ है तो उसने उन्हें सन्देश भिजवा दिया कि सब सुरक्षित है और वे मक्का लौट जाएँ.

मक्का में चिंता

दस बारह दिन पूर्व, जब अबू सुफियान का भेजा पहला दूत दमदम मोहम्मद द्वारा कारवां पर होने वाली संभावित लूट की सूचना ले कर पहुंचा तो उसने मक्का नगर के मुख्य मार्ग पर पहुँचते ही अपने ऊंट को काबा मंदिर के समक्ष खुले स्थान पर घुटनों के बल बैठा दिया. उसने ऊंट के कान और नाक काट दिए और अपने कुरते को उतार कर आगे पीछे लहराने लगा. इस प्रकार अपने सन्देश की गंभीरता दर्शाते हुए चिल्लाते हुए बोला 'कुरैशियो! कुरैशियो! मोहम्मद तुम्हारे कारवां के पीछे है. मदद! मदद!' पूरा नगर सकते में आ गया क्योंकि ये इस वर्ष का सबसे संपन्न कारवाँ था और लगभग प्रत्येक मक्कावासी ने इसमें निवेश किया था. इस कारवाँ का मूल्य ५०,००० स्वर्ण मुद्राएँ आँका गया. तुरंत, कारवाँ सुरक्षित करने के लिए कूच करने का निर्णय किया गया. उत्तेजना में नगर में चर्चा होने लगी 'क्या मोहम्मद सोचता है कि जिस प्रकार नख्ल में अम्र की हत्या कर दी, वो फिर से सफल हो जाएगा'! वो लगभग दो माह पूर्व धोखे से मोहम्मद के साथियों द्वारा मारे गए अम्र के विषय में कहने लगे. 'कभी नहीं! इस बार वो सफल नहीं होगा.'

अबू सुफियान का दूसरा सन्देश 

नगर का प्रत्येक व्यक्ति सेना के साथ चलने को तत्पर था. सभी की इच्छा मुसलामानों को कठोर उत्तर देने की थी. मोहम्मद का चाचा 'अबू लहब', एवं अन्य ऐसे पुरुष जो स्वयं नहीं जा सकते थे, उन्होंने अपने स्थान पर अपने किसी प्रतिनिधि को भेजा. मक्का वासियों को भय सताने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि जब वे इस लड़ाई के लिए गए हों तो निकटवर्ती कबीला 'बानू बकर' उनकी अनुपस्थिति में मक्का पर चढ़ाई कर दे. एक अन्य शक्तिशाली काबिले के मुखिया ने, जो दोनों दलों का मित्र था, ने 'बानू बकर' की और से मक्का पर आक्रमण न करने का आश्वासन दिया तो मक्का वासी निश्चिन्त हो गए. दो तीन दिन में ही, लगभग उसी समय जब मोहम्मद मदीना से निकला था, मक्का से भी इस छोटी सी सेना ने कूच कर दिया. मक्कावासियों की महिलायें, मनोबल ऊंचा रखने के लिए, उनके साथ गाते बजाते चल रही थीं. 
मार्ग में, 'अल जोह्फा' नामक स्थान पर, उन्हें अबू सुफियान का भेजा हुआ दूसरा दूत मिला जिसने उन्हें सूचित किया कि कारवाँ सुरक्षित है और वे लौट जाएँ.

कुरैशियों की दुविधा

इस समाचार से जहां एक और मक्का वासियों में सुख की लहर दौड़ गयी, वहीं इस चर्चा ने बल पकड़ लिया कि मक्का लौटा जाए अथवा आगे बढ़ा जाए. लौट चलने वालों का मत था कि मोहम्मद एवं अन्य मुसलमान उन्हीं के सम्बन्धी हैं इसलिए उन्हें हानि न पहुंचाई जाए. अपने सम्बन्धियों से युद्ध करके अथवा उनका रक्त बहा कर जीवन नीरस हो जाएगा. दूसरे दल का मत था कि बद्र में जा कर तीन दिन का विश्राम किया जाए एवं कुछ नाच गाना किया जाए. इस से पूरे अरब में हमारी धाक होगी. यदि यहीं से लौट गए तो संभव है कि हमें कायर समझा जाए. कुरैशियों के मन में अभी भी नख्ल में की गयी अम्र की क्रूर हत्या की पीड़ा थी इसलिए वो सीरिया की और जाने वाले मार्ग पर बद्र की और बढ़ने लगे. दो काबिले, 'बानू जोहरा' एवं 'बानू आदि' मक्का लौट गए.

मोहम्मद को कुरैशियों की सूचना

उधर मोहम्मद तीव्र गति से बद्र की और बढ़ रहा था, जहां उसकी सूचना के अनुसार, उसे एक संपन्न कारवाँ मिलने की आशा थी. कहा जाता है कि, राह में 'अर रुहा' नामक घाटी में एक कूएं से मोहम्मद ने जल पिया तो घाटी को धन्यवाद दिया. इसे आज भी हज करने वाले मुसलामानों को बताया जाता है. अगले दिन जब बद्र की दूरी एक दिन से भी कम रह गयी थी, कुछ यात्रियों ने उन्हें मक्कावासियों की सूचना दी. मोहम्मद ने अपने साथियों को परस्पर विचार करने के लिए कहा. सभी का एक सा विचार था और सभी उत्तेजित थे. मोहम्मद के विशेष मित्रों 'अबू बकर' एवं 'उमर' का मत था कि सीधी लड़ाई की जाए. मोहम्मद ने मदीनावासियों से पूछा क्योंकि वो मोहम्मद के लिए लड़ने के लिए किसी प्रतिज्ञा से नहीं बंधे थे. 'साद बिन मोआध', जो मदीना वासियों का मुखिया था, बोला, ' अल्लाह के पैगम्बर! यदि हमें कहोगे तो हम तुम्हारे साथ विश्व के छोर तक चलेंगे. हमारे ऊंट थक कर मर जाएँ तो भी हम तुम्हारे साथ चलेंगे. तुम यदि उचित समझो तो कूच करो, पड़ाव डालो, शान्ति करो अथवा लड़ाई करो.' ये उत्तर सुन कर मोहम्मद ने कहा: 'अल्लाह के भरोसे आगे बढ़ो! उसने तुमसे एक का वायदा किया है - सेना अथवा कारवाँ - वो इन में से एक मुझे सौंपेगा. अल्लाह कसम! मुझे अभी से लड़ाई का मैदान दिख रहा है जिस में लाशें गिरी हुई हैं.

मुसलमान लड़ाई के लिए आमादा

जहां मक्कावासी, मोहम्मद और उसका साथ देने वालों को अपना सम्बन्धी प्रियजन मानते हुए, उनसे लड़ने को एक दुष्कर्म मान, लगभग लौट जाने लगे थे, इसके ठीक विपरीत, मोहम्मद और उसके साथियों में अपने सम्बन्धियों से लड़ाई करने में कोई हिचक नहीं थी. हालांकि कुरैशियों के कारवाँयों पर आक्रमण किये गए थे और नख्ल में मुसलामानों द्वारा हत्या भी की गयी थी, इसपर भी वो उन से, पारिवारिक सम्बन्ध मानते हुए, लड़ाई नहीं करना चाहते थे. किन्तु मुसलामानों के मन में केवल एक ही विचार था की अपने सम्प्रदाय के अतिरिक्त उनका कोई सम्बन्धी नहीं है क्योंकि इस्लाम ने उन्हें सभी उन संबंधों से मुक्त कर दिया है जो सम्प्रदाय के बाहर हैं. वो पूर्वकाल में उनसे किये दुर्व्यवहार को न भूल कर और मोहम्मद की भयंकर कट्टरता के कारण कठोर होते चले गए थे. मोहम्मद के साथियों ने उस से इस कट्टरता एवं घृणा को ग्रहण कर लिया था. मोहम्मद की अपने मुख्य विरोधियों के प्रति घृणा का एक उदाहरण उसके व्यवहार से मिलता है. बद्र की और जाते हुए, रास्ते में एक स्थान पर वो नमाज़ के लिए रुका तो उठ कर काफिरों के प्रति अल्लाह से कहने लगा: 
'ओ अल्लाह! अबू जहल बचकर न जाने पाए. अल्लाह! ज़ामा को भी बच कर मत जाने देना; बल्कि ऐसा हो की उसका बाप अपने बेटे के दुःख में रो रो कर अँधा हो जाए!'
मोहम्मद द्वारा शत्रु का आंकलन

गुरूवार की दोपहर को, बद्र के निकट पहुँच कर मोहम्मद ने अली और कुछ अन्य मुसलामानों को एक झरने के निकट से शत्रुओं की संख्या जांचने के लिए भेजा. उन्होंने, अचानक आक्रमण कर के तीन कुरैशियों को, जो अपनी मशकों में पानी भरने आये थे, चौंका दिया. उनमें से एक भाग निकला और दो को पकड़ कर मुसलामानों के बीच ले आया गया. उनसे कारवाँ एवं शत्रुओं की सूचना लेने के लिए उन्हें मारा जाने लगा. मोहम्मद को जब शत्रु की निकटता का आभास हुआ तो उसने उनसे कुरैशियों की संख्या के सम्बन्ध में पूछना आरम्भ किया. उन्हें अक्षम पा कर मोहम्मद ने पूछा कि उन्होंने अपने भोजन के लिए कितने ऊंठों को मारा था. उन्होंने उत्तर दिया कि एक दिन नौं और अगले दिन दस ऊंठों को मारा गया था. ये सुनकर मोहम्मद ने कहा कि वो ९०० और १००० के बीच हैं. मोहम्मद का ये अनुमान सटीक था क्योंकि वो ९५० लोग थे जो मुसलामानों से तीन गुणा थे. उनके पास ७०० ऊंट और १०० अश्व थे, सभी घुड़सवार कवच पहने थे.

कारवाँ का बचना मोहम्मद के लिए वरदान

मोहम्मद के साथी जिसे एक सहज लड़ाई सोच रहे थे, वो अब एक भीषण लड़ाई हो सकती थी, ये जान कर वो दुविधा में पड़ गए. ये मुसलामानों के लिए एक वरदान था कि कारवाँ के सुरक्षित होने की जानकारी से मक्कावासी लड़ाई के लिए उत्सुक नहीं थे क्योंकि यदि उनका कारवाँ संकट में होता तो उनकी एकता एवं दृढ़ता कहीं अधिक होती. उधर मोहम्मद के लिए बद्र में जीत किसी भी कारवाँ को लूटने से अधिक संतोषजनक परिणाम होता, भले ही वो कारवाँ कितन संपन्न क्यों न होता.

बद्र का भूगोल

बद्र की घाटी की रचना कुछ इस प्रकार है कि उसके उत्तर और पूर्व में ऊंचे पहाड़ हैं; दक्षिण में छोटी छोटी चट्टानों की श्रृंखला है और पश्चिम में रेट के टीले हैं. पूर्व की पहाड़ी से एक छोटी नदी बहती है जिस से कई स्थानों पर छोटे झरने निकलते हैं. इनमें से सबसे निकटवर्ती झरने के पास मोहम्मद और उसके साथी रुके थे. 'अल होबाब' नामक एक मदीनावासी, जो इस प्रदेश का ज्ञाता था, ने परामर्श दिया कि 'अंतिम झरने तक जा कर, सभी झरनों को नष्ट कर देते हैं, मैं एक झरना जानता हूँ जहां हर समय मीठा जल मिलता है.'
इस सुझाव पर तुरंत कार्यवाही करते हुए सभी झरनों को नष्ट कर के अंतिम झरने पर अधिकार कर लिया गया.

मोहम्मद की झोंपड़ी

रात को ताड़ के पत्तों की एक झोंपड़ी में मोहम्मद और अबू बकर सो गए और 'साद बिन मोआध' खड़ग लिए उनकी सुरक्षा करता रहा. रात को वर्षा हुई जो कुरैशियों की और अधिक बरसी. इस वर्षा का और मोहम्मद को वहाँ सोने पर आये स्वप्न का उल्लेख कुरआन में इस प्रकार किया गया है.
अध्याय ८, आयत११:
याद करो जब अल्लाह तुम्हें तारो ताज़ा करने के लिए तुम पर पानी बरसा रहा था और तुम्हें सुस्त कर रहा था, इसके द्वारा उसने तुमसे शैतान की गंदगी धो कर तुम्हें पाक कर दिया. उसने तुम्हारे दिलों को ताकत दी ताकि तुम डटे रहो. 
अध्याय ८, आयत ४३ में मोहम्मद के एक तथाकथित स्वप्न का उल्लेख है:
याद करो जब अल्लाह ने तुम्हें ख्वाब में उनकी संख्या कम कम करके दिखलाई थी. क्योंकि अगर तुम उनकी ज्यादा गिनती को जानते तो तुम लड़ने की बजाय आपस में झगड़ पड़ते. अल्लाह ने तुम्हें इस शर्मिंदगी से बचा लिया है.
रात को, सोने से पूर्व, मोहम्मद ने लड़ने का ध्वज 'मुसाब' को थमाया, खाज्राज काबिले की कमान 'अल होबाब' को तथा ऑस कबीले की कमान 'साद बिन मोआध' को थमा दी. अगले दिन, प्रभात के समय, हाथ में एक बाण थामे, मोहम्मद ने अपने साथियों को लड़ने की व्यूह रचना बतायी.

कुरैशियों में दुविधा

कुरैशियों के शिविर में दो मुखिया 'शीबा' और 'उत्बा' का प्रबल मत था कि अपने संबधियों से युद्ध नहीं करना चाहिए. 'ओमीर' नामक एक व्यक्ति घाटी का निरीक्षण कर के आया तो उसने मुसलामानों की संख्या बताते हुए चेतावनी देते हुए कहा 'ऐ कुरैशियो! भले ही उनकी संख्या कम हो किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानों यथ्रीब के ऊंठों पर मौत सवारी कर रही हो. वो तुम्हारा विनाश कर देंगे. वो तो केवल खड़ग की ही भाषा बोलेंगे और उनकी जीभ एक सांप की जीभ की भाँती हो चुकी है. यदि वो मरेंगे तो उतने ही हम में से भी मर जायेंगे; यदि इतने लोग मारे जायेंगे तो हमारा ये जीवन किस प्रकार का होगा! इन शब्दों का प्रभाव हो रहा था तो अबू जहल ने अपने साथियों को कायरता से बचने को कहा. उसने 'आमिर इब्न अल हिद्रामी' को अपने मरे हुए भाई अम्र (जिसे मुसलामानों ने नखल में धोखे से मार दिया था) का स्मरण करने को कहा. इसका तुरंत प्रभाव हुआ. उसने अपने वस्त्र फाड़ दिए, अपने शरीर पर धुल मली और अपने भाई का नाम ले कर विलाप करने लगा. इस पर 'शीबा' एवं 'उत्बा', जो अम्र के साथी थे, लौट चलने की बात से रुक गए क्योंकि उनका स्वाभिमान आहत हो गया था.
ये छोटी से सेना लड़ने के लिए चल पड़ी. रात को हुई वर्षा ने धूल के टीलों को, जिन पर से कुरैशियों को चलना था, कीचड़ युक्त हो गए थे, जिस से चलने में भारी असुविधा हो रही थी. परिणामतः वो शीघ्र ही थकान का अनुभव करने लगे. एक और समस्या जो कुरैशियों की स्थिति को निर्बल कर रही थी, वो थी दिशा. उन्हें सीधे उदय होते सूर्य की दिशा में चलना था. इसके विपरीत, मुसलामानों की पीठ सूर्य की और थी. दूसरे, इस ओर वर्षा कम होने के कारण, मुसलामानों की ओर की भूमि चलने के लिए उपयुक्त थी.
जब कुरैशियों की सेना, टीले के पीछे से मुसलामानों की ओर बढ़ी तो उनका एक बड़ा भाग टीले के पीछे होने के कारण, मुसलामानों को नहीं दिखा. इस कम संख्या ने मुसलामानों का उत्साह वर्धन किया. इसका उल्लेख भी कुरआन में दिया गया है. अध्याय ८, आयत ४४:
याद करो जब तुम उनसे भिड़ने लगे तो अल्लाह ने तुम्हें उनकी एक छोटी संख्या तुम्हें दिखलाई और तुम्हारी संख्या भी उन्हें कम दिखी. इस से अल्लाह ने वो करवा लिया जो पहले से तय था और उसे मंज़ूर था.
मोहम्मद जो कुरैशियों की अधिक संख्या के विषय में जानता था, 'अबू बकर' के साथ अपनी झोंपड़ी में गया और अपने हाथ ऊपर उठाते हुए बोला: 'या अल्लाह! यदि तेरी ये छोटी सी टुकड़ी आज हार गयी तो कुफ्र (मूर्तिपूजा) जीत जायेगा  और तेरा नाम लेने वाला इस दुनिया में कोई नहीं बचेगा!' इस पर अबू बकर ने कहा 'अल्लाह ज़रूर तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे रुख पर जीत की चमक होगी'.

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